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ममता बनर्जी ने मुगल हरम पर रिसर्च कर पाई थी PhD ‘डिग्री’… बस वो यूनिवर्सिटी दुनिया में नहीं है

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पहले कॉन्ग्रेस में हुआ करती थीं। जयप्रकाश नारायण की कार पर नाच कर विरोध जताना हो या जाधवपुर से दिग्गज वामपंथी नेता सोमनाथ चटर्जी को हराना हो, ये सब कारनामे उन्होंने बतौर कॉन्ग्रेस नेता ही किए थे। लेकिन, क्या आपको पता है कि उस वक़्त ममता बनर्जी ‘अमेरिका के ‘ईस्ट जॉर्जिया यूनिवर्सिटी’ से Ph.D होने का दावा करती थीं और अपने नाम में ‘डॉक्टर’ भी लगाती थीं।

जबकि, असली बात ये है कि इस नाम की कोई यूनिवर्सिटी है ही नहीं। हाँ, अमेरिका के एथेंस में लोकप्रिय ‘यूनिवर्सिटी ऑफ जॉर्जिया’ ज़रूर है, जो पिछले 235 वर्षों से सेवा दे रहा है। मार्च 2, 1985 को ‘द टेलीग्राफ’ में प्रकाशित एक लेख में ‘यूनाइटेड स्टेट्स एजुकेशनल फाउंडेशन इन इंडिया (USEFI)’ के हवाले से इसका खुलासा किया गया था कि जिस यूनिवर्सिटी से ममता बनर्जी Ph.D होने का दावा करती हैं, उसका कोई अस्तित्व ही नहीं है।

ममता बनर्जी कलकत्ता विश्वविद्यालय से ‘इस्लामिक स्टडीज’ में MA हैं। उन्होंने दावा किया था कि उन्हें 1982 में अमेरिका के ‘ईस्ट जॉर्जिया यूनिवर्सिटी’ में ‘मुग़ल हरम का राज्य और उसकी नीतियों पर प्रभाव’ विषय पर रिसर्च में PhD की डिग्री मिली थी और इस तरह वो अपने नाम में ‘डॉक्टर’ लगा सकती हैं। उनका दावा था कि ये पेपर उन्होंने कलकत्ता विश्वविद्यालय के प्रोफेसर करुणा पडा दत्ता के निर्देशन में तैयार किया था।

बाद में पता चला कि न सिर्फ ममता बनर्जी, बल्कि उनकी प्रोफेसर करुणा की भी डॉक्टरेट की डिग्री फर्जी थी। दोनों गुरु-शिष्य ने उसी ‘यूनिवर्सिटी’ से Ph.D होने का दावा किया था। ममता बनर्जी ने बताया था कि प्रोफेसर पीके महेश तब ‘ईस्ट जॉर्जिया यूनिवर्सिटी’ के एडमिशन काउंसलर थे, जिन्हें ये थीसिस भेजी गई थी। इसके बाद उन्हें 500 डॉलर देकर ओरिजिनल डिग्री लेने को कहा गया। उन्हें एक ‘प्रोविजनल सर्टिफिकेट’ भी मिला था।

USEFI ने भी कहा था कि अगर कोई भी व्यक्ति इस नाम की यूनिवर्सिटी का प्रतिनिधित्व करने या इससे जुड़े होने का दावा करता है, तो वो फ्रॉड है। इन यूनिवर्सिटी को लेकर संस्था के दफ्तर में कई छात्रों के सवाल आने लगे थे, जिसके जवाब में उसने ऐसा कहा। साथ ही इस ‘ईस्ट जॉर्जिया यूनिवर्सिटी’ के जिस ‘अमेरिकन इंटरनेशनल यूनिवर्सिटी’ से जुड़े होने का दावा किया जा रहा था, उसकी मान्यता ही नहीं थी।

इसे न तो अन्य विश्वविद्यालयों की मान्यता प्राप्त थी और न ही सरकारों ने उसे पंजीकृत किया था। अमेरिका में उस वक्त इसी तरह जाली डिग्रियों की फैक्ट्री चलाने वाले कुछ लोगों को जेल भी भेजा गया था। इसका एक प्रोस्पेक्ट्स भी था, जिसमें वो छात्रों के स्तर के हिसाब से उसे डिग्री देने का वादा करता था। तब सांसद रहीं ममता बनर्जी ने कहा था कि उन्होंने प्रोफेसर दत्ता को ये समझ कर थीसिस भेजा कि उन्हें इसके लिए अमेरिका नहीं जाना पड़ेगा।

प्रोफेसर दत्ता ने इस विवाद पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा था कि उन्हें कोलकाता में बतौर रिसर्च गाइड काम करने के लिए पीके महेश ने ऑथराइज किया है। उन्होंने पूछा था कि जब इस यूनिवर्सिटी को लेकर इतनी गड़बड़ियों की बात सामने आ रही है तो फिर पीके महेश देश की राजधानी में बैठ कर कैसे अपना दफ्तर चला रहे हैं? इस घटना के सामने आने के बाद ममता बनर्जी की उस वक़्त भी किरकिरी हुई थी।

पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव सिर पर है, ऐसे में सोशल मीडिया में एक बार फिर से लोग इस विवाद को याद कर रहे हैं। ममता बनर्जी ‘जय श्री राम’ से चिढ़ने को लेकर और भाजपा कार्यकर्ताओं पर लगातार हो रहे तृणमूल कॉन्ग्रेस के गुंडों द्वारा हमले की खबरों पर पहले से ही विवादों में हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की डिग्री को लेकर विपक्षी दलों ने खूब मुद्दा बनाया था, जो फुस्स हो गया था। हाल ही में नेताजी सुभाष चंद्र बोस के जयंती समारोह में मोदी और ममता एक मंच पर दिखे थे।

हाल ही में इसी तरह के एक मामले में निधि राजदान की भी बेइज्जती हुई थी। कुछ महीने पहले निधि ने बताया था कि मैसाचुसेट्स के कैम्ब्रिज स्थित हॉवर्ड यूनिवर्सिटी में उन्होंने बतौर एसोसिएट प्रोफेसर (जर्नलिज्म) का ऑफर मिला है। फिर उन्होंने खुद को ‘फिशिंग अटैक’ का शिकार बताते हुए कहा था कि हार्वर्ड यूनिवर्सिटी से जो ऑफर मिला था, वह फेक था। जबकि हॉवर्ड में ऐसा कोई विभाग ही नहीं था।

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