नयी दिल्ली। आज ही के दिन 1975 में तपती गर्मी में इंदिरा गांधी की नेतृत्व वाली सरकार ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक फैसले के बाद देश में इमरजेंसी लगाने का फैसला लिया और 25 जून का दिन इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गया. आज देश इमरजेंसी को याद कर रहा है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी उस दौर को याद करते हुए ट्वीट किए हैं, लेकिन इनरजेंसी की याद देश के पूर्व रक्षा मंत्री और दिवंगत समाजवादी नेता जार्ज फर्नांडिस की जंजीरों वाली तस्वीर के बिना अधूरी रह जाती है.
ट्रेड यूनियन लीडर के रूप में सियासी करियर शुरू करने वाले धुर समाजवादी नेता जॉर्ज फर्नांडिस का भले ही निधन हो गया हो, लेकिन आजादी के बाद लोकतंत्र पर धब्बा माने जाने वाले इमरजेंसी के दौर की उनकी बेड़ियों से जकड़ी तस्वीर लोगों के जेहन में अभी भी कैद है.
जब भी आपातकाल के क्रूर दौर का जिक्र होगा, उस दमन के विरोध के प्रतीकस्वरूप ‘बागी’ नेता जॉर्ज फर्नांडिज की उस तस्वीर का भी जिक्र होगा. संभवतया इसी कारण करिश्माई नेता जॉर्ज को विद्रोही तेवर का नेता कहा गया. जार्ज साहब के निधन के बाद बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने घोषणा की कि उनकी हथकड़ी वाली मुर्ति सरकार लगवाएगी.
1971 के आम चुनाव में ‘गरीबी हटाओ’ के नारे के साथ प्रचंड बहुमत (518 में से 352 सीटें) हासिल करने वाली इंदिरा गांधी ने जब उसी साल के अंत में पाकिस्तान को युद्ध में शिकस्त दी और बांग्लादेश दुनिया के नक्शे पर आया तो किसी दौर में ‘गूंगी गुडि़या’ कही जाने वाली इंदिरा गांधी को ‘मां दुर्गा’ कहा गया. उनको ‘आयरन लेडी’ कहा गया. उसी साल उनको भारत रत्न से भी नवाजा गया. लेकिन अगले कुछ वर्षों के भीतर ही इंदिरा गांधी की सत्ता का इकबाल जाता रहा. लिहाजा 25-26 जून, 1975 की आधी रात को देश में आपातकाल (इमरजेंसी) की घोषणा कर दी गई.
मामला 1971 में हुए लोकसभा चुनाव का था, जिसमें उन्होंने अपने मुख्य प्रतिद्वंदी राज नारायण को पराजित किया था. लेकिन चुनाव परिणाम आने के चार साल बाद राज नारायण ने हाईकोर्ट में चुनाव परिणाम को चुनौती दी. उनकी दलील थी कि इंदिरा गांधी ने चुनाव में सरकारी मशीनरी का दुरूपयोग किया, तय सीमा से अधिक खर्च किए और मतदाताओं को प्रभावित करने के लिए गलत तरीकों का इस्तेमाल किया. अदालत ने इन आरोपों को सही ठहराया. इसके बावजूद इंदिरा गांधी टस से मस नहीं हुईं.