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गोधरा पीड़ितों ने राम मंदिर के भूमि पूजन को बताया बलिदान का फल, कहा- सपना पूरा होता दिख रहा है

गोधरा।  आज राम मंदिर के भूमि पूजन के शुभ अवसर पर पूरा अयोध्या रौशनी से जगमगा रहा है। ऐसे में उन लोगों को नहीं भुलाया जा सकता जिनके त्याग और श्रद्धा के कारण आज रामलला टेंट से निकलकर अपने भव्य मंदिर में प्रस्थान के लिए तैयार हैं।

18 साल पहले कारसेवा करके लौट रहे 59 कारसेवकों को गोधरा कांड में जिंदा जलाया गया था। तब से उनके परिवार वाले अपने बलिदान के बदले श्रीराम का भव्य मंदिर देखने के अभिलाषी थे। आज उनका वह सपना पूरा होने जा रहा है।

भगवती बेन ठाकौर राधाबेन की बेटी हैं। वही राधाबेन जिन्होंने 18 साल से अपने घर में एक दीपक जलाया हुआ है और आज भूमि पूजन के साथ ही वह उसकी लौ को तेज करने के लिए दोबारा तेल डालेंगी।

इकोनॉमिक टाइम्स के अनुसार भगवती बताती है, “18 साल पहले, वह लोग मेरे भाई का शव घर पर लेकर आए थे, तभी 28 फरवरी 2002 से मेरी माँ ने दीपक जला रखा है।”

बता दें, राधाबेन ने गोधरा कांड में अपने बेटे राकेश वघेला को खो दिया था। उसके बाद जैसे परिवार तबाह हो गया। 80 वर्षीय सरदारजी वघेला (राकेश के पिता) पैरालाइज्ड हो गए और अब वह बिस्तर से उठ भी नहीं सकते। उनकी माँ को भी इधर से उधर चलने में दिक्कत होती है। उनके पास आजीविका का कोई स्त्रोत नहीं है।

राकेश की पत्नी को सरकार से मुआवजे के रूप में 5 लाख रुपए मिले भी थे। मगर उसने उस राशि का थोड़ा हिस्सा ससुराल के साथ शेयर नहीं किया। राकेश के भाई आज एक सिक्योरिटी गार्ड के रूप में कार्य करते हैं और घर पर आते-जाते रहते हैं।

परिवार के मुखिया का कहना है कि जब भूमि पूजन होगा, तब वह प्रार्थना कर रहे होंगे। उनके बलिदान का आखिरकार उन्हें फल मिल जाएगा। लेकिन ये सच है कि वह अपना सब खो चुके हैं।

राकेश की शादीशुदा बहन भगवती कहती हैं, “मेरे भाई की मृत्यु के बाद किसी ने हमारे बारे में नहीं पूछा। कोई हमसे मिलने नहीं आया। हम कभी पैसे वाले नहीं थे मेरी भाई की पत्नी को मुआवजा भी मिला था।” वह कहती हैं कि राम मंदिर के भूमि पूजन अवसर पर उनकी प्रार्थना यही है कि वह लोग कठिन परिश्रम वाले जीवन से मुक्त हो जाएँ।

इसी प्रकार जेसल सोनी जिन्होंने अपने बहनोई को गोधरा में खोया था। वह भूमि पूजन पर आमंत्रण न पाकर नाराज दिखते हैं और कहते है हाईकोर्ट ने 4 साल पहले 5 लाख रुपए मुआवजा देने के निर्देश दिए थे। लेकिन उन्हें वो पैसा नहीं मिला।

दुर्गा वाहिनी की सदस्य माला रवाल कहती है कि ये वो समय नहीं है जब नकारात्मक कुछ भी कहा जाए। लेकिन ये सच है कि कई ऐसे परिवार हैं जिन्होंने इस संघर्ष में अपने परिवार को खोया।

आज इस अवसर पर गोधरा कांड में घायल होने वाले लोग भी भावुक हैं। मौत के मुँह से निकले कारसेवकों को एक ओर जहाँ अपना सपना पूरा होता सामने दिख रहा है। वहीं दूसरी ओर वह वो मंजर भी नहीं भुला पा रहे जिसे उन्होंने खुद महसूस किया और अपनों को अपनी आँखों के आगे खो दिया।

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, जयंतीभाई पटेल की 56 वर्षीय माता चंपाबेन उस नरसंहार का शिकार होने वाले लोगों में से एक नाम हैं जो उस दिन उस ट्रेन में अपनी एक महिला रिश्तेदार के साथ थी।

वही, महिला रिश्तेदार आज 62 वर्षीय है और अपनी पहचान नहीं बताना चाहतीं। लेकिन उस भयावह मंजर के अनुभवों को साझा करते हुए कहती हैं कि जब आग की लपटें उस दिन उनके कोच तक पहुँची तो उन्होंने अपनी ननद को पकड़ा हुआ था। लेकिन पता नहीं कैसे उन दोनों की पकड़ ढीली पड़ गई और वह तो किसी तरह खिड़की से बच निकली मगर चंपाबेन नहीं बच पाईं।

जयंतीभाई की आंटी और चंपाबेन की वह रिश्तेदार कहती हैं, “पिछली बातों को लेकर किसी के मन में नफरत नहीं। हमारा मानना है कि यह भगवान के लिए किया गया एक बलिदान था। मैं मंदिर निर्माण से बहुत खुश हूँ। अगर आज यह महामारी न होती तो यह खुशी दोगुनी हो जाती।”

बता दें चंपाबेन के 58 वर्षीय बेटे जयंतीभाई एक किसान हैं। उन्हें इस बात कोई गम नहीं है कि वह आज अयोध्या में नहीं मौजूद हैं। वह कहते हैं कि अगर कोरोना नहीं भी फैला होता तो इतने लोगों को एक जगह कर पाना बहुत मुश्किल होता।

वहीं, गुजरात के वादनगर के नवीनचंद्र ब्रह्मदत्त जिनकी पत्नी भी आगजनी में मारी गई थीं वह कहते हैं कि एक बार कोरोना वायरस जैसे ही खत्म होगा वह अपने दोनों बच्चों को लेकर एक दिन अयोध्या लेकर जाएँगे और रामलला के दर्शन करवाँएगे।

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