नई दिल्ली। भारत में घुसपैठ और यहाँ अवैध तरीके से रहने वाले रोहिंग्या मुसलमानों को भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए ख़तरा माना जाता रहा है। भारत में उनकी उपस्थिति को लेकर जाहिर की जा रही चिंताओं के बीच रोहिंग्या मुसलमानों ने अपनी फुटबॉल टीमें बना ली है। साथ ही वो लोकल टूर्नामेंट्स में भी हिस्सा ले रहे हैं। अब ऐसा प्रतीत होता है कि फुटबॉल के जरिए घुसपैठ को नॉर्मलाइज करने की कोशिश की जा रही है।
इस फुटबॉल टीम का नाम रोहिंग्या FC है और इसने कई टूर्नामेंट्स में हिस्सा भी लिया है। यहाँ तक कि उन्होंने ये छिपाने की भी कोशिश नहीं की है कि वो फुटबॉल का इस्तेमाल घुसपैठ और अवैध प्रवास को सही साबित करने के लिए कर रहे हैं। दिल्ली के एक ‘युवा रोहिंग्या नेता’ अली जौहर का कहना है कि रोहिंग्या मुसलमानों को एक ख़ास विचारधारा वाले चश्मे से देखा जाता है। उनका कहना है कि उनके समुदाय को लेकर काफी गलत सूचनाएँ और धारणाएँ हैं।
उन्होंने कहा कि फुटबॉल से सकारात्मक बदलाव आया है और वो लोग दुनिया को ये बताने में कामयाब रहे हैं कि वो उन्हीं में से एक हैं, एक सामान्य मनुष्य हैं। नेता ने आगे बताया कि इसके जरिए उनलोगों के भारत में भी कई दोस्त बने हैं। उन्होंने कहा कि फुटबॉल से सकारात्मक बदलाव तो आए हैं लेकिन इसे बनाए रखना एक चुनौती है। 2018 में रोहिंग्या मुसलमानों ने ‘यूनाइटेड नेशंस हाई कमीशन फॉर रिफ्यूजीज’ द्वारा आयोजित एक टूर्नामेंट में भी हिस्सा लिया था।
ये टूर्नामेंट हैदराबाद के घांसी बाजार स्थित कुली क़ुतुब शाह स्टेडियम में हुआ था। इसमें 16 टीमों ने हिस्सा लिया था। इनमें जलापल्ली, किशनबाग और बालपुर रिफ्यूजी कैम्पों की 3 रोहिंग्या मुसलमानों की फुटबॉल टीमें शामिल थीं। बालपुर के 24 वर्षीय खिलाडी अब्दुल्ला का कहना है कि वो फुटबॉल इसीलिए खेल रहे हैं, ताकि लोग रोहिंग्या को सकारात्मक दृष्टि से देखें। आयोजकों को भी रोहिंग्या टीमों के टूर्नामेंट में हिस्सा लेने से ख़ुशी है।
एसोसिएशन ने रोहिंग्या मुसलमानों की टीम को प्रशिक्षण देने के लिए एक कोच की नियुक्ति से लेकर अपने खिलाड़ियों को उनके साथ प्रैक्टिस करने का भी ऑफर दिया। कई रोहिंग्या खिलाड़ियों के परिवार बांग्लादेश से आए हुए हैं। ‘रोहिंग्या ह्यूमन राइट्स इनिशिएटिव’ सहित कई मानवधिकार संगठन भी उनके समर्थन में उतर आए हैं। हालाँकि, भारत सरकार और इसके कई मंत्री रोहिंग्याओं के खिलाफ अपने रुख पर कायम हैं।