नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के यूनिफॉर्म सिविल कोड (UCC) पर बयान के बाद देश में इस मसले पर बहस छिड़ गई है। बहस इस बात की भी है कि यदि समान नागरिक संहिता लागू हुई तो हिंदुओं को हिंदू अविभाजित परिवार (HUF) के तहत मिलने टैक्स लाभ जैसी छूट खत्म हो सकती है। हालांकि सीनियर एडवोकेट और देश के पूर्व सॉलिसिटर जनरल हरीश साल्वे इस बात से इत्तेफाक नहीं रखते हैं। कहते हैं कि करीब एक दशक पहले हिंदू अविभाजित परिवार (HUF) में जिस तरीके के संशोधन हुए, उससे अब यह एक तरीके से नाममात्र का ही रह गया है।
हरीश साल्वे कहते हैं कि हिंदुओं को तो पहले ही दो बड़े झटके लग चुके हैं। पहला जब अंग्रेजी हुकूमत ‘मैरिड विमेन्स राइट टू प्रॉपर्टी एक्ट’ (Married Woman’s Right To Property Act) लाई थी और दूसरा साल 1956 में। जब यह कहा गया कि यदि किसी हिंदू शख़्स का निधन होता है और उसकी पुत्री जिंदा है तो भी उसकी प्रॉपर्टी का बंटवारा उत्तराधिकार के तौर पर होगा ना कि कौन जीवित है इस आधार पर। यह एक तरीके से हिंदू अविभाजित परिवार का खात्मा था। साल्वे कहते हैं कि हिंदू अविभाजित परिवार के तहत सिर्फ टैक्स से जुड़ी छूट मिलती है।
हिंदू समाज में बड़े सुधार हुए
साल्वे कहते हैं कि ऐसे में जो लोग संवैधानिक कानून की चिंता करते हैं, उनके लिए यह (हिंदू अविभाजित परिवार) कोई बड़ी बात नहीं होनी चाहिए। मैं एक वकील के तौर पर आपको बता रहा हूं कि आजतक जो सबसे बड़ा भ्रम फैलाया गया है, वह यह है कि हिंदुओं को तमाम ऐसे लाभ दिए गए जो मुस्लिमों को नहीं मिले। लेकिन ऐसा कतई नहीं है। वह कहते हैं कि दूसरे धर्मों की तरह, हिंदुओं के रीति-रिवाज में भी कई तरह की खामियां थीं लेकिन बहुत सुधार भी हुए हैं। उदाहरण के तौर पर- तमाम ऐसे हिंदू थे जो सती प्रथा को मानते थे, लेकिन अब आधुनिक समाज में इसकी कोई जगह नहीं है। जब सती प्रथा को खत्म किया गया तो कितना हंगामा हुआ, यह सबने देखा है।
UCC के पक्ष में क्या तर्क?
टाइम्स नाउ को दिए एक इंटरव्यू में हरीश साल्वे कहते हैं कि यूनिफॉर्म सिविल कोड (UCC) किसी भारतीय को जबरन अपने धर्म को मानने की मजबूरी से बचाएगा और यह किसी भी सूरत में देश की विविधता के खिलाफ नहीं है। बल्कि जबरन थोपी गई विविधता के खिलाफ जरूर है। साल्वे इसे एक उदाहरण से समझाते हैं।
कहते हैं कि इन दिनों मैं एक मुकदमे में पेश हो रहा हूं, जिसमें सवाल यह है कि क्या एक मुस्लिम परोपकारी शख़्स ट्रस्ट बना सकता है? बॉम्बे वक्फ बोर्ड की दलील है कि वह ऐसा नहीं कर सकता है। मुस्लिम है तो सिर्फ वक्फ बना सकता है, ट्रस्ट नहीं। लेकिन कल को कानून मुस्लिम शख्स को ट्रस्ट बनाने की इजाजत दे देता है तो क्या इसका मतलब यह है कि कोई भी धार्मिक मुस्लिम वक्फ नहीं बना सकता है? बिल्कुल वह ऐसा कर सकता है। यूनिफॉर्म सिविल कोड इसके आड़े नहीं आएगा।
सिब्बल-खुर्शीद को जवाब
तो फिर कपिल सिब्बल और सलमान खुर्शीद जैसे लोग क्यों कह रहे हैं कि यूनिफॉर्म सिविल कोड संवैधानिक सिद्धांतों के खिलाफ है? इसके जवाब में साल्वे कहते हैं कि संविधान कहता है कि सरकार को किसी भी शख्स को अपने धर्म के अनुसार जीने के अधिकार को मान्यता देनी चाहिए। क्या सिविल कोड इसे छीन सकता है? ऐसा बिल्कुल नहीं है।
उदाहरण के लिए यदि कोई कैथोलिक क्रिश्चियन मानता है कि कैथोलिक तलाक नहीं लेते हैं, लेकिन उसकी शादीशुदा जिंदगी अच्छी नहीं चल रही है और कानून तलाक लेने की इजाजत देता है तो क्या वह तलाक नहीं लेगा? क्या वह चर्च के पास जाएगा और पादरी उससे कहेगा कि तलाक मत लीजिए। ऐसे में क्या वह पादरी की बात मानते हुए तलाक नहीं लेगा? वह कहेगा कि मैं परंपरागत कानून को नहीं मानूंगा और मैं तलाक चाहता हूं तो बिल्कुल ऐसा कर सकता है।
हरीश साल्वे कहते हैं कि महात्मा गांधी और डॉ. भीमराव अंबेडकर भी समान नागरिक संहिता चाहते थे क्योंकि यह स्वतंत्रता देता है। साल्वे तर्क देते हैं कि लगभग सभी धर्मों ने ऐतिहासिक तौर पर महिलाओं को सशक्त नहीं बनाया लेकिन यूनिफॉर्म सिविल कोड उन्हें सशक्त बनाएगा। सिविल कोड किसी भी शख्स को अपने धर्म को मानने का अधिकार नहीं छीनेगा।
अल्पसंख्यक विरोधी है UCC?
क्या यूनिफॉर्म सिविल कोड अल्पसंख्यक विरोधी है? साल्वे कहते हैं कि मैं खुद अल्पसंख्यक समुदाय से आता हूं और क्रिश्चियन हूं। आखिर UCC किस तरह मेरे खिलाफ है। यदि मैं बतौर क्रिश्चियन शादी, तलाक और उत्तराधिकार के संबंध में ईसाई धर्म के नियम-कानून को मानना चाहता हूं तो बिल्कुल मान सकता हूं, नहीं मानना चाहता हूं तो नहीं मानूंगा। कौन रोक सकता है? साल्वे कहते हैं कि इस्लाम में बहु-विवाह काफी विवादित मुद्दा है। मैं कोई कुरान का जानकार नहीं हूं लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि चार साथियों को किसी भी तरह से तार्किक ठहराया जा सके।