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5 बड़ी वजहें जिनके चलते छिन गई दुनिया के सबसे पावरफुल NSA की कुर्सी

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने मंगलवार को जॉन बोल्टन को बर्खास्त करते हुए बड़े सख्त शब्दों का इस्तेमाल किया था. उन्होंने कहा कि उन्हें वाइट हाउस में उनकी सेवा की अब जरूरत नहीं है.  बोल्टन अमेरिकी विदेश नीति के विशेषज्ञ माने जाते हैं. वाइट हाउस में उनकी पहचान सख्त डिप्लोमैट के रूप में है, जो अमेरिकी हितों की रक्षा के लिए कड़े कदमों की पैरवी करते हैं.

पोम्पियो से होने लगी थी ‘टक्कर’

बोल्टन ने बतौर राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार पिछले साल एच.आर. मैकमास्टर का स्थान लिया था, अप्रैल 2018 में ट्रंप ने उनकी नियुक्ति की थी. लेकिन ट्रंप के साथ उनकी जोड़ी साल भर ही चली. वाइट हाउस में वे इतने पावरफुल हो गए थे कि उनकी टक्कर विदेश मंत्री माइक पोम्पियो से होने लगी थी. ट्रंप ने कुछ दिनों तक तो उन्हें बड़ी जिम्मेदारियां दीं, लेकिन धीरे-धीरे ट्रंप उनसे चिढ़ने लगे, हालात ऐसे बने कि ट्रंप ने जॉन बोल्टन को ‘फायर’ कर दिया.

आखिर क्या वजह थी कि ट्रंप और बोल्टन के बीच दूरियां बढ़ती गईं. दरअसल इसके पीछे दोनों नेताओं के बीच बढ़ता अविश्वास है.

तालिबान से वार्ता पर ट्रंप से टकराव

राष्ट्रपति ट्रंप ने अफगानिस्तान शांति वार्ता के लिए जब कैंप डेविड में तालिबान से बातचीत की इच्छा वाइट हाउस में जाहिर की तो एनएसए जॉन बोल्टन ने इस सख्त विरोध किया. जॉन बोल्टन ने कहा कि ऐसा करके राष्ट्रपति एक आतंकी समूह को मान्यता दे देंगे. फॉरेन पॉलिसी पत्रिका के मुताबिक बोल्टन ये मानते थे कि एक आतंकी गुट के नेताओं को कैंप डेविड में बुलाने से एक गलत प्रथा चल पड़ेगी. बोल्टन के विरोध का नतीजा ये निकला कि राष्ट्रपति दबाव में आ गए और आखिरकार तालिबान के साथ शांति वार्ता रद्द हो गई. सीएनएन की रिपोर्ट के मुताबिक इस मुद्दे पर सोमवार रात को दोनों नेताओं के बीच गरमागरम बहस भी हुई थी. वाइट हाउस के एक अधिकारी ने एक बहस की पुष्टि की भी. माना जाता है कि बहस खत्म होते-होते ट्रंप ने बोल्टन का इस्तीफा मांग लिया.

पिछले दिनों जी-7 की बैठक में जब ईरान के विदेश मंत्री पहुंचे तो चर्चा होने लगी कि अमेरिकी और ईरान के बीच फिर से वार्ता हो सकती है. जॉन बोल्टन इस मीटिंग के सख्त खिलाफ थे. एक रिपोर्ट के मुताबिक एक रिपब्लिकन सांसद ने कहा कि ईरान के राष्ट्रपति हसन रुहानी से ट्रंप की मीटिंग पर बोल्टन का विरोध उन्हें बाहर का रास्ता दिखाने में अहम फैक्टर बन गया. फ्रांस के राष्ट्रपति मैक्रों, ट्रंप और रुहानी के बीच संयुक्त राष्ट्र की मीटिंग के दौरान मुलाकात कराने की कोशिश कर रहे थे. बोल्टन कई मंचों पर इसका विरोध कर चुके थे.

बॉस के विरोध में खड़ा होने वाला नौकरशाह

बोल्टन ट्रंप के ऐसे नौकरशाह थे जो हर नीतिगत मुद्दों पर अपने बॉस के विरोध में खड़े हो जाते थे. दरअसल आक्रामक विदेश नीति के पैरोकार बोल्टन ट्रंप द्वारा किसी भी रियायत का विरोध करते थे. तालिबान और ईरान के अलावा उत्तर कोरिया और वेनेज़ुएला जैसे मुद्दे पर भी दोनों नेताओं के बीच मतभेद रहा. इस साल ये रिपोर्ट आई कि ट्रंप वेनेजुएला पर बोल्टन की गलत सलाह से खफा थे, क्योंकि वेनेजुएला में अमेरिकी नीति को मुंह की खानी पड़ी थी.

छवि को लेकर चिंतित ट्रंप

ट्रंप पिछले कुछ दिनों से ये भी महसूस कर रहे थे कि जॉन बोल्टन मीडिया में उनके पक्ष को जोरदार तरीके से रख नहीं पा रहे थे और इससे उन्हें नुकसान पहुंच रहा था. दरअसल मीडिया में भी ये बात फैलती ही जा रही कि जॉन बोल्टन ट्रंप की विदेश नीति में पूरे तौर पर यकीन ही नहीं करते हैं. बता दें कि अमेरिका में जल्द ही राष्ट्रपति चुनाव होने हैं और ऐसे मौके पर ट्रंप अपनी छवि का नुकसान किसी भी तरह बर्दाश्त करने के मूड में नहीं थे.

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