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लोकसभा में हंगामा होने पर क्यों बोलते हैं स्पीकर ओम बिड़ला- आसन पैरों पर है…

नई दिल्ली। लोकसभा स्पीकर ओम बिड़ला ने सदन में हिन्दी भाषा पर काफी जोर दिया है, वह सदस्यों से हिन्दी में ही बात करते हैं और सदन के नियमों का पालन भी हिन्दी में ही करते हैं. उन्होंने संसद में विधेयक पर वोटिंग के दौरान इस्तेमाल होने वाली परंपरा को भी बदल दिया है. लोकसभा में अब स्पीकर अंग्रेजी के ‘आइस’ और ‘नोस’ की जगह ‘हां’ और ‘ना’ का प्रयोग करते हैं. यही नहीं सदन में वह सांसदों के लिए ‘माननीय सदस्य’ शब्द का इस्तेमाल करते हैं.

लोकसभा की ये है परंपरा

कार्यवाही के दौरान जब किसी विषय पर सदन में हंगामा होता है तो अक्सर ओम बिड़ला को ‘आसन पैरों पर है’ कहते सुना जाता है. इस शब्द का वह कई बार इस्तेमाल कर चुके है. दरअसल, आसन पैरों पर है का मतलब है कि सभापति आसन से खड़ा है और सभी सदस्य अब अपनी सीट पर बैठ जाए. सदन में ऐसी परंपरा है कि जब किसी चर्चा के दौरान कोई सांसद अपनी बात कह रहा हो और तभी अगर सभापति अपने आसन से खड़े हो जाएं तो उस सदस्य को अपनी बात रोककर बैठना पड़ता है.

सदन में पद के प्रोटोकॉल के अनुसार सभापति से बड़ा कोई भी नहीं है. वह सदन का संरक्षक माना जाता है और प्रधानमंत्री तक उन्हें सभापति महोदय या माननीय सभापति कहकर ही संबोधित करते हैं. ऐसे में अगर वह अपने आसन से खड़े हो जाते हैं तो उनके सम्मान में सदस्यों को अपनी बात रोककर बैठना पड़ता है. इसका दूसरा पहलू है कि सदन की कार्यवाही के दौरान कही गई बातें लिखित में भी आती हैं ऐसे में दो लोगों के एक साथ बोलने पर उसे रिकॉर्ड में लेना भी मुश्किल होता है. इसी वजह से सदन में स्पीकर एक बार में किसी एक ही सदस्य को बोलने की इजाजत देता है, अगर कोई बीच में बोलता भी है तो दूसरे को तब तक के लिए चुप रहना पड़ता है.

ब्रिटिश संसद जैसी परंपरा

भारत के संविधान का बड़ा हिस्सा ब्रिटेन के संविधान से लिया गया है. वहां की संसद में भी कोई सांसद तभी बोल सकता है जब स्पीकर उसे इजाजत देगा. साथ ही ब्रिटेन की संसद में भी परंपरा है कि जब स्पीकर किसी सांसद के बोलने के दौरान खड़ा हो जाए तो उस सांसद को तुरंत अपनी सीट पर बैठना पड़ता है. कोई सदस्य अपनी बात कहने के लिए हाथ उठाकर स्पीकर का ध्यान अपनी ओर खींच सकता है लेकिन उसे बैठेकर बोलने या बिना स्पीकर की अनुमति के बोलने का अधिकार नहीं है.

स्पीकर ओम बिड़ला ने सभापति बनने के बाद सदन चलाने की प्रक्रिया में काफी बदलाव किए हैं. उन्होंने सदस्यों से साफ तौर पर कह रखा है कि कार्यवाही के दौरान सदस्य सीट पर बैठकर आपस में बातचीत नहीं करेंगे, अगर जरूरी हो तो सदन से बाहर जाकर बात करें और फिर सदन में दाखिल हों. यही नहीं सदन में नए सदस्यों को अब ज्यादा मौके दिए जा रहे हैं और शून्यकाल में विषय उठाने के लिए लंच के टाइम को भी आगे बढ़ा दिया जाता है. ऐसा करने से ज्यादा सदस्यों को अपने मुद्दे उठाने का मौका मिलता है.

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