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बिहार में साथ, पश्चिम बंगाल में घात

नई दिल्ली। बिहार चुनाव में कांग्रेस और वामपंथी दलों के साथ गठबंधन करके एनडीए को कांटे की टक्कर देने वाले आरजेडी नेता तेजस्वी यादव ने पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में उनका साथ छोड़कर अपनी अलग सियासी राह चुनी है. बंगाल चुनाव में कांग्रेस-लेफ्ट गठबंधन की ओर से आरजेडी को कुछ सीटों का ऑफर भी दिया जा रहा था. इसके बावजूद तेजस्वी यादव ने कांग्रेस-लेफ्ट मोर्चा से गठबंधन करने की बजाय ममता बनर्जी की टीएमसी के साथ जाना मुफीद समझा. ऐसे में सवाल उठता है कि बंगाल में आरजेडी के बिहार के अपने सहयोगियों को छोड़कर टीएमसी को बिना शर्त समर्थन देने के पीछे आखिर क्या वजह है?

बिहार में तेजस्वी यादव अपनी पार्टी आरजेडी को नंबर वन की पार्टी बनाने के बाद देश के दूसरे राज्यों में पार्टी के विस्तार की संभावनाएं तलाश रहे हैं. असम में बीजेपी के खिलाफ लड़ने के लिए तेजस्वी के सामने एक ही विकल्प था, जिसके चलते उन्होंने कांग्रेस की अगुवाई वाले महागठबंधन के साथ रहना बेहतर समझा. वहीं, पश्चिम बंगाल में तेजस्वी के सामने दो विकल्प थे. पहला कांग्रेस-लेफ्ट गठबंधन और दूसरा टीएमससी. इन्हीं दोनों में से एक को चुनना था, जिसमें उन्होंने टीएमसी के साथ जाने का फैसला किया.

तेजस्वी यादव ने बंगाल कांग्रेस-लेफ्ट में दिलचस्पी नहीं ली और दो दिन कोलकाता में बैठकर मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से मुलाकात का इंतजार करते रहे. आखिरकार सोमवार को तेजस्वी की ममता बनर्जी से मुलाकात हुई, लेकिन दोनों शीर्ष नेताओं में तालमेल या सीटों के लेन-देन पर बातें सामने नहीं आ सकीं. तेजस्वी ने बिना शर्त टीएमसी के साथ चुनाव में जाने की घोषणा कर दी, जिसके चलते बिहार के बाहर आरजेडी के साथ कांग्रेस-वाम दलों के गठबंधन की लालसा धरी की धरी रह गई.

वहीं, ममता बनर्जी ने कहा कि वह लालू प्रसाद यादव का बहुत सम्मान करती हैं, हम लड़ रहे हैं तो तेजस्वी भाई लड़ रहे हैं. अगर तेजस्वी लड़ रहे हैं तो हम लड़ रहे हैं. यह संदेश भाजपा को जाना चाहिए. आप जान लीजिए बिहार में उनकी सरकार नहीं टिकेगी. बंगाल में भी आपको कुछ नहीं मिलने वाला है.

हालांकि, कांग्रेस-लेफ्ट ने गठबंधन में आरजेडी सीटें देने की गुंजाइश बना रखी थी. कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अधीर रंजन चौधरी ने बताया है कि वाम दलों के साथ अब तक हुई चर्चा में 92 सीटें कांग्रेस के लिए फाइनल हो गई है. हमने लेफ्ट से 130 सीटों की डिमांड रखी थी, जिसमें हम आरजेडी और एनसीपी को कुछ सीटें देने की गुंजाइश रखी थी. एक तरह से जाहिर होता है कि कांग्रेस ने आरजेडी के साथ गठबंधन के सपने संजोय रखे थे, लेकिन पूरे नहीं हो सके.

बिहार के वरिष्ठ पत्रकार संजय सिंह कहते हैं कि बंगाल की सीएम ममता बनर्जी और आरजेडी प्रमुख लालू यादव का करीबी रिश्ता रहा है. बीजेपी के खिलाफ कई मुद्दों पर दोनों साथ खड़े नजर आए है. इसीलिए तेजस्वी ने बंगाल में कांग्रेस-लेफ्ट गठबंधन बजाय टीएमसी के साथ जाने का निर्णय किया है. इसके पीछे असल वजह यह है कि बंगाल में जिस तरह के मुकाबला होने की संभावना है, उससे जाहिर होता है कि बीजेपी और टीएमसी की सीधी लड़ाई है. ऐसे में तेजस्वी टीएमसी के साथ जाकर यह संकेत देना चाहते हैं कि बीजेपी को खिलाफ लड़ने वाले दलों के साथ हैं.

माना जाता है कि इसी वजह के चलते तेजस्वी ने पिछले दो सप्ताह से अपने दो वरिष्ठ नेता अब्दुल बारी सिद्दीकी और श्याम रजक को टीएमसी के साथ बातचीत के लिए लगा रखा था. आरजेडी के इन दोनों ने ममता के भतीजे अभिषेक बनर्जी से मुलाकात करके बंगाल में आरजेडी की संभावनाओं पर बात रखी थी. हालांकि, बाद तेजस्वी ने खुद पहल करके ममता से मुलाकात की और बिना शर्त समर्थन का ऐलान किया है.

तेजस्वी-ममता के मुलाकात के बाद आरजेडी नेताओं ने बीजेपी के खिलाफ बिहार से बंगाल तक जंग जारी रहने का दावा किया. तेजस्वी यादव के साथ बंगाल चुनाव के मोर्चे पर लगे आरजेडी के राष्ट्रीय महासचिव श्याम रजक ने दावा किया कि उनकी प्राथमिकता में सीटें नहीं हैं. हम पश्चिम बंगाल में बीजेपी को हराने-भगाने के लिए एक हुए है. लालू प्रसाद यादव का स्पष्ट मानना है कि विपक्ष के लिए यह समय देश के लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा, विचारधारा की प्रतिबद्धता तथा सिद्धांतों की स्थिर राजनीति का है. इसीलिए टीएमसी के साथ आरजेडी की कोई शर्त नहीं है और हम बिना शर्त साथ आए है.

बता दें कि तेजस्वी यादव चाहते थे बंगाल में सभी विपक्षी दल एक साथ मिलकर बीजेपी के खिलाफ चुनाव लड़ें. इसके लिए बकायदा उन्होने बयान भी दिया था. तेजस्वी ने कहा था कि बेहतर ये होगा कि अगर कांग्रेस और लेफ्ट पार्टियां ममता बनर्जी की पार्टी टीएमसी के साथ गठबंधन करके लड़ें, जिससे बीजेपी को रोका जा सके. साथ ही उन्होंने कहा कि ममता बनर्जी के साथ हमारे अच्छे संबंध हैं. बंगाल की जनता की भी इच्छा होगी कि अच्छा हो अगर तीनों पार्टियां एक साथ मिलकर चुनाव लड़ें. माना जा रहा है कि तीनों के एक साथ न आने की वजह से तेजस्वी ने कांग्रेस-लेफ्ट के बजाय मजबूत मानी जा रही टीएमसी के साथ खड़ा होना बेहतर समझा है.

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