सुरेन्द्र किशोर
पूरी कहानी यह है कि सी.बी.आई.के संयुक्त निदेशक लक्ष्मी नारायणन ने गृह मंत्री चरण सिंह के दबाव पर जल्दीबाजी में इंदिरा गांधी को गांधी को गिरफ्तार करने का आदेश जरूर दिया,पर गिरफ्तार करने वाले अफसर का नाम है एन.के.सिंह।
वह बिहार के रहने वाले हैं।
आधी अधूरी तैयारी के कारण गिरफ्तारी के आदेश को कार्यरूप देने में एन.के.सिंह को जितनी बड़ी फजीहत झेलनी पड़ी थी,उतनी फजीहत शायद ही किसी अन्य अफसर को कभी झेलनी पड़ी हो ।
खैर जो हो, इंदिरा गांधी की ऐतिहासिक गिरफ्तारी व रिहाई का प्रकरण उल्लेखनीय व चर्चित बन गया।
इस संबंध में खुद निर्मल कुमार सिंह ने अपनी चर्चित पुस्तक ‘खरा सत्य’ में यह प्रकरण विस्तार से लिखा है।
s.p..रैंक के अफसर निर्मल कुमार सिंह ने जो एन.के.सिंह के नाम से जाने जाते है, लिखा कि ‘एक दिन उन्हें सी.बी.आई.के संयुक्त निदेशक लक्ष्मी नारायणन ने बुलाकर कहा कि इंदिरा गंाधी को गिरफ्तार करने की जिम्मेदारी आप पर सौंपी जाती है।
उन्होंने जीप कांड से संबंधित एफ.आई.आर.की काॅपी दी।
श्री सिंह के अनुसार,‘जब मैंं लक्ष्मी नारायणन के कमरे से बाहर निकला तो मैंने अपने पैरों को थोड़ा भारी पाया।
मुझे ऐसे व्यक्ति को गिरफ्तार करने को कहा गया था जो 11 साल तक प्रधान मंत्री थीं।उनके खिलाफ भ्रष्टाचार का एक मामला था।
सच कहूं तो थोड़ा फख्र भी हो रहा था कि मुझे इस संवेदनशील और मुश्किल काम के लिए चुना गया था जबकि यह मेरा केस नहीं था।’
श्री सिंह लिखते हैं, ‘मुझे श्रीमती गांधी को निजी जमानत लेने की पेशकश करनी थी और मना करने पर उन्हें बड़खल ले जाना था।दूसरे दिन कोर्ट मंें उन्हें पेश करना था। शाम को सवा पांच बजे सी.बी.आई.के डी.एस.पी. और मामले के जांच अधिकारी एम.वी.राव और मैं 12, विलिंगटन क्रेसेंट के अंदर पहुचे।
हमारे साथ एक इंस्पेक्टर व एक या दो अधीनस्थ अफसर थे। हमेशा की तरह हम सब सादे कपड़ों में थे।जब हमारी कार इंदिरा जी के घर के बरामदे के बाहर रूकी और हमलोग नीचे उतरे तो उसी समय संजय गांधी और मेनका गांधी हमारे सामने से उतर कर दूसरी ओर गए।
मुझे देखकर वे पहचान गए और और हाथ जोड़कर अभिवादन किया। फिल्म ‘किस्सा कुर्सी का’ के मामले में उनसे पूछताछ के सिलसिले में हमलोग उनसे मिल चुके थे।
मैंने उनके तुनकमिजाज व उग्र व्यवहार के बारे में सुन रखा था।लिहाजा तय कर रखा था कि जहां तक संभव होगा, उनसे बचा जाएगा।’
सी.बी.बाई.अफसरों के आने की खबर इंदिरा जी को घर के भीतर भेजी गई।वे लोगों से मिल रही थीं।उन्होंने एन.के.सिंह को बाहर काफी देर तक इंतजार कराया।इस बीच उन्होंने अपने वकील फै्रंक एंथोनी तथा समर्थकों को फोन कर के बुलाना शुरू कर दिया।
उनके आवास के अहाते में हंगामा होने लगा।संजय गांधी और उनके समर्थक सक्रिय थे।वे गिरफ्तारी का विरोध करते रहे।अंततः बड़ी मुश्किल से अफसरों ने उन्हें कार में बिठाया।साथ में भारी संख्या में उनके समर्थक थे और राजीव-संजय सपत्निक साथ -साथ दूसरी गाडि़यों में चल रहे थे।’
एन.के.सिंह लिखते हैं,‘मैं पायलट कार के पीछे चल रहा था।हमारे पीछे संजय गांधी,राजीव गांधी और दूसरे लोगों के साथ गाडि़यों का बेड़ा था।
वे लोग नारे लगा रहे थे।सबसे बुरी बात तो यह थी कि सड़क पर गुजरने वालों और उत्सुक लोगों की भीड़ से श्रीमती गांधी जोर -जोर से कह रही थीं कि ‘देखो,उन लोगों ने हमें गिरफ्तार कर लिया है । अब मुझे ले जा रहे हैं।’ कुछ लोग उनका अभिवादन करते थे और कुछ लोग मजाक उड़ाते थे जबकि कुछ लोग पीछे चल पड़ते थे।
दिल्ली आगरा रोड पर पीछे मुझे कोई पुलिस गाड़ी आती नहीं दिखी तो मैं थोड़ा सशंकित हुआ।औद्योगिक शहर फरीदाबाद थोड़ी ही दूरी पर था।हमलोग फरीदाबाद से बिना किसी समस्या के निकल गए।बड़खल जाने के लिए दाहिनी ओर मुड़ गए।पर, रास्ते में पड़ने वाला रेलवे का फाटक बंद था।जैसे ही हमारी कार रुकी संजय- राजीव व उनके वकील भागे -भागे आए और हमारी कार को घेर लिया।
वे कह रहे थे कि मैं इंदिराजी को दिल्ली से बाहर नहीं ले जा सकता।मैंने कहा कि सी.बी.आर्इ. की जिस इकाई ने मामला दर्ज किया है, वह कहीं भी ले जाने को नियमतः स्वतंत्र है।
मैं सिर्फ अगले दिन मजिस्टे्रट के सामने पेश करने को बाध्य हूं।पर वे लोग कोई बात सुनने को तैयार ही नहीं थे।संजय के लोग चीखते रहे।श्रीमती गांधी ने स्थिति और खराब कर दी।वह कार से उतर कर नाले पर बनी पुलिया पर बैठ गईं।वहां एकदम अंधेरा था।कोई पुलिस फोर्स दिखाई नहीं दे रही थी।मैंने महसूस किया कि मनाने का कोई असर नहीं होगा।संजय गांधी के लोग धमकाने वाले मूड में थे।’
इस बीच कुछ अशोभनीय घटनाएं भी हुईं जिसका विवरण श्री सिंह ने विस्तार से लिखा है। श्री सिंह ने लिखा कि जब मैंने कहा कि उनकी इच्छा के अनुसार दिल्ली वापस जाएंगे तो इंदिरा गांधी कार में आकर बैठ गईं।जब हमलोग दिल्ली आ रहे थे तो कार में बैठे तीन लोगों ने चरण सिंह के खिलाफ अपना निंदा अभियान चालू कर दिया।’
अगले दिन चार अक्तूबर को इंदिरा गांधी को दिल्ली के मुख्य मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट की अदालत में पेश किया गया।इंदिरा जी के साथ निर्मला देशपांडेय और बिहार के सांसद व वकील डी.के.सिंह कार में हमारे साथ पहुंचे थे।कोर्ट के आसपास भी काफी भीड़ थी।पुलिस को बल प्रयोग करना पड़ा।श्रीमती गांधी की ओर से प्रतिष्ठित वकील कोर्ट में हाजिर थे जबकि सी.बी.आई.की ओर से अपेक्षाकृत जूनियर वकील पेश हुए।सरकारी वकील ने अच्छी शुरूआत की।उन्होंने बार- बार अदालत का ध्यान प्राथमिकी के उस हिस्से की ओर खींचा जिसमें इंदिरा गांधी के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों का जिक्र था।इस तरह उन्होंने आधार बना लिया था।जब मजिस्ट्रेट ने सबूत के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा कि यह मामला एक ही दिन पहले दर्ज हुआ है।सबूत एकत्र करने का अभी समय नहीं मिला है।
उन्होंने कहा कि श्रीमती गांधी के पास दो विकल्प हैं।या तो जमानत ले लें या न्यायिक हिरासत में जाएं।उन्होंने यह भी कहा कि सी.बी.आई.उन्हें जमानत पर छोड़ने की पेशकश कर चुकी थी।इस बीच सी.बी.आई. के दूसरे वरिष्ठ विधि अधिकारी कहीं से आ गए।उन्होंने सरकारी वकील से बहस का चार्ज ले लिया।इससे स्थिति खराब हो गई।उन्हें यह नहीं मालूम था कि पहले क्या बहस हो रही थी।इस कारण उन्होंने गलत लाइन ले ली।उन्होंने श्रीमती गांधी के खिलाफ सबूत के रूप में केस डायरी दिखाने की कोशिश की।स्वाभाविक था कि केस डायरी में एफ.आई.आर.में
दर्ज आरोपों की खास बातों के अलावा कुछ भी नहीं था। यह गंभीर चूक थी और आरोपित ने इसका पूरा लाभ उठाया।श्रीमती गांधी की ओर से भाटिया ने बहस की।’
‘ जब मजिस्टे्रट अपना आदेश लिखवा रहे थे तो मैं समझ रहा था कि वे न सिर्फ उन्हें मुक्त कर रहे थे बल्कि कुछ ऐसी बात भी कह रहे थे कि जो अभियोजन के लिए थोड़ी घातक हो सकती थी।भले ही यह मेरा मामला नहीं था,पर उन्हें गिरफ्तार कर इससे किसी न किसी तरह जुड़ ही गया था।इसलिए मैं इससे आहत हुआ और खुद को थोड़ा असहाय भी पाया।जब वह अदालत से बाहर आईं तो वहां उपद्रवियों की भारी भीड़ थी।
बहुत मुश्किल से वह संजय के साथ हमारी एम्बेसडर कार में सवार हो पाईं।मैंने तय किया कि मैं उन्हें उनके घर छोड़ आऊं।जब हमलोग विलिंगटन क्रिसेंट की ओर जा रहे थे तो श्रीमती गांधी ने मुझसे कहा कि वे जानती थीं कि हमलोग उन्हें छोड़ेंगे नहीं और किसी न किसी मामले में उन पर मुकदमा चलाएंगे।
मैंने सोचा कि यह चोर की दाढ़ी में तिनके वाली बात थी।फिर भी मैंने जवाब दिया,‘मैडम हमलोग लोक सेवक हैं और हमें अपनी ड्यूटी करनी होती है।पर मैं आपको आश्वासन दे सकता हूं कि यह कानून के मुताबिक होगा।
उन्होंने कहा कि हां, बेशक मैं जानती हूं।
याद रहे कि आपातकाल में कानून के मुताबिक सब काम नहीं हो रहे थे बल्कि काम करने के लिए कानून बदले जा रहे थे।पर यह बात एन.के.सिंह ने उन्हें नहीं कही।एक लोक सेवक के नाते यह बात उन्हें कहनी भी नहीं चाहिए थी।
श्री सिंह लिखते हैंं,‘ जब हम लोग उनके घर के गेट के अंदर पहुंचे तो कुछ लोग वहां उनका इंतजार कर रहे थे।सबसे पहले धीरेंद्र ब्रह्मचारी घर से बाहर आए और उन्हें बधाई दी और माला पहनाई।
वहां से मैं सीधे सरदार पटेल भवन लक्ष्मी नारायणन से मिलने गया था।मैंने देखा कि सी.बी.आई.के एडिशनल लीगल अफसर जो अदालत में बाद में आए थे,वहां पहले से ही मौजूद थे।अदालत में जो कुछ हुआ, उसका वे व्योरा देने की कोशिश कर रहे थे।
मैंने श्री लक्ष्मी नारायणन से कहा कि यह मामला उतना सीधा नहीं था।बेहतर हो कि वे अदालत के आदेश की कापी जल्दी मंगा कर देख लें।क्योंकि मैं जो कुछ सुन पाया,उसके मुताबिक उन्होंने कुछ ऐसा कहा था जो अभियोजन के लिए नुकसानदेह हो सकता है।
थोड़ी देर बाद पुलिस प्रमुख श्री चतुर्वेदी भी वहां आ गए।पर जब पुलिस व अराजक तत्वों की झड़प की खबरें आने लगीं तो वे यह कह कर चले गए कि अब यह कानून व व्यवस्था की समस्या है।
वैसे भी इस मामले में मेरा काम खत्म हो गया था और मैं थका -हारा घर लौट आया ताकि थोड़ा आराम कर सकूं।’
(वरिष्ठ पत्रकार सुरेन्द्र किशोर के फेसबुक वॉल से साभार)