क्या प्रियंका वाड्रा कॉन्ग्रेस की अध्यक्ष बनना चाहती हैं, जबकि उनके भाई राहुल गॉंधी ने अध्यक्ष पद से इस्तीफा देते हुए साफ कर दिया था कि उनका उत्तराधिकारी गॉंधी परिवार से नहीं होगा। लेकिन भाई की इस भावना के विपरीत प्रियंका वाड्रा पार्टी की कमान संभालने के लिए पर्दे के पीछे से अपने दॉंव चल रही हैं। रिपोर्ट में शीर्ष सूत्रों के हवाले से बताया गया है कि अध्यक्ष पद पर अपनी दावेदारी पुख्ता करने के लिए वह अपने करीबी नेताओं के साथ काम कर रही हैं।
सूत्रों के मुताबिक प्रियंका इस बात से बेहद नाराज हैं कि राहुल ने सार्वजनिक तौर पर कहा कि उनका उत्तराधिकारी कोई गॉंधी न हो। लेकिन, वह फिलहाल सार्वजनिक तौर पर राहुल की बात काटते नहीं दिखना चाहतीं, इसलिए उनके वफादार पूर्व सांसद राजीव शुक्ला इस अभियान को आगे बढ़ा रहे हैं।
शुक्ला उत्तर प्रदेश के कानपुर से ताल्लुक रखते हैं। यहीं से कॉन्ग्रेस सांसद रहे श्रीप्रकाश जायसवाल भी प्रियंका को पार्टी अध्यक्ष बनाने की मॉंग कर रहे हैं। इस पर उनका कहना है कि मेरे साथ ‘कई लोगों’ का मानना है कि प्रियंका वाड्रा को पार्टी अध्यक्ष बनना चाहिए। वह गॉंधी परिवार से ताल्लुक रखती हैं और उनमें पार्टी का नेतृत्व करने का दमखम भी है।
राजीव शुक्ला के इशारे पर प्रियंका को कमान देने की मॉंग करने वाले एक अन्य नेता भक्त चरण दास हैं। उनका कहना है कि राहुल के उत्तराधिकारी के तौर पर प्रियंका को जिम्मेदारी संभालनी चाहिए, क्योंकि वह सर्वमान्य नेता हैं। जायसवाल और भक्त के बयानों में समानता पर गौर कीजिए।
पर्दे के पीछे से प्रियंका को सलाह दे रहे एक अन्य व्यक्ति हैं, प्रशांत किशोर। सूत्रों के अनुसार किशोर की पार्टी जदयू आधिकारिक तौर पर भाजपा की साझेदार है, इसलिए वे खुलकर सामने नहीं आ रहे हैं। लेकिन, इस अभियान के वे भी महत्वपूर्ण सूत्रधार है। अध्यक्ष बनने के लिए बेहद उत्साहित प्रियंका वाड्रा ने रणनीति के ही तहत नेल्सन मंडेला के साथ अपनी तस्वीर पोस्ट करते हुए कहा कि मंडेला उन्हें राजनीति में देखना चाहते थे। यह हास्यास्पद है, क्योंकि मंडेला की मृत्यु दिसंबर 2013 में हो गई थी। जिस तस्वीर के साथ प्रियंका ने यह दावा किया है वह कम से कम 18 साल पुरानी है।
दिलचस्प यह भी है कि लोकसभा चुनाव में पराजय के बाद जब जिम्मेदारी लेते हुए कई नेताओं ने इस्तीफे दिए, प्रियंका ने ऐसा नहीं किया। जबकि, पूर्वी उत्तर प्रदेश में उनके प्रचार ने पार्टी को सबसे ज्यादा नुकसान पहुॅंचाया और कॉन्ग्रेस एक सीट पर सिमट गई। जाहिर है कि कॉन्ग्रेस की हार में प्रियंका अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने का मौका देख रही हैं। राहुल की जगह लेने के लिए मिल रहे व्यापक समर्थन को देख प्रियंका अब पार्टी के भीतर मजबूती से अपने पांसे चल रही हैं।
सूत्रों के हवाले से रिपब्लिक टीवी ने बताया है कि प्रियंका ने 2019 के चुनावी नतीजों को राहुल को बेदखल करने के मौके के तौर पर देखा। शुरुआत में उन्हें अपने प्रदर्शन की समीक्षा होने की उम्मीद नहीं थी। उनके प्रचार करने के तरीकों की आलोचना हुई। अमेठी में स्मृमि ईरानी के सामने वे पूरी तरह नाकाम रहीं। पूर्वी उत्तर प्रदेश, जहॉं की वह प्रभारी थीं जन समर्थन हासिल करने में असफल साबित हुईं। उनके भाषण असरदार नहीं थे। वोटरों से बात करते वक्त उनका आलोचनात्मक रवैया पार्टी को महॅंगा पड़ा।
इससे चिंतित प्रियंका ने बेहद सावधानी से खुद को चर्चा के केंद्र से हटाया। सीडब्ल्यूसी की बैठक में गॉंधी परिवार के बाहर के नेताओं की तरह ही राहुल के इस्तीफे का विरोध किया। इसी दौरान उन्होंने राजीव शुक्ला के साथ एक गुपचुप बैठक की। शुक्ला ने उन्हें एक महीने तक इंतजार करने की सलाह दी। उस वक्त प्रियंका को यह अंदाजा नहीं था कि पार्टी के भीतर से गॉंधी परिवार के बाहर के किसी युवा नेता मसलन, राजस्थान के उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट और मध्य प्रदेश के ज्योतिरादित्य सिंधिया को अध्यक्ष बनाने की चर्चा शुरू हो सकती है।
चालीस पार की उम्र वाले इन दोनों नेताओं को राहुल का मजबूत विकल्प माना जाता है। दोनों के पास मास अपील होने के साथ-साथ सक्रिय राजनीति में डेढ़ दशक से ज्यादा का अनुभव भी है। इसे देखते हुए प्रियंका के खेमे ने भी अपने अभियान को आगे बढ़ाने का फैसला किया। प्रियंका पर दबाव तब और बढ़ गया जब 6 जुलाई को पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने युवा नेतृत्व जरूरत बताते हुए सचिन पायलट या ज्योतिरादित्य सिंधिया का समर्थन करने के स्पष्ट संकेत दिए।
इसके हफ्ते भर के भीतर ही प्रियंका को प्रोजेक्ट करने का अभियान लॉन्च कर दिया गया। इसके पीछे सोच यह है कि पार्टी अध्यक्ष के तौर पर गॉंधी ही गॉंधी की जगह ले। इससे पायलट और सिंधिया की दावेदारी किनारे लग जाएगी और कॉन्ग्रेसी परंपरा के अनुसार वे भी प्रियंका का समर्थन करेंगे। तो इस तरह कॉन्ग्रेस में अध्यक्ष पद हथियाने का रंगमंच सज गया है। इसमें एक तरफ प्रियंका वाड्रा हैं तो दूसरी ओर सचिन पायलट या ज्योतिरादित्य सिंधिया।