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मदरसों में पुलिस से छिपा कर रखे गए हैं बच्चे: मीडिया ने दिखाया तो वामपंथी कविता कृष्णन हुई खफा

नई दिल्‍ली। सच्चाई बहुत चुभती है। वामपंथियों को थोड़ी ज्यादा। लॉकडाउन को लेकर सरकारी दिशा-निर्देशों का पालन हो रहा है या नहीं, यह जानने के लिए ‘इंडिया टुडे’ ने अपने कुछ पत्रकारों को अलग-अलग जगहों पर भेजा। इन पत्रकारों ने पाया कि दिल्ली के मदरसों में छात्रों को कमरों में भेंड़-बकरियों की तरह रखा जा रहा है। मदरसा के शिक्षकों ने बताया कि वे छात्रों को छिपा के रखते हैं, ताकि पुलिस उन्हें लेकर नहीं जाए। उन्होंने कुछ पुलिसकर्मियों को घूस तक देने का दावा किया, ताकि मदरसा के ख़िलाफ़ कोई कार्रवाई न हो। ‘इंडिया टुडे’ ने अपनी इस इन्वेस्टीगेशन को ‘मदरसा हॉटस्पॉट्स’ नाम दिया।

बस, फिर क्या था! वामपंथी कविता कृष्णन इस बात से चिढ़ गई कि मेडिकल सलाहों को धता बताते हुए मदरसों में चल रही गतिविधियों को दुनिया के सामने क्यों लाया जा रहा है। कविता कृष्णन का मानना है कि मदरसों में जो गतिविधियाँ चल रही हैं उसके खिलाफ आवाज़ नहीं उठाई जानी चाहिए, जबकि इससे कोरोना जैसी वैश्विक महामारी के फैलने का ख़तरा बढ़ जाता है। कविता इस बात से भी नाराज़ हैं कि तबलीगी जमात की हरकतों की निंदा क्यों की जा रही है। उनका कहना है कि उन्होंने पत्रकार राहुल कँवल और मीडिया संस्थान ‘इंडिया टुडे’ के इंवेस्टिगेटिंग कार्यक्रम को ‘तथाकथित’ कह कर सम्बोधित किया और साथ ही कहा कि कोरोना महामारी के बीच ये घृणा फैलाने वाला काम है।

कविता ने कहा कि वो कँवल से कहना चाहती हैं कि वो चिकने-चुपड़े चेहरे के पीछे ख़ुद को इज्जतदार कहना छोड़ दें, क्योंकि उनका नकाब उतर गया है। वे क्या हैं, ये दुनिया ने देख लिया है। बता दें कि दूसरों के रूप और चेहरे पर भद्दी टिप्पणियाँ करने वाले यही वामपंथी ख़ुद को रेसिज्म के ख़िलाफ़ लड़ाई का मसीहा मानते हैं। वामपंथी ख़ुद तो सुविधानुसार किसी के भी चहेरे या चरित्र को लेकर टिप्पणी करते हैं, लेकिन दूसरों की बातों को फेमिनिज्म के चश्मे से देख कर उसमें खोट निकालना नहीं भूलते। ट्विटर पर जारी किए गए अपने जहरीले वीडियो में कविता कृष्णन ने आगे कहा:

आप पत्रकारों में नहीं बल्कि नफरतकारों में हैं। इतिहास आपको ‘रिपब्लिक टीवी’ के अर्नब गोस्वामी और ‘ज़ी न्यूज़’ के सुधीर चौधरी के साथ ही गिनेगा। इतिहास आपको ‘छी’ कहेगा।आज जब पूरी दुनिया में कोरोना जैसी वैश्विक महामारी फैली हुई है, सभी देख रहे हैं कि कैसे कोविड-19 के नाम पर आप जैसे नफरतकार पत्रकारिता की आड़ में पीड़ितों को धर्म के आधार पर बाँट कर अपना कारोबार चला रहे हैं। आप सरकार से मजदूरों और रोजगार के बारे में सवाल नहीं कर रहे हैं। आप स्वास्थ्य संकट और टेस्टिंग के बारे में सवाल करने की बजाए नफरत की इंजन में तेल डालने का काम कर रहे हैं। अगर ‘इंडिया टुडे’ और ‘एडिटर्स गिल्ड’ के बाकी लोग इसके ख़िलाफ़ आवाज़ नहीं उठाते तो उन्हें लेकर भी मेरा यही मत होगा।

बता दें कि पत्रकारिता की परिभाषा तय करने की बात करने वाली कविता कृष्णन से ये पूछा जाना चाहिए कि वो जिस स्वास्थ्य संकट की बात कर रही हैं, वो सिर्फ़ भारत में ही है क्या? ये संकट पूरी दुनिया में है और भारत तुलनात्मक रूप से कई विकसित देशों से अच्छे तरीके से इसे हैंडल कर रहा है, ऐसा कई विशेषज्ञों ने माना है। ऐसे में, सवाल क्या सरकार से ही होना चाहिए? क्या उन गैर-जिम्मेदार संगठनों और लोगों से सवाल नहीं होंगे, जो जान-बूझकर इधर-उधर थूक रहे हैं, कहीं भी मल-मूत्र त्याग दे रहे हैं और नर्सों के साथ बदसलूकी कर रहे हैं? क्या महामारी फैलाने वालों की बजाए माहमारी की रोकथाम के लिए लगे लोगों से सवाल होना चाहिए?

दरअसल, वामपंथी गैंग पहले से ही इस बात से चिढ़ा हुआ था कि इसे ‘चीनी वायरस’ क्यों कहा जा रहा है। ‘इंडिया टुडे’ की रिपोर्ट में बताया गया कि जहाँ एक तरफ कई स्कूलों में ‘डिस्टेंस लर्निंग’ के जरिए ऑनलाइन क्लासेज की व्यवस्था की गई है, मदरसों में स्थिति बद से भी बदतर है। दारुल उल उलूम के एक मदरसा में वहाँ के मौलाना बताते हैं कि उन्होंने पुलिस से छात्रों की संख्या को लेकर झूठ बोला है कि बच्चों को छुट्टी देकर घर भेज दिया गया है। पुलिस रोज वहाँ आती है, लेकिन वे रोज झूठ बोलते हैं।

एक मदरसा में तो 18 बच्चे हैं और पड़ोस में 6 को छिपाया गया है। बता दें कि बच्चों और बुजुर्गों में कोरोना के संक्रमण का ख़तरा तुलनात्मक रूप से ज्यादा है। ऐसे में छात्रों के साथ इस तरह का ख़तरनाक खेल खेलने को लेकर आवाज़ नहीं उठाई जानी चाहिए? मदरसा के लोग निजामुद्दीन के मरकज़ से जुड़े हुए हैं, जो तबलीगी जमात का मुख्यालय है। बच्चों को भी मरकज़ ले जाया जाता है। ज्ञात हो कि इसी एक इमारत में हुए मजहबी कार्यक्रमों के कारण देश भर में कोरोना वायरस के मामलों की संख्या में अचानक से इजाफा हो गया है। मदरसे के छात्र और शिक्षक उससे जुड़े हैं, लेकिन उनका मेडिकल टेस्ट कराने की बजाए उन्हें छिपा कर रखा गया है।

‘इंडिया टुडे’ ने दिखाया सच तो भड़क पड़ीं कविता कृष्णन

पुलिस को घूस देने की बात भी स्वीकार की गई। यहाँ तक कि मदरसा में दावत भी होती है, जहाँ ‘सोशल डिस्टेंसिंग’ के तमाम नियमों का उल्लंघन करते हुए बच्चों को झुंड में खाना खिलाया जा रहा था। लेकिन नहीं, वामपंथियों को इन बच्चों के भविष्य की कोई चिंता नहीं। कविता जैसे लोग चाहते हैं कि बच्चों को नरक में मरने के लिए छोड़ दिया जाए और इसकी ख़बर न दिखाई जाए, क्योंकि इससे उनके ‘सेकुलरिज्म’ पर आँच आती है। जबकि ये मुस्लिम बच्चे ही हैं, जिस कौम के हितैषी होने का दावा अक्सर ये वामपंथी करते रहते हैं।

इसी तरह ग्रेटर नोएडा के एक मदरसे का भी बुरा हाल है। ये सब तब हो रहा है, जब वो एनसीआर के उन इलाक़ों में है, जहाँ ज्यादा सख्ती है। वहाँ छात्र झुंड के झुंड बनाकर मदरसे में रह रहे हैं। सावधानी और बचाव के सारे उपायों को धता बताया जा रहा है। मेडिकल चेकअप की बातों को नकारते हुए मदरसा के मौलवी कहते हैं कि मेडिकल टेस्ट के बाद 15 दिनों के लिए क्वारंटाइन हो जाता है, जो लोचा-लफड़ा वाली बात जो जाती है। यही बहाना बना कर वो कहते हैं कि अल्लाह का शुक्र है कि बच्चों को यहाँ कोई समस्या नहीं हो रही है।

मदरसों में छात्रों के साथ खिलवाड़ हो रहा है। कोरोना जैसी महामारी के बीच उन्हें जानवरों की तरह रखा जा रहा है। लेकिन वामपंथी कविता कृष्णन चाहती हैं कि मदरसों की इस हरकत पर मीडिया चुप्पी साध ले और बच्चों को मरने दे। यही वामपंथी ख़ुद को मुसलमानों का हितैषी भी बताते हैं। जब ‘इंडिया टुडे’ ने तबलीगी जमात के कारण कोरोना वायरस के मामलों को आँकड़ों के जरिए दिखाया था, तब इन्हीं कविता कृष्णन और राणा अयूब जैसों ने ‘इंडिया टुडे’ पर आरोप लगाए थे कि वो कोरोना वायरस को मुसलमान बना रहा है।

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