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परिवार ने लगाया सनसनीखेज आरोप- बदमाशों के झुंड से घिर गए थे सुशांत सिंह राजपूत

बॉलीवुड अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत के परिवार ने सनसनीखेज आरोप लगाया है। परिवार ने  कहा है कि सुशांत सिंह राजपूत बदमाशोें के झुंड से घिर गए थ। सुशांत की रहस्यमय मौत के तकरीबन दो माह बाद उनक परिवार के नाम पर एक कथित पत्र वायरल हो रहा है। दुख के सागर में डूबे परिवार की तरफ से लिखे नौ पृष्ठों के इस पत्र में कुछ बातें सीधी तो कुछ इशारे में कही गई हैैं।

दिवंगत अभिनेता सुशांत के परिवार को मिल रही धमकियों के बीच  नौ पेज का पत्र जारी

बता दें कि सुशांत के जीजा ओपी सिंह हरियाणा के वरिष्‍ठ पुलिस अफसर हैं अऔर फिलहाल फरीदाबाद के पुलिस कमिश्‍नर हैं। सुशांत के पिता केके सिंह अभी दामाद ओपी सिंह और बेटी रानी के साथ फरीदाबाद में रह रहे हैं। पत्र की शुरुआत फिराक जलालपुरी के शेर से हुई है। लिखा है..‘तू इधर-उधर की न बात कर, ये बता कि काफिला क्यों लुटा, मुझे रहजनों से गिला नहीं, तिरी रहबरी का सवाल है।’

जीजा ओपी सिंह व बहन के साथ सुशांत सिंह राजपूत की फाइल फोटो।

नाम चमकाने के लिए फर्जी दोस्त-भाई-मामा बन कर रहे दावे

पत्र में लिखा है, कुछ साल पहले न कोई सुशांत को जानता था, न उसके परिवार को। आज उसकी हत्या को लेकर करोड़ों लोग व्यथित हैं। नाम चमकाने के लिए कई फर्जी दोस्त-भाई-मामा बन अपनी-अपनी हांक रहे हैं। ऐसे में बताना जरूरी हो गया है कि आखिर सुशांत का परिवार होने का मतलब क्या है?

सुशांत के माता-पिता कमाकर खाने वाले लोग थे। हंसते-खेलते पांच बच्चे थे। उनकी परवरिश ठीक हो, इसलिए गांव से शहर आ गए। बच्चों के सपनों पर पहरा नहीं लगाया। पिता के हवाले से बताया गया है कि पहली बेटी में जादू था। कोई आया और चुपके से उसे परियों के देश ले गया। दूसरी बेटी राष्ट्रीय टीम के लिए क्रिकेट खेली। तीसरी ने कानून की पढ़ाई की तो चौथी ने फैशन डिजाइन में डिप्लोमा किया। सबसे छोटा सुशांत था। ऐसा, जिसके लिए सारी माएं मन्नत मांगती हैं।

जो हुआ, वह दुश्मन के साथ भी न हो

पत्र में काह गया है कि परिवार को पहला झटका तब लगा जब सुशांत की मां असमय चल बसीं। सुशांत के सिनेमा में हीरो बनने की बात उसी दिन चली। अगले आठ-दस साल में वह हुआ, जो लोग सपनों में देखते हैं। लेकिन अब जो हुआ है वो दुश्मन के साथ भी ना हो। एक नामी आदमी को ठगों-बदमाशों लालचियों का झुंड घेर लेता है। कहा जा रहा है उनकी (सुशांत के पिता की) लापरवाही से सुशांत मरा। इतने से मन नहीं भरा तो मानसिक बीमारी की कहानी चला दी।

तमाशा देखने वाले यह भी सोचें

पत्र में कहा गया है कि तमाशा करने वाले और तमाशा देखने वाले यह न भूलें कि वे भी यहीं हैं। क्या गारंटी है कि कल उनके साथ ऐसा नहीं होगा? हम देश को उधर लेकर क्यों जा रहे हैं जहां जागीरदार अपने गुर्गों से मेहनतकशों को मरा देते हैैं।

पैसे के दम पर हनी ट्रैप गैंग बदनाम करने वापस लौटा

परिवार के सब्र का बांध तब टूटा जब महीने भर के भीतर ही महंगे वकील और नामी पीआर एजेंसी से लैस ‘हनी ट्रैप’ गैंग डंके की चोट पर वापस लौटता है। सुशांत को लूटने-मारने से तसल्ली नहीं हुई। परिवार का भय सही साबित हो जाता है। अंग्रेजों के दूसरे वारिस मिलते हैं। दिव्यचक्षु से देखकर बता देते हैं कि ये तो जी ऐसे हुआ है। व्यावहारिक आदमी हैं। पीडि़त से कुछ मिलना नहीं, सो मुलजिम की तरफ हो लेते हैं।

पागल कहते हैैं ये लोग

पत्र में व्यथित पिता केके सिंह का आरोप है कि अंग्रेजों के एक और बड़े वारिस तो जलियांवाला-फेम जनरल डायर को भी मात दे देते हैं। सुशांत के परिवार को कहते हैं कि तुम्हारा बच्चा पागल था, सुसाइड कर सकता था। सवाल सुशांत की निर्मम हत्या का है। सवाल ये भी है कि क्या वे लोग न्याय की भी हत्या कर देंगे?

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