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राजस्थान के ‘सबसे जाँबाज’ SHO विष्णुदत्त विश्नोई की आत्महत्या: एथलीट से कॉन्ग्रेस MLA बनी कृष्णा पूनिया पर उठी उँगली

राजस्थान में एक एसएचओ की हत्या के बाद सियासत गरमा गई है। आरोप है कि कॉन्ग्रेस विधायक कृष्णा पूनिया के दबाव में आकर राजगढ़ पुलिस थाने के एसएचओ विष्णुदत्त विश्नोई ने आत्महत्या कर ली। वे एक हत्याकांड की जाँच कर रहे थे, जिस कारण उन्हें रात के 3 बजे थाने आना पड़ा था। इसके बाद वो थाने स्थित क्वार्टर के कमरे में सोने चले गए थे। शनिवार (मई 23, 2020) सुबह 9 बजे भी वो बाहर नहीं निकले तो शक हुआ।

उनके कुक कन्हैयालाल ने इसकी सूचना थाने को दी। जब दरवाजा तोड़ा गया तो विश्नोई फंदे से लटके मिले। कमरे में दो सुसाइड नोट मिले। एक एसपी को सम्बोधित था तो दूसरा माता-पिता को। सुसाइड नोट में विश्नोई ने लिखा है कि उनके चारों तरफ इतना दबाव बना दिया गया था कि वो झेल नहीं सके। उन्होंने ख़ुद के तनाव में होने की बात कही। वकील को मैसेज भेज कर उन्होंने लिखा कि उन्हें गन्दी राजनीति के भँवर में फँसा दिया गया है।

इसी मैसेज में उन्होंने बताया था कि वे रिटायर होना चाहते हैं। उन्होंने लिखा था कि थाना भवन के निर्माण में उन पर 3.5 करोड़ रुपए का गबन का आरोप मढ़ा जा रहा है। जैसे ही ये चीजें वायरल हुईं, थाने के बाहर नेताओं और आमजनों का जमघट लग गया। नेता प्रतिपक्ष राजेंद्र राठौड़ और बसपा के पूर्व विधायक मनोज नांग्याल अलग-अलग स्थानों पर धरने पर बैठ गए। सीबीआई जाँच की माँग करते हुए काफ़ी देर तक पुलिस को शव भी नहीं उठाने दिया गया।

सांसद राहुल कस्वां सहित कई अन्य नेताओं ने आरोप लगाया है कि एक ईमानदार छवि का अधिकारी इस तरह से आत्महत्या कर ले तो उसके पीछे ज़रूर राजनितिक दबाव रहा होगा। वहीं कृष्णा पूनिया ने कहा है कि विश्नोई से 5-7 बार बैठक में ही उनकी मुलाकात हुई थी। विधायक ने बताया कि उन्होंने विश्नोई के बारे में सुन रखा था, लेकिन कभी अकेले में मुलाक़ात नहीं हुई।

विश्नोई के मित्र वकील गोवर्धन सिंह ने कहा कि अगर वे मैसेज मिलने के तुरंत बाद राजगढ़ चले गए होते तो शायद ये घटना नहीं होती। उन्होंने कहा कि वे ख़ुद को कभी माफ़ नहीं कर पाएँगे। उन्होंने कहा कि ये दिखने में भले आत्महत्या लगे, लेकिन ये सोच-समझ कर की गई हत्या है। इसकी सच्चाई सीबीआई जाँच के बिना सामने नहीं आएगी। 21 साल से सेवारत विश्नोई वरिष्ठ अधिकारियों के भी चहेते थे।

विश्नोई के बारे में ये भी कहा जा रहा है कि वो अपने थाने के कुछ पुलिसकर्मियों को लाइन हाजिर किए जाने से नाराज़ थे। आरोप है कि विधायक पूनिया ने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से बात कर ऐसा कराया था। अब तक 13 थानों में रह चुके विश्नोई की आत्महत्या के मामले में लॉरेंस विश्नोई गैंग का नाम भी सामने आ रहा है, क्योंकि वो जिस मर्डर केस की जाँच कर रहे थे, उसके तार इसी गैंग से जुड़े थे।

वहीं डीजीपी भूपेंद्र सिंह ने कहा है कि उनकी नज़र में विष्णुदत्त राज्य के शीर्ष 10 एसएचओ में शामिल थे। बकौल डीजीपी, पुलिसकर्मियों के लिए राजनीतिक, सामाजिक और आपराधिक दबाव आम बात है, जो भर्ती होते ही शुरू हो जाता है। उन्होंने कहा कि सभी क्षेत्रों के वरिष्ठ अधिकारी सिफारिश करते थे कि अपराध को नियंत्रित करने के लिए उनके इलाक़े में विष्णुदत्त की पोस्टिंग की जाए।

चूरू के राजगढ़ में भी अपराध नियंत्रण के लिए ही विष्णुदत्त की पोस्टिंग की गई थी। डीजीपी भूपेंद्र सिंह का कहना है कि वहाँ उन्होंने अच्छा काम किया था, लेकिन आत्महत्या के पहले कैसी परिस्थितियाँ बनीं, ये जाँच का विषय है। उन्होंने कहा कि विष्णुदत्त विश्नोई ऐसे अधिकारियों में से थे, जो हमेशा ईमानदारी से काम करते थे। उन्होंने कहा कि किसी भी अनुसन्धान के दौरान दोनों पक्ष दबाव बनाने के लिए तिकड़म आजमाते हैं और पुलिस को निष्पक्ष कार्रवाई करने की चुनौती रहती है।

राजगढ़ में इस घटना के बाद चौक-चौराहे पर ड्यूटी करते पुलिसकर्मी भी रोते हुए नज़र आए। उन्होंने कहा कि अब पुलिस नौकरी करना मुश्किल हो गया है, क्योंकि वर्दी पर राजनीति हावी हो रही है। विश्नोई को दबंग और कर्मठ अधिकारी के रूप में सबने याद किया। लोगों की माँग है कि उनके सुसाइड नोट को सार्वजनिक किया जाए और उसके आधार पर ख़िलाफ़ कार्रवाई की जाए। वे अपने पीछे एक बेटे और एक बेटी को छोड़ गए हैं। दोनों ही छात्र हैं।
विष्णुदत्त विश्नोई, राजस्थान
राजस्थान में पुलिस इंस्पेक्टर विष्णुदत्त विश्नोई के सुसाइड पर उठे सवाल

विष्णुदत्त रोज अपने माता-पिता से बातचीत करने के बाद ही ड्यूटी के लिए निकलते थे। वे ख़ुद अकेले रहते थे और पत्नी एवं दोनों बच्चों को उन्होंने पढ़ाई के लिए बीकानेर छोड़ रखा था। एक कॉन्स्टेबल ने बताया कि वो शुक्रवार को तनाव में लग रहे थे। एक अन्य पुलिसकर्मी से पूछने पर पता चला था कि वे मर्डर केस को लेकर तनाव में हैं।एक रिपोर्ट में बताया गया है कि विष्णुदत्त विश्नोई ऐसे अधिकारी थे जिनकी पोस्टिंग पब्लिक डिमांड पर होती थी। जब उनका तबादला होता था तो वहॉं के लोग इसके विरोध में आंदोलन करने लगते थे।

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