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अब खिसका वोट, तो मायावती की राजस्थान में राजनीति खत्म? हर बार गहलोत से मिले हैं झटके

अब खिसका वोट, तो मायावती की राजस्थान में राजनीति खत्म? हर बार गहलोत से मिले हैं झटके राजस्थान में पिछले 25 साल से सियासी जमीन पर पांव टिकाए खड़ी बसपा ने चुनावी समर में फिर से अकेले ही उतरने का मन बना लिया है। लेकिन हर बार अशोक गहलोत से मिले झटकों से इस बार पार्टी का वोटबैंक खिसक सकता है।  राजस्थान के सियासी इतिहास में दो बार विधायकों के साथ छोड़ने के बाद बसपा का वोट बैंक इस बार खिसक सकता है। सीएम सीएम गहलोत ने दो बार बसपा को तगड़े झटके दिए है। एबीपी न्यूज के सर्वे में राजस्थान में अन्य को 1 से लेकर 5 सीट दी है। इसमें हनुमान बेनीवाल की पार्टी आरएलपी और निर्दलीय विधायक भी आ जाते हैं। सर्वे को माने तो इस बार राजस्थान में बसपा का जनाधार खिसकता हुआ दिखाई दे रहा है। हालांकि, बसपा प्रदेश अध्यक्ष भगवान सिंह बाबा इस बात से इनकार करते हैं। बाबा का कहना है कि धोखेबाजों को जनता इस बार सबक सिखाएगी।

बता दें विधानसभा चुनाव 2018 में बसपा के 6 विधायकों ने जीत दर्ज की थी। जबकि एक दर्जन विधायक दूसरे नंबर रहे थे। लेकिन चुनाव बाद सीएम गहलोत ने बसपा केसभी विधायकों को कांग्रेस में शामिल करा लिया था। सीएम गहलोत ने पहली बार ऐसा नहीं किया। 2008 में भी बसपा के 6 विधायक जीतकर आए थे। तब सभी विधायक कांग्रेस में शामिल हो गए थे। राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक बसपा के विधायकों के बार-बार पाला बदलने से वोटर्स ठगा सा महसूस कर रहा है। इस बार बसपा का मूल वोटर्स छिटक सकता  है। बसपा का वोटर्स बीजेपी और कांग्रेस में बंट सकता है। बसपा की राजस्थान में अगर सबसे मजबूत पकड़ किसी क्षेत्र में है तो वह है पूर्वी राजस्थान है। पूर्वी राजस्थान के भरतपुर, धौलपुर, अलवर, सवाई माधोपुर और करौली में बहुजन समाज पार्टी के विधायक चुनाव जीतकर आते रहे हैं। वहीं, झुंझुनू और चूरु भी वह जिले हैं, जहां से बसपा के विधायक विधानसभा पहुंचते हैं।

राजस्थान में मायावती ने अकेले ही चुनाव लड़ने का ऐलान किया है। पार्टी किसी के साथ गठबंधन नहीं करेगी। पार्टी 200 विधानसभा सीटों पर प्रत्याशी उतारेगी। लेकिन पार्टी का मुख्य फोकस करीब 39 विधासभा सीटों पर ज्यादा रहेगा। अधिकतर ये सीटें पूर्वी राजस्थान में आती है। बसपा का जनाधार भी पूर्वी राजस्थान में ही ज्यादा माना जाता है।
क रहा है। भाजपा की तरफ से जहां खुद पीएम नरेंद्र मोदी ने कमान अपने हाथ ले रखी है। सीएम अशोक गहलोत योजनाओं के प्रचार और काम की बदौलत सरकार के रिपीट होने का दावा कर रहे हैं। इन दोनों पार्टियों के बीच बहुजन समाज पार्टी ही अकेली ऐसी पार्टी है, जो 1998 से लगातार सीटें जीत रही है। भले ही बसपा के 6 विधायकों को दो बार तोड़कर कांग्रेस सरकार में शामिल कर दिया गया हो।

उल्लेखनीय है कि 1998 में राजस्थान में बसपा ने पहली बार 2 विधानसभा सीटों पर जीत दर्ज की थी। साल 2003 में भी बसपा के दो विधायक विधानसभा में पहुंचे। वहीं, साल 2008 में बसपा ने राजस्थान में जब 6 विधानसभा सीट पर जीत दर्ज की तो राजस्थान में पार्टी के भविष्य को लेकर कई तरह की चर्चा शुरू हो गई थी, लेकिन पार्टी की इस उम्मीदों को जल्द बड़ा झटका लगा। अब बहुजन समाज पार्टी ने राजस्थान में यह तय कर लिया है कि वह किसी उस नेता को टिकट नहीं देगी, जिसने विधायक बनने के बाद बसपा का दामन छोड़ कांग्रेस की सदस्यता ग्रहण की। बहुजन समाज पार्टी ने राजस्थान में भरतपुर की नगर और नदबई तथा धौलपुर जिले की धौलपुर विधानसभा में प्रत्याशी मैदान में उतार दिए हैं। इनमें से भी नगर और नदबई वही विधानसभा है, जहां वर्तमान विधायक बसपा की टिकट पर चुनाव जीतकर कांग्रेस में शामिल हो गए थे। ऐसे में बहुजन समाज पार्टी ने इन विधानसभा में टिकट घोषित करके यह साफ कर दिया है कि वह 2018 में बसपा के टिकट पर जीते किसी प्रत्याशी को टिकट नहीं देगी।

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