शेखर पंडित
एनआईए की एक कोर्ट ने गुरुवार को 2008 के मालेगांव ब्लास्ट मामले में साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर और लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित समेत सभी सात आरोपियों को बरी कर दिया। कोर्ट ने सबूतों के अभाव और जांच एजेंसियों की खामियों को बरी करने के प्रमुख कारणों में शामिल बताया। कोर्ट ने कहा कि प्रोसिक्यूशन ने यह तो साबित कर दिया कि मालेगांव में धमाका हुआ था, लेकिन यह साबित नहीं कर पाया कि उस बाइक में बम रखा गया था। कोर्ट इस नतीजे पर पहुंचा है कि घायलों की उम्र 101 नहीं, बल्कि 95 साल थी और कुछ मेडिकल सर्टिफिकेट में हेराफेरी की गई थी।
29 सितंबर 2008 को महाराष्ट्र के मालेगांव में हुए इस धमाके में 6 लोग मारे गए थे और 100 से ज्यादा घायल हुए थे। इस मामले ने अपने राजनीतिक और सांप्रदायिक रंग के कारण पूरे देश का ध्यान अपनी तरफ खींचा। इस केस की सुनवाई करीब 17 साल से ज्यादा वक्त तक चली थी। इस केस में प्रज्ञा सिंह ठाकुर और लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित, रिटायर्ड मेजर रमेश उपाध्याय, अजय राहिरकर, समीर कुलकर्णी, सुधाकर चतुर्वेदी और सुधाकर धरद्विवेदी को दोषी ठहराया गया था। हालांकि, आज सभी को बरी कर दिया गया है।
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, महाराष्ट्र के नासिक से लगभग 100 किलोमीटर नार्थईस्ट पावरलूम इंडस्ट्री के लिए फेमस मालेगांव के एक चौक पर बम धमाका हुआ। यह रमजान का महीना था। यह इस्लाम में रोजे का सबसे पवित्र महीना है और बड़ी मुस्लिम आबादी वाले इलाके में हुए इस धमाके में छह लोग मारे गए और 100 घायल हो गए। महाराष्ट्र एटीएस को शक था कि इम्प्रोवाइज्ड एक्सप्लोसिव डिवाइस (IED) एलएमएल फ्रीडम मोटरसाइकिल पर लगाया गया था।
यह शक था कि षड्यंत्रकारियों ने बम धमाके के लिए जानबूझकर रमजान के महीने और नवरात्रि की पूर्व संध्या को चुना था। इसका मकसद सांप्रदायिक दरार पैदा करना और राज्य की सुरक्षा को खतरे में डालना था। एटीएस ने दावा किया कि धमाके वाली जगह पर मिली मोटरसाइकिल का रजिस्ट्रेशन नंबर नकली था और उसका इंजन नंबर और चेसिस नंबर मिटा दिया गया था। मिटाए गए नंबरों की मरम्मत के लिए मोटरसाइकिल को नासिक में मौजूद फोरेंसिक लैब में भेजा गया था।
एटीएस ने आरोप लगाया कि बाइक की मालिक प्रज्ञा सिंह ठाकुर उर्फ साध्वी पूर्णचेतनंद गिरि थीं और उन्हें 23 अक्टूबर 2008 को गिरफ्तार कर लिया गया। एटीएस ने दावा किया कि ठाकुर की गिरफ्तारी और पूछताछ के बाद उन्हें अन्य आरोपियों तक पहुंचाया गया। एजेंसी ने कहा कि उसने संदिग्ध व्यक्तियों के फोन कॉल इंटरसेप्ट किए थे। लेफ्टिनेंट कर्नल पुरोहित और रिटायर्ड मेजर रमेश उपाध्याय के बीच हुई बातचीत की जांच की जा रही थी। उपाध्याय और समीर कुलकर्णी को 28 अक्टूबर को गिरफ्तार किया गया था। 14 नवंबर 2008 तक कुल 11 लोगों को गिरफ्तार किया जा चुका था। इनमें पुरोहित भी शामिल था।
आरोपियों ने दावा किया कि कोर्ट में पेश करने से पहले एटीएस ने उन्हें अवैध तरीके से हिरासत में लिया था और हिरासत में उन्हें काफी प्रताड़ित किया गया था। नवंबर 2008 में एटीएस ने उनके खिलाफ मकोका की कड़ी धाराएं लगाईं। उन पर अभिनव भारत नामक एक संगठन बनाने का आरोप था। 20 जनवरी, 2009 को दायर अपनी चार्जशीट में एटीएस ने गिरफ्तार किए गए 11 लोगों को आरोपी और तीन अन्य को वांछित आरोपी बताया। आरोपियों पर आईपीसी और यूएपीए के तहत आरोप लगाए गए थे। एटीएस ने दावा किया कि आरोपियों ने मुस्लिम पुरुषों द्वारा की गई आतंकवादी गतिविधियों का बदला लेने के लिए मुसलमानों को निशाना बनाने की योजना बनाई थी।
एटीएस के मुताबिक, साजिश जनवरी 2008 से शुरू हो गई थी और फरीदाबाद, भोपाल और नासिक सहित कई जगहों पर मीटिंग हुई थीं। एटीएस ने दावा किया कि ठाकुर ने बम धमाकों के लिए लोगों को उपलब्ध कराने का वादा किया था और अभिनव भारत के जरिये पैसा जुटाया गया था। यह आरोप लगाया गया कि चतुर्वेदी और एक अन्य आरोपी रामचंद्र कलसांगरा ने मोटरसाइकिल पर विस्फोटक उपकरण लगाया था। इसके बाद वाहन को घटनास्थल पर खड़ा कर दिया गया था।
यह मामला 2011 में एनआईए को सौंप दिया गया। एनआईए अपनी जांच जारी रखी हुई थी और लेकिन आरोपियों ने अपने खिलाफ मकोका लगाए जाने को चुनौती देते हुए अदालतों का रुख किया। 13 मई 2016 को दायर अपनी चार्जशीट में एनआईए ने मकोका के तहत आरोपों को हटा दिया। इसमें कहा गया कि एटीएस की जांच में खामियां थीं और एजेंसी द्वारा गिरफ्तार किए गए 11 व्यक्तियों में से केवल सात के खिलाफ ही सबूत मौजूद थे। और दो वांछित आरोपियों कलसांगरा और संदीप डांगे के खिलाफ भी सबूत मौजूद थे।
एनआईए ने कहा कि ठाकुर के नाम पर रजिस्टर मोटरसाइकिल कलसांगरा के पास थी। वह धमाके से काफी पहले उसका इस्तेमाल कर रहा था। एजेंसी ने यह भी कहा कि मकोका लागू नहीं था, इसलिए इस अधिनियम के तहत दिए गए इकबालिया बयान, सबूत के तौर पर स्वीकार नहीं किए जा सकते। आरोपियों के खिलाफ एटीएस का मामला ज्यादातर इकबालिया बयानों पर आधारित था और एनआईए ने कहा कि चतुर्वेदी का कबूलनामा यातना का नतीजा था। उसने यह भी कहा कि समय बीत जाने के कारण, घटनास्थल से कोई ज्यादा सबूत भी बरामद नहीं किए जा सके।
एनआईए ने एटीएस की जांच में कुछ कमियों का हवाला दिया और मजिस्ट्रेट के सामने कुछ गवाहों के बयान दोबारा दर्ज किए। जिन गवाहों के बारे में एटीएस ने दावा किया था कि वे भोपाल और फरीदाबाद में हुई उन बैठकों में मौजूद थे जहां कथित तौर पर बदला लेने और धमाके पर चर्चा हुई थी। उन्होंने एनआईए को बताया कि वे इन कथित बैठकों में मौजूद नहीं थे और उन्होंने ऐसी कोई बातचीत नहीं सुनी। एनआईए के चार्जशीट में मुख्य आरोपों में से एक यह था कि एटीएस ने आरोपियों को फंसाने के लिए झूठे सबूत गढ़े थे और देवलाली में चतुवेदी के घर में अवैध रूप से एंट्री की थी।
एनआईए की चार्जशीट में दावा किया गया था कि साजिश में उनकी संलिप्तता दिखाने के लिए कोई गवाह या अन्य सबूत नहीं है, फिर भी कोर्ट ने कहा कि ठाकुर के इस दावे को मानना बहुत मुश्किल है कि धमाके से उनका कोई संबंध नहीं था। सैन्य खुफिया अधिकारी पुरोहित के बारे में कोर्ट ने कहा कि यह नतीजा नहीं निकाला जा सकता कि उन्होंने अपने कर्तव्य निर्वहन में व अपने वरिष्ठों की इजाजत से धमाके से पहले कथित षड्यंत्र बैठकों में हिस्सा लिया था।
27 दिसंबर 2017 को कोर्ट ने एनआईए की इस दलील को मान लिया कि इस मामले में मकोका नहीं लगाया जा सकता। कोर्ट ने कहा कि सातों आरोपियों ठाकुर, पुरोहित, उपाध्याय, कुलकर्णी, चतुर्वेदी, अजय राहिरकर और सुधाकर द्विवेदी पर यूएपीए, आईपीसी 1908 के तहत मुकदमा चलाया जाएगा। कोर्ट ने यह भी कहा कि दो अन्य आरोपियों राकेश धावड़े और जगदीश म्हात्रे पर पुणे में केवल शस्त्र अधिनियम, 1959 के तहत मुकदमा चलाया जाएगा। इतना ही नहीं तीन अन्य को सबूत के अभाव में बरी कर दिया जाएगा।
यह मुकदमा 2018 में शुरू हुआ था। पिछली जांच एजेंसी एटीएस को कार्यवाही में शामिल नहीं किया गया था, लेकिन प्रोसिक्यूशन ने मुकदमे के दौरान एटीएस और एनआईए दोनों की तरफ से इकट्ठा किए गए डॉक्यूमेंट और सबूतों पर भरोसा किया। चार्जशीट में जिन 30 से ज्यादा गवाहों का जिक्र किया गया था, वे कोर्ट में गवाही देने से पहले ही चल बसे। प्रोसिक्यूशन ने 323 गवाहों से पूछताछ की और कॉल डेटा रिकॉर्ड की।
34 गवाह अपने बयानों से मुकर गए। इन गवाहों की गवाही पुरोहित और कथित षड्यंत्रकारी बैठकों से संबंधित थी। इन गवाहों ने बम धमाकों की साजिश के बारे में प्रोसिक्यूशन की किसी भी चर्चा में शामिल होने या सुनने से इनकार किया। कुछ आरोपियों ने यह भी आरोप लगाया कि एटीएस ने उन्हें कुछ व्यक्तियों के नाम लेकर झूठे बयान देने के लिए मजबूर किया अवैध रूप से हिरासत में लिया और धमकाया। प्रोसिक्यूशन ने दलील दी कि कॉल डेटा रिकॉर्ड और फोरेंसिक सबूत मौजूद हैं। प्रोसिक्यूशन ने दावा किया कि गवाहों के मुकर जाने से साजिश बिल्कुल साबित नहीं हुई। प्रोसिक्यूशन ने यह भी दावा किया कि 15,000 लोगों की भीड़ ने घटनास्थल पर छेड़छाड़ की थी।