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UP की जिस सीट पर 64% मुस्लिम, वहाँ BJP के ‘रामवीर’ ने सबकी करवा दी जमानत जब्त: जानिए क्यों है यह जीत खास, क्या है कुंदरकी का वह गणित जिससे खिला कमल

संघ के वरिष्ठ नेता ने बताया कि इस समीकरण पर संघ का ध्यान तब गया, जब इस साल लोकसभा चुनावों के दौरान क्षत्रिय समाज अपने राजा-महाराजाओं के अपमान के विरोध में आंदोलन कर रहा था। उस दौरान धर्मांतरित हुए क्षत्रिय समाज के मुस्लिम उनका पूरा सहयोग कर रहे थे। वे इस विरोध में क्षत्रिय समाज के साथ कदम से कदम मिलाया। उस नेता का कहना था कि इस नए समीकरण ने भाजपा को रणनीतिक राह दिखाई।

ठाकुर रामवीर सिंहमहाराष्ट्र में भाजपा की अगुवाई वाली महायुति गठबंधन के प्रचंड जीत के बीच, अगर किसी विधानसभा सीट की सबसे अधिक चर्चा हो रही है तो वह है उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद जिले की कुंदरकी सीट। उत्तर प्रदेश के जिन सात सीटों पर उपचुनाव थे, उनमें से एक सीट यह भी थी। इस सीट की खासियत ये है कि यह मुस्लिम बहुल इलाका है और यहाँ एक हिंदू क्षत्रिय ने चुनाव जीता है। इस सीट की एक और खासियत है। इस सीट पर या या सहसपुर का क्षत्रिय राजपरिवार चुनाव जीता है या फिर मुस्लिमों की तुर्क जाति।

इस बार ठाकुर रामवीर सिंह ने यहाँ जीत का परचम लहराकर भाजपा की 31 साल के वनवास को दूर किया है। इस सीट की खास बात ये है कि यहाँ पर मुस्लिमों की आबादी लगभग 64 प्रतिशत है। वहीं, 36 प्रतिशत में अन्य लोग हैं। मुस्लिमों की इतनी अधिक आबादी होने के बाद ठाकुर रामवीर सिंह को कुल 1,70,371 वोट मिले। उन्होंने अपने प्रतिद्वंद्वी समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार मोहम्मद रिजवान को 1,44,791 वोटों से हराया है। रिजवान को सिर्फ 25,580 वोट ही मिले।

कुंदरकी सीट पर अगर कुल विरोधियों को मिले मत को भी जोड़ दिया जाए तो वो ठाकुर रामवीर सिंह की जीत वाले मत से आधे भी नहीं हैं। यहाँ कुल 11 मुस्लिम उम्मीदवार खड़े थे। इनके बीच अकेले ठाुकर रामवीर सिंह हिंदू उम्मीदवार थे। अगर इन सभी मुस्लिम उम्मीदवारों के वोट को जोड़ भी दिया जाए तो भी वे 50 हजार के आँकड़े को पूरा नहीं कर पाते। यहाँ तीसरे नंबर पर चंद्रशेखर आजाद की पार्टी आजाद समाज पार्टी के चाँद बाबू थे, जिन्हें 14,201 वोट मिले।

चौथे स्थान पर AIMIM के मोहम्मद वारिस को कुल 8,111 मत मिले। बाकी उम्मीदवार चार दहाई का अंक भी नहीं छू पाए। हाँ, बसपा के रहफतुल्लाह को जरूर 1,099 मत मिले। बाकी लोग तीन अंकों में ही सिमट कर रह गए। अब सवाल ये है कि मुस्लिम बहुल इस सीट पर एक हिंदू उम्मीदवार कैसे जीता, वह भी लगभग डेढ़ लाख वोटों के अंतर से। इसके पीछे ठाकुर रामवीर सिंह की हर समाज में स्वीकार्यता एवं विश्वसनीयता और जातीय समीकरण प्रमुख कारण रहा।

साल 1974 में सहसपुर राजपरिवार की महारानी इंद्रमोहिनी सिंह यहाँ से चुनाव जीती थीं। साल 1985 में कॉन्ग्रेस के टिकट पर महारानी इंद्रमोहिनी की बेटी राजकुमारी रीना कुमारी यहाँ से विधायक बनीं। साल 1989 में जनता दल के टिकट पर और साल 1993 में भाजपा के टिकट पर महारानी इंद्रमोहिनी के बेटे महाराजा चंद्रविजय सिंह यहाँ से विधायक बने। इन सभी चुनावों में राजपरिवार ने तुर्क मुस्लिमों को हराया था। बाकी के चुनावों तुर्क मुस्लिम के उम्मीदवार ही जीते।

इस सीट से हाजी अकबर हुसैन जनता पार्टी से साल 1977 में, राजनारायण की पार्टी से साल 1980 में, जनता दल से साल 1991 में और बसपा से साल 1996 एवं 2007 में विधायक बने। अकबर तुर्क जाति से ताल्लुक रखते थे। इसके बाद समाजवादी पार्टी के टिकट पर यहाँ से हाजी मोहम्मद रिजवान साल 2002, साल 2012 और साल 2017 में इस सीट से विधायक बने। ये भी मुस्लिमों की तुर्क जाति से हैं। साल 2022 के विधानसभा चुनाव में यहाँ से तुर्क नेता जियाउर्रहमान बर्क जीते।

अगर यहाँ के जातीय समीकरणों की बात करें तो कुंदरकी सीट पर मतदाताओं की कुल संख्या लगभग 3.84 लाख है। इनमें मुस्लिम वोटरों की संख्या 2.45 लाख है। वहीं, हिंदू वोटरों की संख्या 1.39 लाख है। मुस्लिमों की 2.45 आबादी में 70 हजार तुर्क मुस्लिम हैं। बाकी 1.75 लाख वैसे मुस्लिम हैं, जो हिंदू से धर्मांतरित हुए हैं। इनमें सबसे अधिक 45 हजार राजपूत मुस्लिमों की संख्या है। ऐसे में यहाँ मसला तुर्क मुस्लिम बनाम राजपूत मुस्लिम का था। इसमें राजपूत मुस्लिमों को एक राजपूत नेता का साथ मिल गया और वह आसानी से जीत गया।

राजपूत मुस्लिम समाज से आने वाले यूपी भाजपा अल्पसंख्यक मोर्चा के अध्यक्ष कुंवर बासित अली गाँव-गाँव में बैठकें कीं। उन्होंने नारा दिया- ‘न दूरी है न खाई है, ठाकुर रामवीर सिंह हमारे भाई हैं’। इस नारे का असर भी दिखा और हिंदू समुदाय के साथ-साथ राजपूत मुस्लिमों ने भी ठाकुर रामवीर सिंह के पक्ष में एकतरफा वोटिंग की, जिसका सुखद परिणाम आज 31 साल बाद भाजपा को देखने को मिला।

जातीय समीकरण के अलावा, ठाकुर रामवीर सिंह की छवि ने भी उनकी जीत में महत्वपूर्ण योगदान दिया। वे लगातार दो बार से भाजपा उम्मीदवार के रूप में हार का मुँह देखा है। उन्होंने तीसरी बार में आखिरकार जीत दर्ज की है। जब वे विधायक निर्वाचित नहीं हुए थे, तब वे लोगों की समस्याओं का समाधान निकालने के लिए आगे रहते थे। लोगों के लिए सड़कें, गलियाँ आदि बनवाते थे। किसी तरह की मदद माँगने वाले कोई भी लोग उनके यहाँ से खाली हाथ नहीं जाते थे।

ठाकुर रामवीर सिंह की सहज उपलब्धता और तुर्क बनाम राजपूत मुस्लिम के समीकरण ने इस जीत में बड़ी भूमिका अता की है। यह समीकरण अब भाजपा के लिए बेहद सफल और महत्वपूर्ण हो गया है। बोहरा, पसमांदा और मुस्लिम महिलाओं के एक गुट को अपनी तरफ मिलाने के बाद भाजपा और आरएसएस हिंदू से धर्मांतरित हुए मुस्लिमों को अपनी तरफ मिलाने की रणनीति पर काम कर रहे हैं। देश में मुस्लिम आबादी का सर्वाधिक संख्या धर्मांतरित है। इनमें भी क्षत्रिय समाज की आबादी सबसे अधिक है।

राजपूत मुस्लिम वो लोग हैं, जिन्होंने मजबूरी वश इस्लाम अपना लिया। हालाँकि, अधिकांश लोग अपनी पुरानी पहचान से आज भी जुड़े हैं। वहीं, तुर्क मुस्लिम वो हैं, जिनके पूर्वज आक्रमणकारियों के साथ तुर्की, अरब आदि जगहों से उनके सेवक या सैनिक के रूप में यहाँ आए थे। देश में ब्राह्मण, जाट, गुर्जर, दलित, पिछड़े, क्षत्रिय आदि लोगों के मुस्लिम मत में धर्मांतरण का बड़ा हिस्सा आज भी मौजूद है, जो कश्मीर से कन्याकुमारी तक में दिख जाता है। तुर्क, शेख या सैयद मुस्लिमों की संख्या बेहद कम है।

अब भाजपा एवं संघ इस समीकरण को पूरे देश में लागू करेगी। संघ के वरिष्ठ नेता ने बताया कि इस समीकरण पर संघ का ध्यान तब गया, जब इस साल लोकसभा चुनावों के दौरान क्षत्रिय समाज अपने राजा-महाराजाओं के अपमान के विरोध में आंदोलन कर रहा था। उस दौरान धर्मांतरित हुए क्षत्रिय समाज के मुस्लिम उनका पूरा सहयोग कर रहे थे। इनमें राजस्थान से लेकर उत्तर प्रदेश और बिहार तक राजपूत मुस्लिम शामिल थे। वे इस विरोध में क्षत्रिय समाज के साथ कदम से कदम मिलाया। उस नेता का कहना था कि इस नए समीकरण ने भाजपा को रणनीतिक राह दिखाई।

इस सहयोग ने कॉन्ग्रेस के इमरान मसूद को सहारनपुर से लोकसभा सीट जीतने में मदद की थी। इसी समीकरण को ध्यान में रखते हुए सीसामऊ उपचुनाव में नसीम सोलंकी भी जीती हैं। वे पूरे चुनाव मंदिर गई हैं और लोगों को बार-बार याद दिलाया कि उनके पूर्वज हिंदू थे और क्षत्रिय मसाज से ताल्लुक रखते थे। उन्होंने अपनी मुस्लिम पहचान के बावजूद राजपूत मुस्लिम पहचान को उजागर किया और आखिरकार जीतने में कामयाब रहीं। अब देखना है कि अब नया राजनीतिक समीकरण इस देश में किस तरह का बदलाव लाता है।

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