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मुजफ्फरनगर दंगा: अखिलेश ने किए थे हिंदुओं पर 40 केस, मुस्लिमों पर 1, सारे हिंदू बरी

लखनऊ। उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर में 2013 में हुए दंगों के सिलसिले में अखिलेश यादव के नेतृत्व वाली तत्कालीन सरकार ने हिंदुओं पर 40 मुकदमे लादे थे। मुसलमानों को केवल एक मामले में आरोपित बनाया गया था। अदालत ने सभी हिंदुओं को बरी कर दिया है, जबकि एकमात्र मामले में आरोपी बनाए गए मुसलमानों को दोषी पाया है।

जिस एक मामले में सत्र अदालत ने इस साल 8 फरवरी को सजा सुनाई थी, वह 27 अगस्त 2013 को कवल गॉंव में सचिन और गौरव नामक दो भाइयों की हत्या से जुड़ी है। इस मामले में अदालत ने मुज़म्मिल, मुजस्सिम, फुरकान, नदीम, जहॉंगीर, अफज़ल और इकबाल को उम्रकैद की सजा सुनाई थी।

मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक हिंदुओं पर जो मुकदमे किए गए थे उसमें आरोपित बनाए गए सभी लोगों को अदालतों ने सबूतों के अभाव में बरी कर दिया है। इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक हत्या से जुड़े 10 मामलों की सुनवाई जनवरी 2017 से इस साल फरवरी तक चली। इन मामलों में 53 लोग आरोपित बनाए गए थे। रिपोर्ट के मुताबिक अभियोजन पक्ष के पाँच गवाह अदालत में इस बात से मुकर गए कि अपने संबंधियों की हत्या के वक्त वे मौके पर मौजूद थे। 6 अन्य गवाहों ने अदालत को बताया कि पुलिस ने जबरन खाली कागजों पर उनके हस्ताक्षर लिए थे। 5 मामलों में हत्या में इस्तेमाल हुए हथियार को पुलिस कोर्ट में पेश ही नहीं कर पाई।

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Express investigation: In 40 of 41 Muzaffarnagar riot cases, including murder, all accused are acquitted https://indianexpress.com/article/india/express-investigation-in-40-of-41-muzaffarnagar-riot-cases-including-murder-all-accused-are-acquitted-5836996/ 

Express investigation: In 40 of 41 Muzaffarnagar riot cases, including murder, all accused are…

Hostile witnesses, missing evidence — court records of the 10 murder cases show glaring gaps in prosecution

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इसके अलावा सामूहिक बलात्कार के 4 और दंगों के 26 मामलों के आरोपितों को भी अदालत ने बेगुनाह माना। रिपोर्ट में सरकारी वकील के हवाले से बताया गया है कि आरोपितों के खिलाफ चार्जशीट गवाहों के बयानों पर आधारित थे। अदालत में गवाहों के मुकरने के बाद अब राज्य सरकार रिहा आरोपितों के संबंध में कोई अपील नहीं करेगी।

गौरतलब है कि मुजफ्फरनगर दंगों में 65 लोग मारे गए थे। सभी मुकदमे पूर्व की सपा सरकार के कार्यकाल में दायर किए गए थे। इनकी जाँच भी अखिलेश यादव सरकार के कार्यकाल में शुरू हुई थी।

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