Friday , November 22 2024

आडवाणी-जोशी को राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा में न आने का न्‍यौता, जनता को देने होंगे इन 5 सवालों का जवाब

पीढ़ियों का बदलाव: रामजन्मभूमि आंदोलन को जनआंदोलन बनाने वाले लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी, 1990 में आडवाणी के नेतृत्व में निकली राम रथ यात्रादुनिया में सनातनियों को अपने बुजुर्गों के सम्मान करने के चलते ही विशेष सम्मान मिलता रहा है. अपने बुजुर्गों के सम्मान का जो उदाहरण मर्यादा पुरुषोत्तम राम ने दिया उसे अतुलनीय कहा जाता है. एक बुजुर्ग पिता का मान रखने के लिए धनुर्धारी राम ने राजसी ठाट-बाट को छोड़कर 14 वर्ष के वनवास को सहर्ष स्वीकार कर लिया था. उसी मर्यादा पुरुषोत्तम राम की प्रतिमा के प्राण प्रतिष्ठा समारोह में आयोजन समिति ने मंदिर आंदोलन के प्रणेता रहे पूर्व गृहमंत्री लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी को अलग करके श्रवण कुमार बनने का मौका खो दिया है. अयोध्या में राम मंदिर का उद्घाटन 22 जनवरी को होने वाला है. देश-दुनिया की तमाम हस्तियों को बुलाया जा रहा है. इस बीच राम मंदिर ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय ने बीजेपी के सीनियर नेता लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी से उद्घाटन समारोह में न पहुंचने की अपील की है. समारोह से इन बुजुर्गों को अलग-थलग करके आयोजन समिति सनातनियों की नई पीढ़ी को क्या संदेश देना चाहती है?

चंपत राय ने प्रेस कांफ्रेंस कर कहा है कि मुरली मनोहर जोशी और लाल कृष्ण आडवाणी स्वास्थ्य और उम्र संबंधी कारणों के चलते उद्घाटन समारोह में शामिल नहीं हो पाएंगे. दोनों बुजुर्ग हैं. इसलिए उनकी उम्र को देखते हुए उनसे न आने का अनुरोध किया गया है, जिसे दोनों ने स्वीकार भी कर लिया है. सवाल यह उठता है कि अगर ये दोनों अति बुजुर्ग हो चुके हैं तो देश और दुनिया के दूसरे बुजुर्गों को क्यों बुलाया जा रहा है? और क्या देश के हिंदुओं को ये संदेश दिया जा रहा है कि अयोध्या में प्रभू श्रीराम के दर्शन करने आएं तो अपने साथ घर के बुजुर्गों को न लाएं? आयोजन समिति का ये फैसला दुर्भाग्यपूर्ण है. राम जन्मभूमि मंदिर आंदोलन दुनिया के सबसे बड़े जनआंदोलनों में रहा है. इसलिए आयोजन समित जनता के प्रति भी जवाबदेह है. समिति को जनता के इन सवालों का जवाब देना होगा.

1-भारत में रही है श्रवण कुमार की परंपरा

सनातन धर्म में श्रवण कुमार की परंपरा रही है. श्रवण कुमार को उस आदर्श  पुत्र की उपाधि मिली हुई है जो अपने अंधे माता-पिता को अपने कंधों पर लादकर तीर्थ कराने निकले हुए थे.रास्ते में मां-बाप को प्यास लगने पर उन्हें एक पेड़ के नीचे छोड़कर वो तालाब से जल लेने जाते हैं. उसी समय अयोध्या के राज दशरथ शिकार पर निकले हुए थे. पानी निकालने की आवाज से उन्हें भ्रम होता है कि हिरन पानी पीने आया हुआ है. दशरथ शब्दबेधी बाण छोड़ते हैं जो हिरन की बजाय श्रवण कुमार को लगता है. श्रवण कुमार के माता पिता बेसहारा हो जाते हैं. बेसहारा माता-पिता राजा दशरथ को श्राप देते हैं कि जिस तरह हम लोग बुढ़ापे में बेसहारा हो गए और पुत्र वियोग में मर रहे हैं उसी तरह दुखों का पहाड़ दशरथ पर भी आए. श्रवण कुमार को ही आदर्श मानकर सनातनी हिंदू अपने बुजुर्गों को तीर्थाटन कराते रहे हैं. हिंदुओं का विश्वास रहा है कि अपने बुजुर्गों को तीर्थ कराने के पुण्य से बड़ा कोई भी पुण्य नहीं होता है. आयोजन समिति ने आडवाणी और जोशी जैसे बुजुर्गों को उनके बुढ़ापे के आधार पर समारोह से दूर करके सनातनियों के सामने कौन सा उदाहरण पेश किया है?

2-दलाईलामा, एचडी देवगौड़ा और खुद चंपत राय की उम्र कम है क्या

अगर आयोजन समिति ने उम्र के आधार पर लाल कृष्ण आडवाणी (96) और मुरली मनोहर जोशी (89) को समारोह में न आने के लिए मना लिया है तो किस आधार पर पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा (91), तिब्बत के निर्वासित नेता दलाई लामा (88) को बुलाया गया है. खुद राम जन्म भूमि मंदिर के कर्ताधर्ता और पीसी कर रहे चंपत राय भी इस उम्र के हो चुके हैं कि उन्हें मार्गदर्शक मंडल में भेज दिया जाए. उम्र के आधार पर तो उन्हें इतने बड़े मंदिर और आयोजन की जिम्मेदारी को सौंपना भी अन्याय करने के समान है.भारत में किसी भी घरेलू आयोजन में अपने पूर्वजों को भी बुलाने की परंपरा रही है. बहुत जगहों पर पूर्वजों के नाम से इन्विटेशन कार्ड लिखकर रख दिया जाता है. आयोजन समित को भी इन बुजुर्गों को बुलाना चाहिए था. उनके आने का फैसला उनके और उनके परिवारजनों पर छोड़ना चाहिए था. कम से कम इस उम्र में वे अपने को अलग-थलग तो नहीं महसूस करते.

3-इन लोगों को लाने के लिए विशेष व्यवस्था कर सकते थे

जब राजनीतिक दलों की रैलियां होती हैं तो एसी टेंट लगाए जाते हैं. जाड़े के दिन हैं तो इन बुजुर्गों को लिए गर्म टेंट की व्यवस्था हो सकती थी. इन्हें एयर एंबुलेंस से लाया जाना चाहिए था. आखिर ये बुजुर्ग राम जन्मभूमि आंदोलन के हीरो रहे हैं. उनको जनता के सामने लाकर देश को रामजन्मभूमि आंदोलन के स्वर्णिम इतिहास से युवा हो रही पीढ़ी को दिखाया जाता तो नई पीढ़ी को अपने बुजुर्गों की सेवा करने और सम्मान करने की सीख मिलती . हमारे घरों में जब जाड़ों में शादियां होती हैं तो बुजुर्ग को एक जगह बैठा दिया जाता है . पर ऐसा नहीं होता है कि उनको समारोह स्थल पर लाए ही नहीं. लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी दोनों बुजुर्ग हैं पर अभी बिस्तर पर नहीं हैं. ये दोनों लोग अपने नित्य क्रिया स्वयं करते हैं और कहीं भी आने जाने में समर्थ हैं.

ADVERTISEMENT

4-इन बुजुर्गों के प्रति सम्मान दिखाने के और भी हैं रास्ते

अगर आयोजन समिति इन बुजुर्गों को समारोह स्थल पर लाने में सक्षम नहीं हैं तो इन बुजुर्गों के प्रति सम्मान दिखाने और राम जन्मभूमि आंदोलन के लिए किए गए उनके महती योगदान को देखते हुए कुछ ऐसे कार्य करने चाहिए थे जिससे उनके प्रति सम्मान को प्रकट किया जा सके. आयोजन समिति इन दोनों नेताओं के घर पर बड़े स्क्रीन लगाकर विडियो कॉन्फ्रेंसिंग से समारोह में शामिल करा सकती है. जिसे आयोजन स्थल पर इन बुजुर्गों को आम जनता भी देख सके. पहले शिलान्यास के मौके पर भी इन लोगों को नहीं बुलाया गया था. उदघाटन के मौके पर सम्मान दिखाकर उस गलती का प्रायश्चित भी कर सकेगी आयोजन समिति.

Advani
राम मंदिर आंदोलन में लाल कृष्ण आडवाणी सबसे बड़ा चेहरा थे. 

5-भारतीयों में राम जन्मभूमि मंदिर की चेतना जगाने का काम आडवाणी ने ही किया था 

राम जन्मभूमि का आंदोलन शताब्दियों से चल रहा है पर इस आंदोलन को जनता की आवाज सबसे पहले लाल कृष्ण आडवाणी के नेतृत्व में ही बनाया जा सका. लालकृष्ण आडवाणी ने रामजन्म भूमि के लिए सोमनाथ से रथयात्रा  निकाली थी . 25 सितंबर 1990 को लालकृष्ण आडवाणी ने सोमनाथ से राम रथ यात्रा की शुरुआत की.इस यात्रा को डेढ़ महीने बाद अयोध्या पहुंचना था लेकिन यात्रा जब बिहार पहुंची तो राज्य के तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव ने आडवाणी को गिरफ्तार कर लिया. इसके विरोध में भाजपा ने वीपी सिंह सरकार से समर्थन वापस ले लिया.  7 नवंबर 1990 को वीपी सिंह को प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा. छह दिसंबर 1992 को कारसेवकों ने बाबरी मस्जिद को गिरा दिया. लालकृष्ण आडवाणी को बाबरी मस्जिद विध्वंस का आरोपी माना गया लेकिन सितंबर 2020 में सीबीआई कोर्ट ने आडवाणी समेत 32 लोगों को बरी कर दिया गया.विश्व हिंदू परिषद के अशोक सिंघल और बीजेपी नेता आडवाणी का ही कमाल था कि पूरे देश में जन-जन की डिमांड बन गया अयोध्या में रामजन्मभूमि का निर्माण .

साहसी पत्रकारिता को सपोर्ट करें,
आई वॉच इंडिया के संचालन में सहयोग करें। देश के बड़े मीडिया नेटवर्क को कभी पैसों की कमी नहीं होती। देश-विदेश से क्रांति के नाम पर इन्हें ख़ूब फ़ंडिग मिलती है। इनसे लड़ने के लिए हमारे हाथ मज़बूत करें। जितना बन सके, सहयोग करें।

About I watch