नई दिल्ली, रायटर। केंद्र सरकार कोयले पर आधारित 81 बिजली संयंत्रों से उत्पादन में कटौती की योजना बना रही है। बिजली मंत्रालय (Power Ministry) के एक पत्र के अनुसार, उत्पादन में यह कटौती अगले चार वर्षों में की जाएगी। केंद्र और राज्य सरकारों के ऊर्जा विभागों भेजे पत्र में कहा गया है कि इस योजना का मकसद हरित ऊर्जा की संभावनाओं को ज्यादा से ज्यादा बढ़ावा देना और लागत में कमी लाना है।
पत्र में कहा गया है कि इस योजना के जरिये पुराने और खर्चीले बिजली संयंत्रों को बंद नहीं किया जाएगा। देश में कोयले पर आधारित 173 बिजली उत्पादन संयंत्र है। मंत्रालय ने 26 मई को लिखे पत्र में कहा कि थर्मल पावर प्लांट भविष्य में सस्ती नवीकरणीय ऊर्जा को समायोजित करने के लिए तकनीकी पर काम करेंगे। मंत्रालय ने यह पत्र ऐसे वक्त में लिखा है बीते अप्रैल में देश को एक गंभीर बिजली संकट का सामना करना पड़ा था।
अप्रैल में बिजली की मांग में तेजी से बढ़ोतरी देखी गई थी जिससे कोयले की मांग में इजाफा हुआ है। इस स्थिति ने सरकार की कोयले के आयात पर लगाम लगाने की योजना पर पानी फेर दिया था। रात के दौरान जब सौर ऊर्जा उपलब्ध नहीं होती है तो बिजली की खपत में बढ़ोतरी ने कोयले से चलने वाले बिजली उत्पादन को चरणबद्ध तरीके से कम करने की राह में मुश्किलें पैदा करने का काम किया है।
यही नहीं देश में परमाणु और जल विद्युत जैसे वैकल्पिक स्रोतों के इस्तेमाल की गति भी धीमी रही है। भारत कोयले का दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता, उत्पादक और आयातक है। यही नहीं वार्षिक बिजली उत्पादन में कोयले का योगदान लगभग 75 फीसद है। यानी ग्रीन इनर्जी की राह बेहद मुश्किल नजर आ रही है। थिंक टैंक क्लाइमेट रिस्क होराइजन्स ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि यदि अक्षय ऊर्जा से 175 गीगावाट का उत्पादन होता तो हालिया बिजली संकट को टाला जा सकता था।
अक्षय ऊर्जा स्रोत उपलब्ध होने पर कोयले से चलने वाले उत्पादन को कम करने की बिजली मंत्रालय की योजना लाजिस्टिक पर भी दबाव को कम कर सकती है। देखा गया है कि कोयला ढोने के लिए ट्रेनों की कमी ने भी बिजली संकट की चुनौती को और गंभीर बनाने में भूमिका निभाई। पत्र में कहा गया है कि सरकार 34.7 मिलियन टन कोयले को बचाने और कार्बन उत्सर्जन में 60.2 मिलियन टन की कटौती करने के लिए बिजली उत्पादन को 58 अरब किलोवाट आवर्स (kWh) कम करने की उम्मीद करता है।
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