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यह तो कश्मीर के लोगों के अधिकार ही छीन लेता था, आर्टिकल 35A पर ऐसा क्यों बोले चीफ जस्टिस

यह तो कश्मीर के लोगों के अधिकार ही छीन लेता था, आर्टिकल 35A पर ऐसा क्यों बोले चीफ जस्टिसजम्मू-कश्मीर से आर्टिकल 370 हटाए जाने को लेकर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई जारी है। इस बीच सोमवार को आर्टिकल 35A हटाने पर भी बात हुई, जिसे खुद चीफ जस्टिस ने एक तरह से सही फैसला करार दिया। उन्होंने कहा कि आर्टिकल 35ए तो जम्मू-कश्मीर के लोगों के मूलभूत अधिकारों को ही छीन लेता था। इस पर बात करते हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अदालत में कहा था कि जम्मू-कश्मीर के नागरिकों की एक अलग ही कैटिगरी बना ली गई थी। इससे बाहर के लोगों को नौकरियों समेत तमाम चीजों में मौके नहीं मिलते थे।

इसी पर बात करते हुए चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा, ‘एक तरह से आर्टिकल 35ए जम्मू-कश्मीर के लोगों के सारे मूलभूत अधिकारों को ही छीन लेता था। आप 1954 का आदेश देख सकते हैं, जो संविधान के पार्ट 3 पर लागू होता था। इसके चलते राज्य सरकार के तहत रोजगार, अचल संपत्ति की खरीद और राज्य के नागरिक के तौर पर अधिकार जैसे मूलभूत अधिकार नहीं मिलते थे।’ उन्होंने कहा कि आर्टिकल 16(1) सभी नागरिकों के लिए रोजगार के अवसर की समानता की बात करता है। लेकिन आर्टिकल 35ए उसे छीन लेता था। इस तरह राज्य के स्थायी नागरिक का दर्जा पाए लोगों के लिए एक अलग कानून होता था और दूसरे लोगों के लिए कानून की अलग व्याख्या होती थी।

सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि आर्टिकल 370 के चलते कश्मीर में अलग ही व्यवस्था चल रही थी। उन्होंने कहा कि 2019 तक राज्य में शिक्षा का अधिकार कानून लागू नहीं था, जो आर्टिकल 21ए के तहत मूल अधिकार है। इसकी वजह यह है कि आर्टिकल 370 की बाधा के चलते इसे कभी लागू ही नहीं किया जा सका। इसी पर चीफ जस्टिस ने कहा कि 1976 में संविधान की प्रस्तावना में जो संशोधन किए गए थे, वह भी कश्मीर में कभी स्वीकार नहीं किए गए। इस तरह सेक्युलरिज्म और समाजवाद जैसी चीजों को कभी अपनाया ही नहीं गया।

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने इस दौरान सदन में हुई बहसों का जिक्र करते हुए कहा कि संसद मानती थी कि आर्टिकल 370 अस्थायी व्यवस्था है। इस पर चीफ जस्टिस ने कहा कि ये व्यक्तिगत विचार थे। ऐसा सामूहिक रूप से संसद ने नहीं कहा था। तुषार मेहता ने कहा कि इसके चलते जम्मू-कश्मीर में भारत का संविधान तक लागू नहीं हो पा रहा था। उन्होंने कहा, ‘2019 तक जम्मू-कश्मीर हाई कोर्ट के जज जो शपथ लेते थे, उसमें राज्य के संविधान की बात कही जाती थी।’ उन्होंने कहा कि वे जज काम भारत के संविधान के तहत करते थे, लेकिन शपथ जम्मू-कश्मीर के संविधान के नाम पर लेते थे।

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