पिता सुलभ शौचालय में काम करते थे, मां सिलाई कर घर खर्च में कुछ पैसे जोड़ लेती थी । लेकिन बेटी सपने ऊंचे थे, उसे खेल में करियर बनाना था । किसी तरह मां-बाप ने दिन रात एक कर अपनेी बेटी के सपने को पूरा किया । वो एशियन गेम्स तक जा पहुंची, पूरी मेहनत से गोल्ड मेडल लाई । उसकी मेहनत का सम्मान हुआ, राज्य सरकार ने विक्रम अवॉर्ड से सम्मानित करने का फैसला भी किया । लेकिन परिवार के पास ट्रेन में रिजर्वेशन के भी पैसे नहीं थे । जनरल डिब्बे में बैठकर सम्मान लेने पहुंची । ये कहानी संघर्ष से सफलता की है । जूही झा के बारे में और आगे पढ़ें ।
मध्य प्रदेश की खो-खो प्लेयर है जूही झा । जिसने सपने भी देखे और उन्हें पूरा भी कर दिखाया । लेकिन खेल कोटे से सरकारी नौकरी मिलने की आशा अब तक पूरी नहीं हो पाई है । साल 2018 में तत्कालीन खेल मंत्री यशोधरा राजे सिंधिया ने उन्हें MP के सबसे ऊंचे खेल सम्मान, विक्रम अवॉर्ड से नवाजा था । आज जूही, इंदौर में बाणगंगा में रहती है, एक झोपड़ी में पिता सुबोध कुमार झा और मां रानी देवी के साथ जिंदगी बस गुजर रही है ।
घर के आर्थ्थक हालात अच्छे नहीं है, सरकारी नौकरी मिल सके इसके लिए वो दो साल से नौकरी के लिए सरकारी दफ्तरों के चक्कर काट रही है । आपको बता दें, विक्रम पुरस्कार विजेताओं को सरकार की ओर से शासकीय नौकरी मिलती है, लेकिन जूही दो साल बाद भी इस लाभ से वंचित है । जूही ने 2016 में एशियन चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीता था, इसी वर्ष जूही झा को विक्रम पुरस्कार भी दिया गया । नियम के अनुसार जूही को एक साल के भीतर ही नौकरी मिल जानी चाहिए थी, लेकिन वो आज तक इससे महरूम है । जूही ने कहा कि – ‘मुझे उम्मीद थी कि नए पुरस्कारों की घोषणा के साथ पुराने पुरस्कार प्राप्त खिलाड़ियों के लिए भी नौकरी की घोषणा होगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ।’
मामले में खेल मंत्रालय के संयुक्त संचालक डॉ. विनोद प्रधान से जब मीडिया ने सवाल किए तो उन्होने बताया कि जूही झा का केस ‘मेरी जानकारी में है । उन्होने बताया कि शासन स्तर पर विक्रम पुरस्कार के बाद उत्कृष्ट घोषित करने की प्रक्रिया वल्लभ भवन में होती है । हर विभाग से जानकारी एकत्र करते हैं । उन्होने कहा कि – वो ही बताते हैं कि कितनी वैकैंसी उस विभाग में हैं ।1997 के कुछ प्रकरण थे, जिसमें उत्कृष्ट सर्टिफिकेट देने के बाद उसे वापस लिया गया, इस वजह से थोड़ी देर हुई है लेकिन अगले हफ्ते तक निराकरण हो जाएगा ।