देवघर। श्रावणी मेले के दूसरी सोमवारी को बाबा नगरी में आस्था का जनसैलाब उमड़ पड़ा है. इस बार के श्रावणी मेले में पहली बार इतनी संख्या में कांवरिए पहुंचे हैं. देर रात से ही भक्त कतार में लगकर अपनी बारी का इंतजार करते देखे गए. एक अनुमान लगाया जा रहा है कि इस सोमवारी को ढाई से तीन लाख कांवरिए देवघर में शिवलिंग पर जलाभिषेक करेंगे.
दूसरी सोमवारी की भीड़ से निपटने के लिए जिला प्रशासन की तैयारियां चल रही है. नंदन पहाड़ को पार करते हुए फिल्टरेशन प्लांट को भी पार कर कुमैठा पहुंच गई है भीड़. ऐसे में कतार की लम्बाई लगभग 14 किलोमीटर हो गई है.
भीड़ को देखते हुए चप्पे-चप्पे पर पुलिस बलों की तैनाती की गई है. दूसरी सोमवारी की भीड़ को देखते हुए सभी पुलिस जवानों की ड्यूटी में इजाफा कर दिया गया है. इस बार के सावन महीने में चार सोमवारी का संयोग है.
कहा जाता है कि भगवान शिव को पूरे सावन दूध और गंगाजल से अभिषेक करने पर मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है. सोमवारी का भी अपना महत्व है. सोम चंद्रमा को कहते हैं और चंद्रमा के ईश्वर भगवान शिव हैं. लिहाजा सोमवारी काफी फलदाई होता है. इसी वजह से शिव को सोमेश्वर कहते हैं.
कथाओं में वर्णित है कि गंगा का पृथ्वी पर पदार्पण भी सावन के सोमवारी को ही हुआ था. इसी वजह से सोमवारी को उत्तम दिन माना जाता है. सावन के महीने में ही समुद्र मंथन हुआ था और हर सोमवारी को एक बेशकीमती वस्तु निकली थी. सावन की दूसरी सोमवारी को ऐरावत हाथी की उत्पत्ति हुई थी जो शक्ति वैभव ओर ऐश्वर्य का प्रतीक माना गया है. जानकारों के अनुसार यही कारण है कि आज के दिन पवित्र द्वादस ज्योतिर्लिंग के जलाभिषेक से सभी मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है.
श्रावणी मेले के दौरान कांवरिए अपने कंधे पर कांवड़ रखकर सुल्तानगंज से जल भरकर देवघर आते हैं और बाबा बैद्यनाथ को जल अर्पित करते हैं. कांवड़ को लेकर चलने में कई नियमों का पालन करना पड़ता है. पवित्रता का काफी ध्यान रखना पड़ता है.
कथाओं के मुताबिक, रावण पर विजय प्राप्त करने के उद्देश्य से भगवान राम ने राज्याभिषेक के बाद पत्नी सीता और तीनों भाई सहित सुल्तानगंज से जल भरकर शिव को अर्पित किए थे. तभी से शिवभक्त यहां जलाभिषेक करते हैं. स्कन्द पुराण के अनुसार कांवड़ यात्रा से अश्वमेघ यज्ञ करवाने जितनी फल की प्रप्ति होती है. सावन महीने में शिवलिंग पर जलाभिषेक करने का विशेष महत्व है.