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B’day Special: स्टाइल और साहसिक फैसलों से सबको फैन अपना बनाते रहे हैं संदीप पाटिल

टीम इंडिया के पूर्व ऑलराउंडर संदीप पाटिल (Sandeep Patil) रविवार को 63 साल के हो रहे हैं. एक बेहतरीन पिंच हिटर, मीडियम पेसर और शानदार फील्डर होने के अलावा संदीप टीम इंडिया के चयनकर्ता प्रमुख भी रह चुके हैं. क्रिकेट के अलावा एक पॉप सिंगर होने के साथ वे फिल्मों में एक्टिंग भी कर चुके हैं. वे जहां भी गए अपनी स्टाइल और साहसिक फैसलों से लोगों को दिल भी जीतते गए. उनके फैसले दूसरे को कैसे लगेंगे उन्होंने कभी इस बात की परवाह नहीं की. यह बाद उनके जीवन के बाकी पहलुओं में भी दिखाई देते है.

साहसिक फैसले लेकिन सही फैसले
संदीप पाटिल का जन्म 8 अगस्त 1956 को मुंबई में हुआ था. उनके पिता मधुसूदन पाटिल खुद एक पूर्व प्रथम श्रेणी क्रिकेटर थे. पाटिल 2012 के बाद टीम इंडिया के प्रमुख चयनकर्ता रह चुके हैं. अपने क्रिकेटीय शैली के मुताबिक उनके फैसले भी साहसिक ही थे. उन्होंने युवाओं के तरजीह दी. चाहे कीनिया या जिम्बाब्वे टीम की कोचिंग करना हो, या फिर संन्यास के बाद वापसी कर मध्यप्रदेश की कप्तानी करने का फैसला, संदीप ने अपने फैसले आखिर में सही ही साबित किए और चौंकाने वालों तक को अपना फैन बनाते गए.

कैसा रहा छोटा सा इंटरनेशनल करियर
टेस्ट क्रिकेट में पाटिल का कॅरियर केवल चार साल लंबा चला, लेकिन अपने 29 मैचों में उन्होंने चार शतकों की मदद से 1588 रन बनाए जिसमें उनकी ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ 174 रन की तूफानी पारी भी शामिल थी. वहीं केवल छह साल के वनडे करियर में उन्होंने 45 वनडे में उन्होंने 1005 रन बनाए. इस दौरान वह एक भी शतक नहीं लगा सके. पाटिल को पिंच हिटर के रूप में जाना जाता था. लोग उनसे उसी तरह से छक्के लगाने की उम्मीद करते थे जैसे वे कपिल देव से किया करते थे या आज धोनी से करते हैं.

करयिर की कुछ खास उपलब्धियां
उन्होंने ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ 64 रन पर अपने वनडे डेब्यू के लिए मैन ऑफ द मैच का खिताब जीता था. 1983 के उस वर्ल्ड कप में जिसे कपिल देव की कप्तानी में भारतीय क्रिकेट टीम ने जीता था,  पाटिल ने आठ मैचों में 216 रन बनाए थे जिसमें इंग्लैंड के खिलाफ सेमीफाइनल में  नाबाद 51 रन की पारी सबसे उल्लेखनीय थी. पाकिस्तान के खिलाफ फैसलाबाद में उनका चौथा और आखिरी टेस्ट शतक था. सितंबर 1986 में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ बॉम्बे के लिए उपस्थित होने के बाद पाटिल ने प्रथम श्रेणी क्रिकेट से संन्यास की घोषणा की. उन्होंने 1983-84 के रणजी सत्र में 609 रन बनाए.

क्रिकेट नहीं था संदीप का पहला प्यारा खेल

खेलों की बात की जाए तो क्रिकेट संदीप का सबसे पसदीदा खेल नहीं था उन्होंने अपनी आत्म कथा में लिखा है कि उन्हें बैडमिंटन से ज्यादा प्यार रहा. उनके पिता एक रणजी क्रिकेटर के साथ ही बैडमिंटन प्लेयर भी थे. संदीप अपनी बहन आशा के साथ काफी बैडमिंटन खेला करते थे.

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