राजेश श्रीवास्तव
कभी प्रधानमंत्री ने जब यह चुनावी जुमला दिया था कि मैं देश नहीं झुकने दूंगा, मैं देश नहीं बिकने दूंगा। तब देश की जनता ने उन पर आंख बंद करके भरोसा कर लिया था कि शायद अब देश की तस्वीर बदले और देश में नये उपक्रम लगेंगे। लोगों को रोजगार मिलेगा। नयी फैक्ट्रियां लगेंगी। लेकिन यह सब अब धीरे-धीरे नींद टूटने के बाद बिखरते हुए सपने जैसा लगने लगा है। जैसे-जैसे सरकार का कार्यकाल आगे बढ़ रहा है हर दिन एक नये उपक्रम की हिस्सेदारी निजी संस्थानों को दिये जाने की खबर आ जाती है। भले ही यह खबरें सुर्खियां नहीं बनतीं। क्योंकि अब सुर्खियां चैनलों की वहीं खबरें बनती हैं जिन्हें सरकार चाहती है। इलेक्ट्रानिक मीडिया ने भी अपनी जिम्मेदारियों की हिस्सेदारी शायद किसी को दे दी है। हवाई अड्डों, रेलवे, बैंकों आदि के बाद अब सरकार आईआरसीटीसी और भारतीय जीवन बीमा निगम (एलआईसी) की हिस्सेदारी भी निजी संस्थानों को देने की रणनीति पर काफी आगे बढ़ गयी है।
जानकारी के अनुसार देश की सबसे बड़ी इंश्योरेंस कंपनी एलआईसी-भारतीय जीवन बीमा निगम के आईपीओ लाने के प्रोसेस को सरकार ने तेज कर दिया है। लेकिन शेयर बाजार में इसकी लिस्टिंग कुछ अलग हो सकती है। देश की सरकारी बीमा कंपनी एलआईसी का आईपीओ भारत का अब तक का सबसे बड़ा आईपीओ साबित हो सकता है। भारतीय जीवन बीमा निगम की 25 फीसदी हिस्सेदारी बेचने की योजना के तहत सरकार रिटेल इन्वेस्टर्स को बोनस और डिस्काउंट देने पर विचार कर रही है। डिपार्टमेंट ऑफ फाइनेंशियल सर्विसेज ने एलआईसी में हिस्सेदारी बेचने का ड्राफ्ट तैयार किया है और इसे सेबी, इरडा और नीति आयोग समेत संबंधित मंत्रालयों के पास भेजा गया है। पूरे मामले की जानकारी रखने वाले एक सूत्र ने बताया कि सरकार कंपनी में अपनी हिस्सेदारी को 1०० फीसदी से घटाकर 75 फीसदी तक सीमित करना चाहती है। सूत्रों ने बताया कि सरकार एलआईसी में में अलग अलग किस्तों में कुल 25% तक हिस्सेदारी बेच सकती है। रिटेल इन्वेस्टर्स और कर्मचारियों के लिए 1०% तक डिस्काउंट मिल सकता है.। 6 बड़े बदलाव का प्रस्ताव है। कैबिनेट ड्राफ्ट नोट जारी, जल्द मंजूरी मिलेगी। संसद के अगले सत्र में मनी बिल के तौर पर एक्ट में बदलाव पेश हो सकता है। एलआईसी की हिस्सेदारी बेचने के लिए सरकार की ओर से एलआईसी ऐक्ट, 1956 में बदलाव भी किया जाएगा। एलआईसी की स्थापना इसी ऐक्ट के तहत की गई थी। एलआईसी कंपनीज ऐक्ट के तहत नहीं चलती है बल्कि यह एक स्वायत्त संस्था है और इसका संचालन एलआईसी ऐक्ट, 1956 के तहत किया जाता है। कैबिनेट से मंजूरी मिलने के बाद एलआईसी ऐक्ट में संशोधन के प्रस्ताव को सरकार संसद में पेश करेगी।
मोदी सरकार को कोरोना काल में एलआईसी के आईपीओ से बड़ी रकम जुटने की उम्मीद है। सरकार का मानना है कि इस दौर में कल्याणकारी योजनाओं पर खर्च बढ़ने और टैक्स में कमी होने के अंतर की भरपाई एलआईसी की हिस्सेदारी को बेचने से पूरी हो जाएगी। शायद यही वजह है कि सरकार ने एलआईसी की 25 फीसदी हिस्सेदारी बेचने का फैसला लिया है, जबकि पहले 1० फीसदी स्टेक ही बेचने की योजना थी।
वहीं केंद्र सरकार ने आईआरसीटीसी की हिस्सेदारी बेचने की तैयारी शुरु कर दी है। सरकार इंडियन रेलवे कैटरिग एंड टूरिज्म कॉरपोरेशन (आईआरसीटीसी) की 15 से 2० फीसदी हिस्सेदारी प्राइवेट हाथों में सौंपने की योजना बना रही हैं। सरकार इसे ओएफएस रूट के जरिए करेगी। सरकार इस ट्रांजैक्शन को कम से कम किस्तों में पूरा करने की कोशिश करेगी। आपको बता दें कि पिछले साल ही आईआरसीटीसी का आईपीओ (आईआरसीटीसी आईपीओ) लॉन्च किया था। जिसके बाद अब मोदी सरकार आईआरसीटीसी अपनी 15-2० फीसदी हिस्सेदारी बेचने की तैयारी में है। सरकार ऑफर फॉर सेल (ओएफएस) के माध्यम से ये हिस्सेदारी बेचने की तैयारी की है। निवेश व सार्वजनिक संपत्ति प्रबंधन विभाग ने पिछले महीने मर्चेंट बैंकर्स से 1० सितंबर तक आईआरसीटीसी में स्टेक सेल का प्रबंधन करने के लिए बोलियां मंगाई थीं। आपको बता दें कि आईआरसीटीसी में 87.4० फीसदी हिस्सेदारी सरकार के पास है। अब सरकार अपनी इस हिस्सेदारी को कम करके 75 फीसदी पर लाने की तैयारी कर रही है। सेबी के पब्लिक होल्डिंग नॉर्म को ध्यान में रखकर सरकार अब अपनी हिस्सेदारी बेचने की तैयारी कर रही है।
शायद आप सोच रहे होंगे कि कोरोना कालखंड के चलते पूरी दुनिया की यही स्थिति है। हर देश आर्थिक संकट से जूझ रहा है। तो आपको यह भी बताते चलें कि केंद्र सरकार की यह नीतियों कोरोना काल खंड से पहले की हैं। सरिता प्रवाह ने पिछले वर्ष अक्टूबर में इस बाबत लिखा था कि केंद्र सरकार एलआईसी को बेचने पर काम कर रही है। सरकार की नीतियां ऐसी नहीं कि वह कुछ नया गढ़े, लेकिन ऐसे देश कब तक चलेगा, यह भी विचार करने की जरूरत है।