नई दिल्ली। तमिलनाडु ही नहीं बल्कि देश की सियासत में भी कद्दावर नेता मुत्तुवेल करुणानिधि ऊर्फ एम करुणानिधि का एक अलग प्रभाव और दबदबा रहा है. उन्होंने फिल्मों में पटकथा लेखन से अपना करियर शुरू किया. हालांकि फिल्मों की दुनिया उन्हें ज्यादा दिनों तक रास नहीं आई. बाद में उन्होंने राजनीति में आने का निर्णय लिया और राज्य के मुख्यमंत्री तक का सफर तय किया. करुणानिधि का जन्म 3 जून 1924 तमिलनाडु के नागपट्टिनम के तिरुक्कुभलइ में हुआ. करुणानिधि ईसाई समुदाय से थे.
ऐसे आए राजनीति में
करुणानिधि ईवी रामास्वामी पेरियार के द्रविड़ आंदोलन के प्रचार में अहम भूमिका अदा की. करुणानिधि ने द्रविड़ आंदोलन की विचारधाराओं का समर्थन किया. आगे चलकर उनका परिचय तमिल फिल्म जगत के दो प्रमुख अभिनेताओं, शिवाजी गणेशन और एस. एस. राजेन्द्रन से हुआ. करुणानिधि ने सामाजिक बदलाव की कहानियों को फिल्मी पर्दे पर उतारा. विधवा पुनर्विवाह, अस्पृश्यता का उन्मूलन, आत्मसम्मान विवाह, ज़मींदारी का उन्मूलन और धार्मिक पाखंड के मुद्दे उनकी फिल्मों का मुख्य केंद्र रहे.
राजनीति में प्रवेश
करुणानिधि का राजनीति की ओर रुझान तो बचपन से ही था और उन्होंने 14 साल की उम्र से ही राजनीति रास आने लगी. लेकिन राजनीति में प्रवेश स्टिस पार्टी के अलगिरिस्वामी के एक भाषण से प्रेरित होकर हुआ. उन्होंने अपने इलाके के स्थानीय युवाओं के लिए एक संगठन की स्थापना की और बाद में मनावर नेसन नामक एक हस्तलिखित अखबार भी चलाया. बाद में उन्होंने तमिलनाडु तमिल मनावर मंद्रम नामक एक छात्र संगठन की स्थापना की जो द्रविड़ आन्दोलन का पहला छात्र विंग था.
1957 में पहली बार बने विधायक
करुणानिधि ने सन् 1957 में पहली बार विधायक बने. तिरुचिरापल्ली जिले के कुलिथालाई से जीतकर विधानसभा पहुंचे. इसी के साथ, उन्होंने तमिलनाडु की सियासत में प्रवेश किया. इसके बाद वे 1961 में डीएमके कोषाध्यक्ष बने और 1962 में राज्य विधानसभा में विपक्ष के उपनेता बने और 1967 में जब डीएमके सत्ता में आई, तब वे पहली बार मंत्री बने. उनके राजनीतिक जीवन का सबसे बड़ा बदलाव तब आया जब 1969 में डीएमके (द्रविड मुनेत्र कडगम) के संस्थापक अन्नादुरई की मौत हो गई और वे अन्नादुरई के बाद न केवल डीएमके का न केवल चेहरा बने, बल्कि पहली बार तमिलनाडु के मुख्यमंत्री बने.
उतार-चढ़ाव वाला रहा निजी जीवन
करुणानिधि का निजी जीवन भी बहुत उतार-चढ़ाव वाला रहा. करुणानिधि ने तीन बार शादियां की, उनकी तीनों पत्नी पद्मावती, दयालु आम्माल और राजात्तीयम्माल. उनके बच्चे एम.के. मुत्तु, एम.के. अलागिरी, एम.के. स्टालिन और एम.के. तामिलरसु जबकि पुत्रियां सेल्वी और कानिमोझी रहीं. करुणानिधि पर आरोप है कि करूणानिधि मुख्यमंत्री रहते हुए अपने पुत्र स्टालिन को 1989 और 1996 में चुनावी जंग में उतारा और जितवाया, हालांकि स्टालिन को मंत्रिमंडल में शामिल नहीं किया गया था. यही नहीं करुणानिधि पर यह भी आरोप है कि उन्होंने पार्टी का चेहरा स्टालिन को बनाने के लिए वाइको जैसे सहयोगी को पार्टी से बाहर निकलने के लिए मजबूर कर दिया.
करुणानिधि पांच बार (1969–71, 1971–76, 1989–91, 1996–2001 और 2006–2011) मुख्यमंत्री रहे हैं. यही नहीं उन्होंने 2004 के लोकसभा चुनाव में तमिलनाडु और पुदुचेरी में डीएमके के नेतृत्व वाली डीपीए (यूपीए और वामपंथी दल) का नेतृत्व किया और लोकसभा की सभी 40 सीटों को जीत लिया. 2009 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने डीएमके द्वारा जीती गई सीटों की संख्या को 16 से बढ़ाकर 18 कर दिया और तमिलनाडु और पुदुचेरी में यूपीए का नेतृत्व कर बहुत छोटे गठबंधन के बावजूद 28 सीटों पर विजय प्राप्त की. करुणानिधि को उनके समर्थक ‘कलाईनार’ कहकर बुलाते थे जिसका तमिल भाषा में अर्थ कला का ‘विद्वान’ होता है.