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क्या है ‘अनुच्छेद 35-ए’, जम्मू-कश्मीर में इसे लेकर क्यों मचा है बवाल?

नई दिल्ली। अनुच्छेद 35 ए को लेकर जम्मू कश्मीर में अलगाववादियों ने डर का माहौल बना दिया है. पिछले एक हफ्ते से घाटी में प्रदर्शन के नाम पर डराने वाले तेवर दिखाए जा रहे हैं. इस बीच अलगाववादियों ने दो दिन का बंद भी बुलाया है. इस बंद का असर यह हुआ कि सरकार ने सोमवार यानी आज जम्मू से रवाना होने वाले अमरनाथ यात्रा पर ब्रेक लगा दिया है.

दरअसल, सोमवार को अनुच्छेद 35 ए को लेकर दायर की गई अर्जी पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होनी है. जिसके खिलाफ हुर्रियत नेताओं ने बंद का आह्वान किया है. यह अर्जी पिछले 4 साल से पेंडिंग है. 2014 में अनुच्छेद 35 ए को लेकर कानूनी जंग सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गई थी. लेकिन पिछले चार साल में इस पर सिर्फ बात ही हुई है.

‘तिरंगा उठाने का अंजाम बुरा होगा’

सवाल ये है कि अनुच्छेद 35 ए के नाम पर ऐसा क्या है जिससे हुर्रियत की चीखें निकल रही हैं? हुर्रियत नेता बिलाल वार कहते हैं कि 35 ए के कारण कश्मीर एक है. अगर इसे हटाया गया तो जंग छिड़ जाएगी. हालांकि, अनुच्छेद 35 ए को लेकर घाटी में सभी पार्टियां अपना राजनीतिक हित साधते नजर आती हैं.

क्या 35 ए के हटने का मतलब अलगाववाद की दुकानें बंद होना है, अगर नहीं, तो क्यों सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई भर से हुर्रियत नेता कश्मीर को डरा रहे हैं और देश को धमका रहे हैं? नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता जावेद राणा ने कहा कि बंद के दौरान कोई तिरंगा नहीं उठाएगा. ऐसा करने पर अंजाम बुरा होगा.

अनुच्छेद 35 ए आज से 64 साल पहले कश्मीर के लिए लाया गया था. तब कश्मीर को देश के दूसरे राज्यों से अलग विशेष अधिकार दिए गए थे. लेकिन 64 सालों में इस पर लगातार सवाल भी उठते रहे हैं कि कश्मीर के लिए अलग कानून क्यों है और क्या ऐसे ही कानून अलगाववाद की जड़ है?

35 ए पर एक हुए उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती

अनुच्छेद 35 ए का मुद्दा उठते ही एक दूसरे के राजनीतिक विरोधी उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती की पार्टी का जैसे गठबंधन हो गया. धमकियां देने और देश को कश्मीर पर डर दिखाने वाली बातों के साथ दोनों पार्टियां सड़क पर उतर गईं.

केंद्रीय मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी ने कहा कि कोई भी मामला कोर्ट में है उसमें बहस चल रही है और आर्गुमेंट में जम्मू कश्मीर को लेकर सरकार अपना पक्ष रखेगी. सुनवाई से पहले हंगामा करने की जरूरत नहीं. वहीं, कांग्रेस कह रही है कि धारा 370 और 35 ए अब वैसा नहीं रहा. हालांकि, इस मुद्दे पर कांग्रेस के लिए साफ साफ बोलना मुश्किल है. लेकिन बीजेपी का तो ये राजनीतिक एजेंडा रहा है, फिर भी सरकार कोर्ट में 35 ए पर साफ राय नहीं रख पाई. वहीं, बीजेपी के नेता खुलकर बोलते रहे हैं कि 35ए नहीं होना चाहिए. इसे हटना चाहिए.

आखिर क्या है अनुच्छेद 35 ए और क्यों कहा जाता है कि अलगाववाद की जड़ें इसी में छुपी हैं, आइए जानते हैं…

> अनुच्छेद 35A से जम्मू कश्मीर को ये अधिकार मिला है कि वो किसे अपना स्थाई निवासी माने और किसे नहीं.

> जम्मू कश्मीर सरकार उन लोगों को स्थाई निवासी मानती है जो 14 मई 1954 के पहले कश्मीर में बसे थे.

> ऐसे स्थाई निवासियों को जमीन खरीदने, रोजगार पाने और सरकारी योजनाओं में विशेष अधिकार मिले हैं.

> देश के किसी दूसरे राज्य का निवासी जम्मू-कश्मीर में जाकर स्थाई निवासी के तौर पर नहीं बस सकता.

> दूसरे राज्यों के निवासी ना कश्मीर में जमीन खरीद सकते हैं, ना राज्य सरकार उन्हें नौकरी दे सकती है.

> अगर जम्मू-कश्मीर की कोई महिला भारत के किसी अन्य राज्य के व्यक्ति से शादी कर ले तो उसके अधिकार छीन लिए जाते हैं.

> उमर अब्दुल्ला की शादी भी राज्य से बाहर की महिला से हुई है, लेकिन उनके बच्चों को राज्य के सारे अधिकार हासिल हैं.

> उमर अब्दुल्ला की बहन सारा अब्दुल्ला राज्य से बाहर के व्यक्ति से विवाह करने के बाद संपत्ति के अधिकार से वंचित कर दी गई हैं.

संविधान के अनुच्छेद 370 के तहत ही जोड़ा गया था अनुच्छेद 35ए

> अनुच्छेद 370 की वजह से जम्मू कश्मीर के नागरिकों के पास दोहरी नागरिकता है.

> अनुच्छेद 370 की वजह से जम्मू कश्मीर में अलग झंडा और अलग संविधान चलता है.

> इसकी वजह से कश्मीर में विधानसभा का कार्यकाल 6 साल का होता है, जबकि अन्य राज्यों में 5 साल का होता है.

> इसकी वजह से जम्मू-कश्मीर को लेकर कानून बनाने के अधिकार भारतीय संसद के पास बहुत सीमित हैं.

> संसद में पास कानून जम्मू कश्मीर में लागू नहीं होते जैसे ना शिक्षा का अधिकार, ना सूचना का अधिकार.

> ना तो आरक्षण मिलता है, ना ही न्यूनतम वेतन का कानून लागू होता है.

क्या है इसका कानूनी पहलू?

> 2014 में वी द सिटिजंस नाम के एक NGO ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी लगाई थी.

> इस अर्जी में संविधान के अनुच्छेद 35A और अनुच्छेद 370 की वैधता को चुनौती दी गई.

> ये दलील दी गई कि संविधान बनाते वक्त कश्मीर के ऐसे विशेष दर्जे की कोई बात नहीं कही गई थी.

> यहां तक कि संविधान का ड्राफ्ट बनाने वाली संविधान सभा में चार सदस्य खुद कश्मीर से थे.

> अनुच्छेद 370 टेम्परेरी प्रावधान था, जो उस वक्त हालात सामान्य और लोकतंत्र मजबूत करने के लिए लाया गया था.

> संविधान निर्माताओं ये नहीं सोचा था कि अनुच्छेद 370 के नाम पर 35 ए जैसे प्रावधान जोड़े जाएंगे.

> अनुच्छेद 35 ए उस भावना पर चोट करता है जो एक भारत के तौर पर पूरे देश को जोड़ता है.

> जम्मू कश्मीर में दूसरे राज्यों के नागरिकों के अधिकार ना होना संविधान के मूल अधिकारों के खिलाफ है.

क्या है अनुच्छेद 35 ए का इतिहास?

> अनुच्छेद 35A को राष्ट्रपति के एक आदेश से संविधान में साल 1954 में जोड़ा गया था.

> ये आदेश तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की कैबिनेट की सलाह पर जारी हुआ था.

> इससे दो साल पहले 1952 में नेहरू और शेख अब्दुल्ला का दिल्ली समझौता हुआ था.

> जिसके तहत भारतीय नागरिकता जम्मू-कश्मीर के राज्य के विषयों में लागू करने की बात थी.

> लेकिन अनुच्छेद 35 ए को खास तौर पर कश्मीर के स्पेशल स्टेटस को दिखाने के लिए लाया गया.

> विरोध की दलील ये है कि ये राष्ट्रपति आदेश है, जिसे खत्म होना चाहिए. क्योंकि इस पर संसद में कोई चर्चा और बहस नहीं हुई.

> संसद को बताए बिना 35 ए को ऐसे आदेश के जरिए संविधान में जोड़ दिया गया.

अनुच्छेद 35 ए को हटाने के पीछे ये है दलील

अनुच्छेद 35 ए के खिलाफ अर्जी लगाने वाले NGO का कहना है कि वो सुप्रीम कोर्ट से इस मामले की सुनवाई के लिए एक संवैधानिक पीठ बनाने की अपील करेगी. अनुच्छेद 35 ए को हटाने की सबसे बड़ी दलील यही है कि इसे संसद के जरिए लागू नहीं करवाया गया. बल्कि राष्ट्रपति आदेश से जबरन थोपा गया.

दूसरी बड़ी दलील है कि देश के बंटवारे के वक्त बड़ी संख्या में पाकिस्तान से लोग भारत आए थे. इनमें लाखों की संख्या में लोग जम्मू कश्मीर में भी बस गए थे, लेकिन अनुच्छेद 35 ए की वजह से इन सभी को स्थायी निवासी होने का हक छीन लिया गया. ऐसे लाखों लोगों में अधिकतर हिंदू-सिख समुदाय से हैं.

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