प्रयागराज/लखनऊ। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने मोहर्रम पर ताजिया का जुलूस निकालने की अनुमति मांगने की याचिका को खारिज कर दिया है। कोर्ट में शनिवार को मोहर्रम में ताजिये को जुलूस के साथ कर्बला में दफन करने की मांग को लेकर याचिका दाखिल की गई थी।
जस्टिस शशिकांत गुप्ता और जस्टिस शमीम अहमद की डिवीजन बेंच ने याचिका पर शुक्रवार को सुनवाई के बाद फैसला सुरक्षित रखा था। जिसे आज सुनाया गया।इलाहाबाद हाईकोर्ट ने धार्मिक समारोहों के आयोजन पर लगी रोक को हटाकर मोहर्रम का ताजिया निकालने की अनुमति देने से इन्कार कर दिया है। इसके साथ ही कोर्ट ने शासनादेश को विभेदकारी नहीं मानते हुए चुनौती याचिकाओं को खारिज कर दिया है।
यह आदेश जस्टिस शशिकांत गुप्ता व जस्टिस शमीम अहमद की खंडपीठ ने रोशन खान सहित कई अन्य की जनहित याचिकाओं पर फैसला सुनाते हुए दिया है। कोर्ट ने कहा है कि सरकार ने कोरोना संक्रमण फैलने की आशंका को देखते हुए सभी धार्मिक समारोहों पर रोक लगायी है।किसी समुदाय विशेष के साथ भेदभाव नहीं किया गया है। जन्माष्टमी पर झांकी व गणेश चतुर्थी पर पंडाल पर भी रोक लगी है। उसी तरह मोहर्रम में ताजिया निकालने पर भी रोक लगी है। किसी समुदाय को टार्गेट करने का आरोप निराधार है। सरकार ने कोरोना फैलाव रोकने के लिए कदम उठाया है।
याचिका पर वरिष्ठ अधिवक्ता वीएम जैदी, एसएफए नकवी, केके राय ने बहस की। इनका का कहना था कि धाॢमक समारोहों पर लगी रोक धार्मिक स्वतंत्रता के मूल अधिकारों का हनन है। सरकार धार्मिक भेदभाव कर रही है। कई त्योहार मनाने की छूट दी गयी है और ताजिया निकालने की अनुमति नही दी जा रही है। राज्य सरकार के अपर मुख्य स्थायी अधिवक्ता रामानंद पांडेय का कहना था धार्मिक स्वतंत्रता पर कानून व्यवस्था, नैतिकता, लोक स्वास्थ्य को देखते हुए प्रतिबंधित किया जा सकता है। सरकार ने अगस्त माह में सभी धार्मिक समारोहों पर रोक लगायी है। किसी के साथ भेदभाव नहीं किया गया है। कोविड-19 के प्रकोप को देखते हुए धार्मिक कार्यक्रम घरों में रहकर मनाने का अनुरोध किया गया है। कोर्ट ने दोनों पक्षों की बहस सुनने के बाद फैसला सुरक्षित कर लिया था। शनिवार को दोपहर बाद कोर्ट ने अपना फैसला सुनाते हुए धार्मिक कार्यक्रम पर रोक के शासनादेशों के खिलाफ याचिकाएं खारिज कर दी हैं।