राजेश श्रीवास्तव
उत्तर प्रदेश में योगी राज की स्थापना के बाद दावा किया गया था कि या तो अपराधी जेल में होंगे या यमराज के पास। बहुत सारे छुटभैये गुंडे मारे भी गए। इत्तिफ़ाक़ से इनमें से ज़्यादातर पिछड़े वर्ग या आरक्षित वर्ग के थे। बड़े बदमाश जिन्होंने मौक़ा देख सत्ता वर्ग के नेताओं का दामन थाम लिया था, वे बचे रहे और ख़ामोशी से अपना ज़रायम का कारोबार चलाते रहे। अदालतें भी समय-समय पर उत्तर प्रदेश सरकार को जंगलराज को लेकर फटकार लगाती रही हैं। उत्तर प्रदेश में अपराध आज से नहीं हमेशा से ग्लैमरस व्यवसाय रहा है।
पहले राजनीति ने अपराधी का उपयोग सत्ता के लिए ढके-छुपे तौर पर किया। फिर अपराधी बंदूक को खादी वाले पायजामे के नाड़े में खोस कर ख़ुद मैदान में आ गए। हरि शंकर तिवारी, विरेंद्र शाही जैसे नाम अपराध और सत्ता के गलियारों में धूम से लिए गए। मुख़्तार अंसारी और बृजेश सिह की रोमानी दुश्मनी, मुन्ना बजरंगी और श्री प्रकाश शुक्ला अपनी कुख्यात दिलेरी की वजह से आज भी जरायम की यूनिवर्सिटी में टॉप पर माने जाते हैं। बिजली, पानी, सड़क जैसी बुनियादी सुविधाओं से जूझता प्रदेश जो आज भी भारत का प्रधानमंत्री तय करता है, उस प्रदेश में रोज़गार के नाम पर अवसर शून्य हैं। कुछ ऐसे भी होते हैं जिनके सपने बड़े होते हैं लेकिन संसाधन और समय नहीं होता और वे मुख़्तार, बृजेश या बजरंगी बनने निकल पड़ते हैं। राजनेताओं का हाथ ऐसे सिर की तलाश में रहता है।
ये पहली घटना नहीं है जब अपराध मुक्त प्रदेश का दावा करने वाली योगी सरकार में पुलिस की वर्दी ख़ून से लाल हुई है। उत्तर प्रदेश में हर दो घंटे में बलात्कार, डेढ़ घंटे में एक बच्चा अपराध का शिकार होता है। सर्वाधिक आपराधिक वारदातों वाले शहरों में राजधानी लखनऊ टॉप पर है। एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) की रिपोर्ट में इस बात का खुलासा हुआ है कि देश के विधायकों और सांसदों में से हर पांचवा जनप्रतिनिधि अपहरण तथा अन्य अपराध में लिप्त है। इसमें भारतीय जनता पार्टी उच्च पायदान पर क़ायम है। जिन 64 सांसद-विधायकों ने अपहरण के आरोप क़बूल किए हैं, उनमें से 16 बीजेपी के हैं।
उत्तर प्रदेश की पुलिस एक बार फिर कटघरे में खड़ी हुई है। सवाल ये कि पुलिस का इकबाल कहां है? क्या यूपी में अपराधियों में दहशत होने का दावा खोखला है? क्या यूपी में अपराधियों का खुल्ला खेल है? हालांकि भले ही योगी सरकार ने कानुपर पुलिस के 11 बड़े पुलिस अधिकारियों पर कार्रवाई की है। लेकिन हर बार क्या कार्रवाई घटना के बाद होगी। सिर्फ यहीं क्यों अभी कुछ दिन पहले ही पत्रकार की हत्या क्या महिला अपराध पर नियंत्रण के दावे को भोथरा साबित करती नहीं दिखती। कानपुर का बिकरू कांड, गाजियाबाद में विक्रम जोशी की हत्या, कानपुर में टेक्निशन का अपहरण, फिर हत्या, अपराध के ढेरों मामलों ने उत्तर प्रदेश पुलिस की सक्रियता पर सवाल खड़ा कर दिया है। कानपुर में विकास दुबे केस में पुलिस की संलिप्तता भी सामने आई थी।
इसके बाद कई पुलिसकर्मियों पर कार्रवाई की गई। भाजपा सांसद रीता जोशी सांसद ने सरिता प्रवाह से बातचीत में पुलिस की कार्यप्रणाली को लापरवाह बताया है। उत्तर प्रदेश में हाल में घटी अपराधिक घटनाओं पर प्रतिक्रिया देते हुए रीता बहुगुणा ने कहा कि पुलिस की लापरवाही बढ़ने से प्रदेश में अपराध बढ़ रहा है। उन्होंने कबूल किया कि पिछले कुछ दिनों में न सिर्फ महिलाओं के खिलाफ होने वाली आपराधिक घटनाओं में बढ़ोत्तरी हुई है, बल्कि कानून व्यवस्था को भी खुली चुनौती दी जा रही है। गाजियाबाद में पत्रकार की हत्या से स्पष्ट होता है कि प्रदेश में महिलाओं पर होने वाले अपराध में कमी नहीं आई।
सरकारी एजेंसियों का डेटा भी इस ओर इशारा करता है कि यूपी में क्राइम देश में सबसे ज्यादा है। 2०18 में देश में 5०.74 लाख से ज्यादा आपराधिक मामले दर्ज हुए थे, उसमें से 11.5% यानी 5.85 लाख मामले यूपी में रिकॉर्ड हुए। महिलाओं के खिलाफ अपराध में भी यूपी टॉप पर है। 2०18 में 59 हजार 445 मामले आए थे, उसमें से 3 हजार 946 बलात्कार के मामले थे। उत्तर प्रदेश में 2०17 में ड्यूटी के दौरान 93 पुलिसकर्मियों की जान गई थी, 2०18 में 7० पुलिसकर्मी ड्यूटी के दौरान शहीद हुए। उत्तर प्रदेश में इस साल 5 लाख 85 हजार 157 क्राइम रिकॉर्ड हुए थे। इस हिसाब से 2०18 में देशभर में जितने भी क्राइम रिकॉर्ड हुए, उसमें से सबसे ज्यादा 11.5% मामले अकेले यूपी में दर्ज हुए थे। वॉयलेंट क्राइम में भी यूपी देश में टॉप पर है। 2०18 में देशभर में 4 लाख 28 हजार 134 वॉयलेंट क्राइम दर्ज हुए थे। इसमें से 65 हजार 155 मामले अकेले यूपी में दर्ज हुए थे। यानी देश में जितने वॉयलेंट क्राइम रिकॉर्ड हुए, उसमें से 15% यूपी में दर्ज हुए थे।
इतना ही नहीं, 2०18 में देश में 29 हजार 17 मर्डर हुए थे, इसमें से सबसे ज्यादा 4 हजार 18 हत्याएं यूपी में हुईं। 1 लाख से ज्यादा किडनैपिग हुई थीं, उसमें से 21 हजार से ज्यादा किडनैपिग यूपी में हुईं। बलात्कार के मामले में भी यूपी तीसरे नंबर पर था। दलितों के खिलाफ अपराध में भी उत्तर प्रदेश टॉप पर है। 2०18 में देशभर में दलितों के खिलाफ अपराध के 42 हजार 793 मामले दर्ज किए गए थे। इसमें से तकरीबन 28% मामले उत्तर प्रदेश में दर्ज हुए थे। इस साल यूपी में दलितों के खिलाफ अपराध के 11 हजार 924 मामले रिकॉर्ड हुए थे। नाबालिग अपराधियों के मामले में यूपी 11वें नंबर पर है।
महिलाओं के खिलाफ अपराध में यूपी टॉप पर रहा। सबसे ज्यादा 59 हजार 445 मामले अकेले यूपी में दर्ज हुए थे। 2०18 में देशभर में महिलाओं के खिलाफ अपराध के जितने मामले दर्ज हुए थे, उसमें से 15.7% मामले यूपी में सामने आए थे। इतना ही नहीं, बलात्कार की कोशिश के मामलों में यूपी पहले नंबर पर था। देशभर में 4 हजार 97 बलात्कार की कोशिश के मामले रिकॉर्ड हुए थे, इसमें से सबसे ज्यादा 661 मामले यूपी में दर्ज हुए थे। बच्चों के खिलाफ अपराध में भी उत्तर प्रदेश देश में पहले नंबर पर है। एनसीआरबी के आंकड़े बताते हैं कि 2०16 से लेकर 2०18 तक यूपी देश का पहला राज्य था, जहां सबसे ज्यादा बच्चों के खिलाफ अपराध के मामले दर्ज किए गए। 2०18 में बच्चों के खिलाफ अपराध के 14% से ज्यादा अकेले यूपी में हुए थे।
इस साल उत्तर प्रदेश में 19 हजार 936 मामले सामने आए थे। आर्थिक अपराध के मामले में भी उत्तर प्रदेश सबसे ऊपर है। 2०18 में देशभर में 1 लाख 56 हजार 268 मामले आर्थिक अपराध के दर्ज किए गए थे। इसमें से 22 हजार 822 मामले सिर्फ यूपी में ही दर्ज हुए थे। 2०18 में साइबर क्राइम के जितने मामले दर्ज हुए थे, उसमें से 23% मामले अकेले उत्तर प्रदेश में दर्ज हुए थे। 2०18 में उत्तर प्रदेश में 6 हजार 28० मामले साइबर क्राइम के रिकॉर्ड हुए थे। एनसीआरबी के डेटा के मुताबिक, 2०18 में उत्तर प्रदेश की अदालतों में 4 लाख 27 हजार 175 मामले ट्रायल के लिए भेजे गए थे।
इसमें से सिर्फ 24 हजार 215 लोगों को ही सजा मिल सकी। इस हिसाब से जितने मामले ट्रायल के लिए आए, उसमें से सिर्फ 5.6% को ही सजा मिली। जबकि, 9 हजार 815 लोगों को सबूतों के अभाव में रिहा कर दिया गया और 37 हजार 44० लोग अदालत से बरी हो गए। इतना ही नहीं 2०18 में देशभर में 2 हजार 4०8 पुलिसकर्मी ड्यूटी के दौरान घायल हुए थे, जिसमें से यूपी के 174 पुलिसकर्मी थे।