Friday , November 22 2024

स्मृति शेष: चले गए नेता, नास्तिक, ‘योगी’ कलैगनार…

नई दिल्ली। एम करुणानिधि भारतीय राजनीति के उन क्षत्रपों में थे, जिन्होंने भारतीय राजनीति को उसकी जड़ से बदल दिया. महज 14 साल की उम्र में राजनीतिक आंदोलनों में शामिल हुए करुणानिधि ने देश की द्रविड़ राजनीति को नई ऊंचाइयां दी. यह भी इत्तफाक ही है कि तमिलनाडु की राजनीति जिन दो दलों द्रमुक और अन्नाद्रमुक के बीच पिछले 50 साल से घूम रही है, वे दोनों ही दल एक ही विचारधारा से पनपे. बल्कि यूं कहें कि जब द्रमुक ने कलैगनार यानी करुणानिधि को अपना नेता चुन लिया, तो एमजी रामचंद्रन पार्टी से अलग हो गए और अन्नाद्रमुक की स्थापना की. तमिल में कलैगनार का अर्थ होता है- आला दर्जे का लेखक और कलाकार.

दरअसल करुणानिधि पेशे से लेखक ही थे. यह भी दिलचस्प बात है कि दक्षिण भारत की राजनीति भले ही बड़े पर्दे के सुपर स्टार्स के इर्द-गिर्द घूमती रही हो, लेकिन उसकी असली पटकथा फिल्मों के इस पटकथा लेखक ने ही लिखी. सक्रिय राजनीति में रहने के दौरान भी करुणानिधि बराबर कविता और उपन्यास लिखते रहे. उन्होंने छह खंडों में अपनी आत्मकथा नीजुक्कू नीति भी लिखी है.

1969 में पहली बार तमिलनाडु का मुख्यमंत्री बनने के बाद वे पांच बार तमिलनाडु के मुख्यमंत्री रहे. इस दौरान इस लेखक का मुकाबला पहले सुपरस्टार एम जी रामचंद्रन से रहा और उसके बाद उनकी अभिनेत्री उत्तराधिकारी जे जयललिता से होता रहा. उन्हें एक ऐसे नेता के तौर पर जाना जाता है, जो एक तरफ सख्त निर्णय लेने में माहिर था, तो दूसरी तरफ हवा के रुख के साथ पाला बदलने में भी माहिर था. इमरजेंसी के दौरान उन्होंने इंदिरा गांधी का विरोध किया और 1976 में उनकी सरकार बर्खास्त कर दी गई. लेकिन 1980 में उन्होंने इंदिरा गांधी से हाथ मिला लिया और अपने चिरप्रतिद्वद्वी एमजीआर की सरकार बर्खास्त करवा दी. 1996 में उनकी पार्टी देवगौड़ा की सरकार में शामिल रही, तो 1999 में उन्होंने बीजेपी से हाथ मिला लिया और बाजपेयी सरकार में शामिल हो गए. उसके बाद मनमोहन सिंह की सरकार में भी 10 साल शामिल रहे.

सुदूर दक्षिण में बैठकर भारत की केंद्रीय राजनीति में पूरा दखल देते रहे इस नेता का चित्र हमारे दिमाग में काला चश्मा पहने बुजुर्ग व्यक्ति का बनता है, लेकिन उम्र के आखिरी पड़ाव तक वह योग के दम पर खुद को स्वस्थ बनाए रहे. खुद को आजीवन नास्तिक मानने वाले कलैगनार की राजनीति दलित स्वाभिमान के इर्द गिर्द घूमती रही. उनकी ये दोनों आस्थाएं कई बार देश की राजनीति की मुख्यधारा से टकराती रहीं, लेकिन उन्होंने इसकी परवाह नहीं की. अपने इस तमिल आग्रह के चलते एक बार उन्होंने लिट्टे के नेता प्रभाकरण को आतंकवादी मानने से मना कर दिया. जबकि भारत के पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या के पीछे इसी संगठन का हाथ था. जब रामसेतु का मुद्दा उछला तो अपने नास्तिक स्वभाव के मुताबिक उन्होंने भगवान राम के अस्तित्व पर ही सवाल उठाने से परहेज नहीं किया.

साहसी पत्रकारिता को सपोर्ट करें,
आई वॉच इंडिया के संचालन में सहयोग करें। देश के बड़े मीडिया नेटवर्क को कभी पैसों की कमी नहीं होती। देश-विदेश से क्रांति के नाम पर इन्हें ख़ूब फ़ंडिग मिलती है। इनसे लड़ने के लिए हमारे हाथ मज़बूत करें। जितना बन सके, सहयोग करें।

About admin