इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यूपी गुंडा एक्ट के दुरुपयोग पर चिंता जताई है और राज्य सरकार को 31 अक्तूबर तक गुंडा एक्ट की कार्यवाही में प्रदेशभर में एकरूपता के लिए गाइडलाइन जारी कर उसका कड़ाई से पालन कराने का आदेश दिया है। कोर्ट ने कहा कि उत्तर प्रदेश गुंडा नियंत्रण अधिनियम के तहत कार्यवाही में एकरूपता नहीं है। जबकि सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा है कि लोक शांति के लिए खतरा बने समाज में भय फैलाने वाले आदतन अपराधी को गुंडा एक्ट का नोटिस दिया जाना चाहिए। केवल एक आपराधिक केस पर गुंडा एक्ट की कार्यवाही नहीं की जा सकती।
यह आदेश न्यायमूर्ति राहुल चतुर्वेदी एवं न्यायमूर्ति मोहम्मद अजहर हुसैन इदरीसी की खंडपीठ ने अलीगढ़ के गोवर्धन की याचिका को स्वीकार करते हुए दिया है। कोर्ट ने कहा कि जिला मजिस्ट्रेट को इस अधिनियम में प्रदत्त असाधारण और असामान्य शक्तियों का प्रयोग करने से पहले पूरी सावधानी बरतनी चाहिए लेकिन पाया जा रहा है कि इस अधिनियम के प्रावधानों का बड़े पैमाने पर दुरुपयोग हो रहा है।
एक ही मामले में नोटिस जारी करना काफी परेशान करने वाला है। कोर्ट ने कहा कि अधिकारियों से अपेक्षा है कि आरोपी व्यक्ति के विरुद्ध आरोपों की सामान्य प्रकृति, जनता के बीच उनकी व्यक्तिगत छवि व सामाजिक पारिवारिक पृष्ठभूमि के बारे में विचार कर एक निर्धारित प्रोफार्मा पर नहीं बल्कि सुविचारित आदेश करेंगे।
इस कानून में डीएम को गुंडा एक्ट के तहत आदतन अपराधी को जिला बदर करने का अधिकार दिया गया है। कोर्ट ने सभी डीएम और उनके अधीन काम करने वाले कार्यकारी अधिकारियों को आगे से उचित कार्रवाई करने का निर्देश दिया है। यह भी कहा कि ठोस आधार व तथ्य होने पर ही कार्यवाही करेंगें।
कोर्ट ने जब एक केस पर गुंडा एक्ट की कार्यवाही को ग़लत बताया तो अपर शासकीय अधिवक्ता ने अचानक कहा कि दो तीन अन्य केस भी हैं जिनका उल्लेख नोटिस में नहीं किया गया है। इस पर कोर्ट ने टिप्पणी की कि लुकाछिपी की अनुमति नहीं दी जा सकती। यह वैसा ही है जैसे एक हाथ को पता हो और दूसरे को पता ही न हो। ऐसा आदेश रद्द होने योग्य है।