नई दिल्ली। राजस्थान की राजनीति वर्चस्व की जंग जारी है. विधानसभा के अध्यक्ष सीपी जोशी द्वारा सचिन पायलट समेत 19 विधायकों को दल-बदल के कानून के तहत दिए गए नोटिस पर सोमवार को हाईकोर्ट निर्णय सुना सकता है. ऐसे में पायलट और उनके समर्थक विधायकों को अदालत से राहत मिल भी गई तो उनकी सदस्यता पर तलवार लटकी रहेगी, क्योंकि सीएम अशोक गहलोत ने इसके लिए बकायदा सियासी गोटियां बिछा रखी हैं.
दरअसल, पायलट खेमा के विधायकों का कहना है कि उन्होंने पार्टी के खिलाफ कोई काम नहीं किया है, इसलिए उनके खिलाफ अनुशासन की कोई कार्रवाई वैध नहीं है. वे पार्टी में रहकर अपनी बात रख रहे हैं. यह उनकी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है. इसीलिए स्पीकर के नोटिस को हाई कोर्ट में चुनौती देते हुए इन विधायकों ने कहा है कि विधायक दल की बैठक में भाग नहीं लेने के आधार पर किसी को अयोग्य नहीं ठहराया जा सकता है.
अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच अब आर-पार की लड़ाई है. गहलोत अभी तक पायलट को हर मामले में मात देते जा रहे हैं. कांग्रेस के बागी विधायकों को कोर्ट से राहत मिलती है तो गहलोत खेमा अगली चाल के तौर पर विधानसभा का सत्र बुलाने का चल सकता है. गहलोत सरकार सत्र बुलाने की मांग करेगी ताकि वह बहुमत साबित कर सके.
राज्यपाल कलराज मिश्र से शनिवार को सीएम गहलोत की मुलाकात से यही संकेत मिल रहे हैं. हालांकि इसे शिष्टाचार मुलाकात बताया गया था. लेकिन, सियासी संग्राम के बीच राजनीतिक पंडित इसे महज शिष्टाचार भेंट नहीं बल्कि सियासी दांव के तौर पर सत्र बुलाने की कसरत मान रहे हैं. दिलचस्प बात यह है कि विपक्षी दल बीजेपी ने न तो विधानसभा का सत्र बुलाने की मांग की है न ही उसने सरकार से बहुमत साबित करने को अभी तक कहा है.
माना जा रहा है कि हाईकोर्ट से अगर पायलट खेमे को अगर राहत मिलती है तो गहलोत खेमा विधायकों को घेरने के लिए सरकार फ्लोर टेस्ट करने का दांव चल सकता है. गहलोत ने 102 विधायकों का समर्थन जुटाकर शनिवार को राज्यपाल को सौंप दिया है. ऐसे में गहलोत अपनी सरकार को बचाए रखने के लिए पूरी तरह कॉन्फिडेंट है. ऐसे में सरकार के फ्लोर टेस्ट के लिए मुख्य सचेतक महेश जोशी व्हिप जारी कर देंगे. व्हिप के जरिए विधायकों से कहा जाएगा कि वे विधानसभा में मौजूद रहें और सरकार के पक्ष में मतदान करें.
ऐसे में पार्टी के किसी विधायक ने व्हिप का उल्लंघन किया, यानी सदन में मौजूद नहीं हुआ या सरकार के पक्ष में वोट नहीं डाला, उसके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाएगी. गहलोत इस दांव से पायलट और उनके समर्थक विधायकों को एक तरफ हरियाणा के मानेसर से जयपुर आने के लिए मजबूर कर देगी. ऐसे में अगर वो जयपुर नहीं आते और पार्टी के खिलाफ वोटिंग करते हैं तो संविधान की 10वीं अनुसूची की धारा 21 (1) (ए) के अनुसार उनके खिलाफ कार्रवाई का रास्ता साफ हो जाएगा.
सचिन पायलट खेमे के पास एक ही रास्ता होगा कि वो पार्टी व्हिप का पालन करें. इसके बावजूद अगर वे ऐसा नहीं करते हैं तो पार्टी ऐसे विधायकों को अयोग्य घोषित करने की सिफारिश स्पीकर से कर सकती है. इस सूरत में स्पीकर उसे मानने को बाध्य होंगे. इसका सीधा सा अर्थ है कि विधायकों ने व्हिप का उल्लंघन किया तो वे अयोग्य घोषित कर दिए जाएंगे और फिर अपनी सदस्यता खारिज करने को कोर्ट में चैलेंज नहीं कर पाएंगे.