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चांद पर लैंडिंग नहीं तो फिर क्या थी सबसे बड़ी मुश्किल? ISRO चीफ एस सोमनाथ का खुलासा

ISRO Chief on Chandrayaan-3 Mission- चांद पर लैंडिंग नहीं तो फिर क्या थी सबसे बड़ी मुश्किल? ISRO चीफ एस सोमनाथ का खुलासाचंद्रयान-3 ने 23 अगस्त की शाम 6.04 मिनट पर चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर सफलतापूर्वक सॉफ्ट लैंडिंग कर ली है। यह उपलब्धि केवल रूस (तत्कालीन सोवियत गणराज्य), संयुक्त राज्य अमेरिका और चीन से ही मेल नहीं खाती, बल्कि भारत को वैश्विक अंतरिक्ष दौड़ में गौरव का स्थान मिल गया है। चंद्रयान-3 को चंद्रमा तक की लगभग 400,000 किमी की यात्रा को पूरा करने में 40 दिन लगे। इस अपार सफलता से पूरा देश गौरंवांवित है। चंद्रयान-3 की सफलता पर इसरो चीफ एस सोमनाथ ने पहली प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने इस बात का खुलासा किया कि चांद पर लैंडिंग नहीं, बल्कि इस मिशन में सबसे बड़ी मुश्किल कुछ और ही थी।

चंद्रयान-3 के सफलतापूर्वक चांद पर उतरने के तुरंत बाद, प्रसन्न मुद्रा में इसरो अध्यक्ष एस सोमनाथ ने मीडिया को संबोधित किया। उन्होंने अपनी टिप्पणी की शुरुआत विजयी नारे के साथ की। कहा कि ‘भारत अब चंद्रमा पर है’ जब सोमनाथ से पूछा गया कि, उनकी राय में, चंद्रयान-3 की यात्रा में सबसे महत्वपूर्ण और मुश्किल क्षण कौन से थे? जानिए उनका जवाब…

इसरो चीफ एस सोमनाथ ने जवाब में कहा, “मिशन का सबसे कठिन हिस्सा लॉन्च ही थी… आपको यह नहीं भूलना चाहिए कि जीएसएलवी मार्क 3 (वह रॉकेट जिसने चंद्रयान -3 मॉड्यूल लॉन्च किया था जिसमें विक्रम लैंडर और प्रज्ञान रोवर शामिल हैं) ने इसे स्थापित करने का काम किया था। इसी अंतरिक्ष यान ने विक्रम और प्रज्ञान रोवर को चांद की सही कक्षा में पहुंचाने में मदद की।”

जब चंद्रयान-3 को मिली पहली सफलता 
सोमनाथ ने कहा, “चंद्रयान-3 36,500 किमी तक गया और ट्रांस-लूनर इंजेक्शन (जो चंद्रमा के प्रक्षेप पथ पर एक अंतरिक्ष यान को स्थापित करने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली एक प्रणोदक चाल है) चरण तक यह बहुत अच्छी तरह से चला। लॉन्चिंग के 16 मिनट बाद चंद्रयान-3 मॉड्यूल रॉकेट से अलग हो गया था और छह बार पृथ्वी की परिक्रमा करके 15 जुलाई को पहली कक्षा बढ़ाने से पहले 36,500 किमी की अधिकतम दूरी तक पहुंचा। जिससे चंद्रमा तक 41,672 किमी की दूरी तय की।”

उन्होंने बताया, “दूसरी महत्वपूर्ण घटना ‘चंद्रमा पर उतरना और कब्जा करना’ थी। यदि आप इससे चूक जाते हैं तो यान के चंद्रमा की सतह पर उतरने की संभावना खत्म हो जाती है। फिर हम यान से पुनः संपर्क स्थापित नहीं कर सकते थे या यूं कहें कि मिशन पूरा नहीं हो पाता।

सोमनाथ के मुताबिक, “तीसरा महत्वपूर्ण क्षण लैंडर और ऑर्बिटर का अलग होना था, जो उचित समय पर हुआ। हमे यहां यह भी याद रखना चाहिए कि यह प्रक्रिया अंतरिक्ष में यान के कई दिन बिताने के बाद हुआ। सबसे अच्छी बात यह रही कि इस दौरान यान के सभी उपकरण बिना किसी समस्या और बाधा के निर्बाध काम कर रहे थे। गौरतलब है कि विक्रम लैंडर, जिसमें प्रज्ञान रोवर है, 17 अगस्त को प्रोपल्शन मॉड्यूल से अलग हुआ था।

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