लखनऊ। उन्नाव रेप कांड मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सख्त रुख अपनाया है और सभी 5 मामलों को दिल्ली ट्रांसफर कर 45 दिन में सुनवाई पूरी करने का आदेश दिया है. कोर्ट के इस आदेश से मामले में आरोपी पूर्व बीजेपी नेता और विधायक कुलदीप सिंह सेंगर की मुसीबत भी बढ़ गई है. हालांकि, प्रशासन में सेंगर का दबदबा अभी भी कायम है और 15 महीने में उसके हथियार का लाइसेंस रद्द न हो पाना इसका सबसे बड़ा उदाहरण है.
दरअसल, 15 महीने पहले पुलिस ने सेंगर के हथियार का लाइसेंस रद्द करने की रिपोर्ट दी थी. लेकिन आज तक पुलिस की इस रिपोर्ट पर कोई कार्रवाई नहीं हुई. प्रशासन सेंगर की हनक के आगे हाथ पर हाथ धरे बैठा रहा.
सेंगर के रसूख के आगे प्रशासनिक अधिकारी भी विवश नजर आए और 15 महीने बीत जाने के बाद भी इस मसले पर वो निर्णय नहीं ले सके हैं और लाइसेंस निरस्तीकरण की फाइल देखते ही देखते दबा दी गई.
चौंकाने वाली बात यह है कि इस मामले की पीड़िता और उसके वकील की हथियार के लाइसेंस की गुहार को दरकिनार कर दिया गया. पीड़िता के वकील महेंद्र सिंह ने 15 जुलाई को उन्नाव जिले के डीएम को पत्र लिखकर जल्द हथियार का लाइसेंस देने की मांग की थी लेकिन सेंगर का प्रभाव ऐसा रहा कि पीड़िता और उसके वकील को अभी तक हथियार का लाइसेंस भी नहीं मिला.
अनुपालन रिपोर्ट आज होगा पेश
कोर्ट ने सीआरपीएफ को आदेश दिया है कि वह पीड़िता, उसकी मां और भाई-बहनों के अलावा चाचा के परिवार को भी पर्याप्त सुरक्षा दे. सुरक्षा तत्काल दी जाए और आदेश के अनुपालन की रिपोर्ट शुक्रवार को कोर्ट को दी जाए.
बीजेपी ने निकाला बाहर
रेप के इस मामले में आरोपी विधायक कुलदीप सेंगर को बीजेपी ने पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया. यह सब तब हुआ जब विपक्ष मुखर रूप से इस मामले में बीजेपी के खिलाफ उतर गया. हालांकि, सेंगर को लेकर विपक्ष भले ही आंदोलित है लेकिन यह भी सच है कि विपक्षी दल भी सेंगर को कई बार मौका दे चुके हैं.
सेंगर ने कांग्रेस पार्टी से अपना राजनीतिक करीयर शुरू किया था. 2002 में सेंगर ने बसपा के टिकट पर चुनाव लड़कर विधायक की सीट हासिल की. 2007 में सेंगर ने फिर पार्टी बदली और वो समाजवादी पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़कर विधानसभा पहुंचे. इसके बाद 2012 में सपा के टिकट पर और 2017 में बीजेपी के टिकट पर चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे.