शशि शेखर
एक महिला जो कुपोषण से पीड़ित है, उसमें एक कुपोषित बच्चे को जन्म देने की ज़्यादा संभावनाएं भी रहती है. अस्सी के दशक में मातृत्व लाभ योजना शुरु की गई. इस योजना के तहत गर्भवती महिलाओ को दो किस्तों में 6000 रुपये दिए जाने थे.
मोदी सरकार के सत्ता में आने के ढाई साल बाद यह तय किया गया कि इस स्कीम के पूरे देश में फैलाया जाए. 1 जनवरी 2017 से इस योजना को देशव्यापी बना दिया गया. इस योजना का नाम बदल कर प्रधानमंत्री मातृत्व वंदना योजन(पीएमएमवीवाई) रखा गया. लेकिन, साथ ही इस योजना के तहत दी जाने वाली सहयाता राशि भी घटाकर 6000 से 5000 रुपये कर दी गई और पहले के मुकाबले अब यह राशि 2 की जगह 3 किस्तों में दी जाने लगी.
15 जनवरी 2018 को हिंदुस्तान टाइम्स में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार इस स्कीम के लांच होने के एक साल बाद भी केवल 2 फीसदी लाभार्थियों को इस योजना का लाभ मिला है. इस खबर के सार्वजनिक होने के बाद हमने इस योजना को ले कर सरकार से आरटीआई के तहत कुछ सवाल पूछे. आरटीआई के तहत हमें जो जवाब मिला, वो चौंका देने वाला था.
30 नवंबर 2018 तक सरकार ने 18,82,708 लाभार्थियों को इस स्कीम के अंदर सहायता राशि देने के लिए 1655.83 करोड़ रुपये जारी किए. लेकिन, खबर ये नहीं है. खबर ये है कि इस सहायता राशि के वितरण के लिए सरकार ने 6966 करोड़ रुपये प्रशासनिक प्रक्रियाओं में खर्च कर दिया. इसका अर्थ है कि इस स्कीम के तहत किसी लाभार्थी को हर 100 रुपये देने के लिए सरकर ने उससे साढ़े चार गुना अधिक राशि इससे जुड़े प्रशासनिक प्रक्रियाओं पर खर्च कर दिए.
अगर हम राज्यवार देखे तो:
ओडिशा में नवंबर 2018 तक केवल 5 लाभार्थी इस स्कीम के तहत पंजीकृत थे. यानी, ओडिशा में इस योइजना के तहत केवल 25000 रुपये का वितरण हुआ, लेकिन 274 करोड़ रुपये से ज़्यादा प्रशासनिक प्रक्रियाओं में खर्च कर दिए गए.
असम में भी कुछ ऐसा ही चौंकाने वाला आंकड़ा सामने आया है. स्कीम के तहत, असम में 11.58 करोड़ रुपये 3099 लाभार्थियों को दिया गया है परंतु यहां इसी काम के लिए प्रशासनिक खर्चों में 410 करोड़ रुपये लग गए.
गुजरात के मामले में 1,21,422 लाभार्थी हैं, जिनके बीच 96.15 करोड़ रुपये वितरित किए गए हैं, लेकिन सरकार को इस योजना के लिए 52584 आंगनवाड़ी को शामिल करने के लिए 297.21 करोड़ रुपये अतिरिक्त खर्च करने पडे.
केरल एक ऐसा राज्य है, जहां 30 नवंबर 2018 तक स्तनपान कराने वाली 81,708 महिलाओं के बीच 64.66 करोड़ रुपये वितरित किए गए. लेकिन, इस काम के लिए 33452 आंगनवाड़ी केंद्रों को शामिल किया गया, जिस पर 71.06 करोड रुपये की प्रशासनिक लागत आई.
बिहार में भी इस योजना के तहत 317.23 करोड़ रुपये प्रशासनिक कार्य पर खर्च हुए, जबकि तीन किस्त पाने वाले लाभार्थियों की संख्या केवल 12415 है. इसकी तुलना में जम्मू और कश्मीर और हिमाचल प्रदेश में 14325 और 30678 लाभार्थियों को इस योजना का लाभ मिला.अब इसके बाद सरकार के मंत्री अगर कहते है कि मुजफ्फरपुर के बच्चे कुपोषण से मर रहे है तो जाइए, जा कर पूछिए कि प्रधानमंत्री मातृत्व वन्दन योजना काकरोडॉं रुपया कौन खा गया…क्या वो…जिनके गाल 70 साल की उमर में भी कश्मीरी सेब की तरह लाल है….
(शशि शेखर के फेसबुक वॉल से साभार)