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फतवे के आगे इमरान सरकार ने घुटने टेके, इस्लामाबाद में कृष्ण मंदिर के निर्माण पर लगाई रोक

इस्लामाबाद। पाकिस्तान के प्रताड़ित हिंदुओं ने जिस फतवा के आगे झुकने से इनकार कर दिया था, उसके सामने इमरान खान की सरकार ने घुटने टेक दिए हैं। इस्लामाबाद में कैपिटल डेवलपमेंट अथॉरिटी (CDA) ने शुक्रवार (3 जुलाई, 2020) को कानून का हवाला देते हुए कृष्णा मंदिर के निर्माण में बनने वाली चारदीवारी का कार्य रोक दिया।

पाकिस्‍तान सरकार ने अब मंदिर के संबंध में इस्‍लामिक आइडियॉलजी काउंसिल से सलाह लेने का फैसला किया है।ट्विटर के जरिए धार्मिक मामलों के मंत्रालय ने कहा है कि वह केवल धार्मिक अल्पसंख्यकों से संबंधित पूजा स्थलों को पुनर्निर्मित करने में मदद कर सकता है। नए मंदिर के निर्माण में उनकी कोई भूमिका नहीं है।

सीडीए के प्रवर्तन और भवन नियंत्रण विभागों की एक संयुक्त टीम शुक्रवार को एच-9/2 में मंदिर निर्माण स्थल पर पहुँची और श्रमिकों को निर्माण का काम रोकने का निर्देश दिया। सीडीए के प्रवक्ता मज़हर हुसैन ने कहा कि नागरिक प्राधिकरण के भवन नियंत्रण कानूनों ने स्पष्ट रूप से ये कहा कि जब तक इमारत के निर्माण के लिए मँजूरी नहीं मिल जाती तब तक इस जमीन पर कोई काम नहीं होगा।

सीडीए के प्रवर्तन विभाग के एक अन्य वरिष्ठ अधिकारी ने खुलासा किया कि पहली बार इस क्लॉज़ को लागू किया है। वरना हमेशा अन्य लोगों को सीमा की दीवार का निर्माण करने की अनुमति दे दी जाती थी।

मंदिर निर्माण के लिए हिंदू पंचायत इस्लामाबाद ने अब काम रोक दिया है और निर्माण शुरू करने की अनुमति लेने के लिए सोमवार को सीडीए से संपर्क करने का फैसला किया है।

पाकिस्‍तान के ह्यूमन राइट्स के संसदीय सचिव लाल चंद्र मल्‍ही ने कहा, “हम नियमों का पालन करते हैं, लेकिन बाउंड्री का निर्माण जरूरी है, क्यूंकि कुछ मदरसों से सम्बंधित लोगों ने 2018 में प्लॉट पर टेंट स्थापित कर दिया था और इस जगह को साफ करने के लिए हमें राजधानी प्रशासन की मदद पाने के लिए कई महीने लग गए थे।”

दिलचस्प बात यह है कि पाकिस्तान के एक न्यूज चैनल, 92 न्यूज एचडी प्लस ने हिंदू मंदिर के निर्माण को रोकने के लिए इस्लामिक एजेंडे का हवाला दिया था।

हालाँकि बाद में इस झूठे दावे को हटा दिया गया।

कुछ मजहबी संस्थाओं ने बुधवार को मंदिर बनाने को लेकर सरकार की आलोचना की थी और इसे पाकिस्तानी विचारधारा के खिलाफ बताया था। उन्होंने इस मुद्दे को फ़ेडरल शरीअत कोर्ट ले जाने का फैसला भी किया था।

बता दें की इससे पहले पाकिस्तान में गंभीर धार्मिक प्रताड़ना झेलने वाले हिंदुओं ने साहसिक निर्णय लिते हुए इस्लामाबाद में कृष्ण मंदिर का निर्माण कार्य जारी रखने का फैसला किया था। इस्लामिक देश की राजधानी में अल्पसंख्यक होने के बावजूद हिंदुओं ने 20,000 वर्गफुट में कृष्ण मंदिर बनाने का निश्चय किया था। यह जमीन उन्हें पाकिस्तान सरकार से आवंटित हुई थी।

इस फैसले के बाद कृष्ण मंदिर को लेकर कट्टरपंथियों की लगातार धमकियाँ मिल रही थी और इस्लामिक उलेमाओं से लेकर इस्लामिक नेता तक पाकिस्तान सरकार के इस फैसले के विरोध में आवाज बुलंद कर रहे थे।

पिछले दिनों इस संबंध में इस्लामी शिक्षा देने वाले संस्थान जामिया अशर्फिया के मुफ्ती जियाउद्दीन ने कहा था कि गैर मुस्लिमों के लिए मंदिर या अन्य धार्मिक स्थल बनाने के लिए सरकारी धन खर्च नहीं किया जा सकता। इसी संस्था ने मंदिर निर्माण को लेकर फतवा जारी करते हुए कहा था कि अल्पसंख्यकों (हिंदुओं) के लिए सरकारी धन से मंदिर निर्माण कई सवाल खड़े कर रहा है।

इस फतवे के अलावा इस्लामाबाद हाई कोर्ट में मंदिर निर्माण को लेकर एक याचिका भी डाली गई थी। याचिका में याचिकाकर्ता ने कहा था कि यह योजना राष्ट्रीय राजधानी इस्लामाबाद के लिए तैयार मास्टर प्लान के तहत नहीं आती है।

याचिका में आग्रह किया गया था कि इस्लामाबाद के सेक्टर एच 9 में मंदिर निर्माण के लिए आवंटित भूमि को वापस लिया जाना चाहिए और मंदिर के लिए निर्माण धन भी वापस लेना चाहिए। इस याचिका पर सुनवाई करते हुए हाई कोर्ट ने कैपिटल डेवलपमेंट अथॉरिटी (सीडीए) को नोटिस जारी किया था।

गौरतलब हो कि वैसे तो श्रीकृष्ण मंदिर इस्लामाबाद में पहला हिंदू मंदिर होगा। लेकिन रिपोर्ट्स के मुताबिक इससे पहले वहाँ दो और मंदिर थे। उनमें से एक को टूरिस्ट प्लेस बना दिया गया और दूसरा मुकदमेबाजी के चलते बंद पड़ा है।

अब इस श्रीकृष्ण मंदिर का निर्माण इस्‍लामाबाद के H-9 क्षेत्र में 20,000 वर्गफुट में किया जा रहा था। मंगलवार को मल्‍ही ने ही इस मंदिर की आधारशिला रखी थी। नींव रखे जाने के इस कार्यक्रम के दौरान वहाँ उपस्थित लोगों को संबोधित करते हुए मल्‍ही ने जानकारी दी थी कि भारत और पाकिस्तान की आज़ादी से पहले इस्‍लामाबाद और उससे सटे हुए क्षेत्रों में कई हिंदू मंदिर हुआ करते थे।

इनमें सैदपुर गाँव और रावल झील के पास स्थित मंदिर शामिल है। हालाँकि, उन्होंने बताया कि इन मंदिरों को उनके हाल पर छोड़ दिया गया और कभी इस्‍तेमाल नहीं किया गया। वो पड़े रहे और प्रयोग में आए ही नहीं।

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