Friday , November 22 2024

मंडल और कमंडल की पॉलिटिक्स का प्रतीक बनें कल्याण सिंह

लखनऊ। वर्ष 1980 में भाजपा की स्थापना के ठीक एक दशक बाद देशभर की राजनीति का माहौल बदलने लगा। ये वही साल था जब 1989-90 में मंडल-कमंडल वाली सियासत शुरू हुई और भाजपा को अपने  सियासी बालपन में ही रोड़े अटकने का अहसास हुआ। इस अहसास और संकट के मोचक बनकर निकले कल्याण सिंह। जब आधिकारिक तौर पर पिछड़े वर्ग की जातियों को कैटिगरी में बांटा जाने लगा और पिछड़ा वर्ग की ताकत सियासत में पहचान बनाने लगा तो भाजपा ने कल्याण दांव चला। दरअसल, भाजपा शुरू से बनिया और ब्राह्मण पार्टी वाली पहचान रखती थी। इस छवि को बदलने के लिए भाजपा ने पिछड़ों का चेहरा कल्याण सिंह को बनाया और तब गुड गवर्नेंस के जरिए मंडल वाली सियासत पर कमंडल का पानी फेर दिया।

1962 से 1967 के बीच इस पांच साल कल्याण सिंह ने खुद को तपाया, जलाया और गलाया। नतीजा, जब वह 1967 में जीते तो ऐसे जीते कि 1980 तक लगातार विधायक रहे। 1980 वाले साल को भाजपा का पैदायशी साल माना जाता है और कोई माने न माने राजनीतिक पंडित मानते हैं कि भाजपा को सूबे की राजनीति से लेकर राष्ट्र की राजनीति तक ले जाने में जो मुकम्मल पायदान आते हैं उनमें कई पायदान कल्याण सिंह के ही बिछाए हुए हैं। भाजपा के लिए कल्याण सिंह अपना नाम सार्थक कर जाते हैं और असली कल्याणकारी साबित होते हैं।

छह दिसंबर 1992 को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री कल्याण सिंह थे। उन पर आरोप है कि उनकी पुलिस और प्रशासन ने जान—बूझकर कारसेवकों को नहीं रोका। बा कल्याण सिंह का नाम उन 13 लोगों में शामिल था जिन पर मस्जिद गिराने क साज़िश का आरोप लगा था। कल्याण सिंह एक प्रश्न पर अपनी सफाई देते हुए कहा था कि मैंने एक भी कार सेवक की जान नहीं ली। उन्होंने कहा कि राम मंदिर के लिए अपनी सरकार की कुर्बानी तक दे दी थी। मेरी सरकार चली गई थी लेकिन इसका मुझे कभी मलाल नहीं हुआ।

अयोध्या विवाद पर कल्याण सिंह ने पिछले साल राम जन्मभूमि पूजन से एक दिन पहले कहा कि, मुझे अपने छह दिसंबर 1992 के फैसले पर गर्व है। सरकार गिरने का कोई मलाल नहीं। वैसे भी किसी के प्रति श्रद्धा और समर्पण हो तो उसके लिए कोई भी बलिदान छोटा होता है। गोली चलवा देता तो जरूर मलाल होता। कल्याण सिंह बताते हैं कि मैंने जिलाधिकारी से अपने लिखित आदेश में कहा था गोली नहीं चलनी चाहिए। मेरे माथे पर एक भी कारसेवक की हत्या आरोप नहीं इस बात की खुशी है। अब अंतिम इच्छा यही है कि जीवनकाल में ही राम मंदिर बन जाए। जो लोग समय पर आपत्ति जता रहे हैं उन्हें भगवान सद्बुद्धि दें।

कल्याण सिंह ने कहा, मैं खुद रामभक्त हूं, मैं पहले दिन से ही अयोध्या के विकास और राम मंदिर के निर्माण का सपना देखता रहा। मेरे जैसे करोड़ों लोगों का सपना साकार हुआ है। मैं अयोध्या जाकर रामलला के दर्शन करूंगा।

उन्होंने कहा- मैं एक दिन के लिए तिहाड़ जेल में भी रहा और दो हजार रुपए का जुर्माना भी भरा था। मगर आज खुश हूं कि जिस पार्टी ने राम मंदिर बनाने का वादा किया था उस पार्टी ने अपना वादा पूरा किया। मंदिर निर्माण को लेकर अपनी खुशी जाहिर करते हुए कल्याण सिंह ने कहा कि 500 वर्ष बाद यह शुभ घड़ी आई है। अब यह ऐतिहासिक मंदिर बनने जा रहा है।

राम मंदिर आंदोलन के वक्त से कल्याण सिंह का कद इस कदर बढ़ा कि भाजपा और कल्याण एक दूसरे के पूरक बन गए। हालांकि अनबन की वजह से उन्होंने दो बार भाजपा छोड़ी, लेकिन आज भी उनके कद का पिछड़ा नेता यूपी भाजपा के पास नहीं है।

1991 में यूपी में भाजपा के पहले मुख्यमंत्री कल्याण सिंह उस वक्त की राजनीति में दो वजहों से याद किए जाते हैंः-

पहला – ‘नकल अध्यादेश’, जिसके दम पर वो गुड गवर्नेंस की बात करते थे. कल्याण सिंह मुख्यमंत्री थे और राजनाथ सिंह शिक्षा मंत्री. बोर्ड परीक्षा में नकल करते हुए पकड़े जाने वालों को जेल भेजने के इस कानून ने कल्याण को बोल्ड एडमिनिस्ट्रेटर बना दिया. यूपी में किताब रख के चीटिंग करने वालों के लिए ये काल बन गया.

दूसरा है बाबरी मस्जिद विध्वंस. ये हिंदू समूहों का ड्रीम जॉब था. इसके लिए 425 में 221 सीटें लेकर आने वाली कल्याण सिंह सरकार ने अपनी कुर्बानी दे दी. हिंदू हृदय सम्राट बनने के लिए. सरकार तो गई पर संघ की आइडियॉलजी पर कल्याण खरे उतरे थे. रुतबा भी उसी हिसाब से बढ़ा था. दो ही नाम थे उस वक्त- केंद्र में अटल बिहारी और यूपी में कल्याण सिंह.

यूपी की राजनीति के जानकार बताते हैं एक समय था जब कल्याण सिंह की पार्टी में तूती बोलती थी। मगर साल 1999 में जब उन्होंने पार्टी के सबसे बड़े नेता अटल बिहारी वाजपेयी की सार्वजनिक आलोचना की तो, उन्हें पार्टी से निकाल दिया गया।

बीजेपी से निष्कासन के बाद कल्याण सिंह ने अपनी अलग राष्ट्रीय क्रांति पार्टी बनाई और साल 2002 में विधानसभा चुनाव में भी शामिल हुए। 2003 में वह समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन सरकार में शामिल हो गए थे। उनके बेटे राजवीर सिंह और सहायक कुसुम राय को सरकार में महत्वपूर्ण विभाग भी मिले। लेकिन, कल्याण की मुलायम से ये दोस्ती अधिक दिनों तक नहीं चली।

साल 2004 के चुनावों से ठीक पहले कल्याण सिंह वापिस भारतीय जनता पार्टी के साथ आ गए। बीजेपी ने 2007 का विधानसभा चुनाव कल्याण सिंह की अगुआई में लड़ा, मगर सीटें बढ़ने के बजाय घट गईं। इसके बाद 2009 के लोकसभा चुनाव के दौरान कल्याण सिंह फिर से समाजवादी पार्टी के साथ हो लिए। इस दौरान उन्होंने कई बार भारतीय जनता पार्टी और उनके नेताओं को भला-बुरा भी कहा। फिर 2012 में बीजेपी में वापस आ गए। 2014 में उन्हें राजस्थान का राज्यपाल नियुक्त कर दिया गया।

कल्याण का राजनीतिक करियर
-अलीगढ़ की अतरौली विधानसभा सीट से 9 बार विधायक रहे, दो बार यूपी के सीएम बने।
-बुलंदशहर की डिबाई विधानसभा सीट से दो बार विधायक बने, लेकिन बाद में सीट छोड़ दी।
-बुलंदशहर से बीजेपी से अलग होकर समाजवादी पार्टी के समर्थन से 2004 में सांसद बने।
-एटा जिले से 2009 में सांसद चुने गए।
-2014 में राजस्थान के राज्यपाल बने।

साहसी पत्रकारिता को सपोर्ट करें,
आई वॉच इंडिया के संचालन में सहयोग करें। देश के बड़े मीडिया नेटवर्क को कभी पैसों की कमी नहीं होती। देश-विदेश से क्रांति के नाम पर इन्हें ख़ूब फ़ंडिग मिलती है। इनसे लड़ने के लिए हमारे हाथ मज़बूत करें। जितना बन सके, सहयोग करें।

About I watch