देवब्रत घोष
नक्सल-विरोधी एक बड़े ऑपरेशन में सोमवार की सुबह छत्तीसगढ़ पुलिस के डिस्ट्रिक्ट रिजर्व गार्ड (डीआरजी) ने सुकमा जिले के मिल्टकाटोंग गांव में 15 माओवादियों को मार गिराया. मुठभेड़ की स्थिति अचानक और बिना किसी तैयारी के पेश आई. छत्तीसगढ़ के बस्तर में माओवादियों ने अपने दबदबे वाले दंडकारण्य के इलाके में जगह-जगह पोस्टर और बैनर लगाया है. इसमें आदिवासी नौजवानों से नक्सली दस्ते में शामिल होने की अपील की गई है. पुलिस सूत्रों के मुताबिक मुठभेड़ में जन मिलिशिया प्लाटून के 15 माओवादी मारे गये हैं और चार माओवादियों की गिरफ्तारी हुई है जिसमें एक महिला भी शामिल हैं.
जन मिलिशिया के पकड़े गये तीन पुरुष सदस्यों में एक मदकामी देवा एरिया कमिटी का मेंबर है. उसके ऊपर 5 लाख रुपए का इनाम रखा गया है. पुलिस ने मुठभेड़ की जगह से 16 स्वदेशी हथियार तथा चार इम्प्रोवाइज्ड एक्सप्लोसिव डिवाइसेज (IEDs) बरामद किए हैं.
सोमवार को तड़के सुबह शुरु हुआ यह ऑपरेशन दो घंटे तक चला. ऑपरेशन सिर्फ सुकमा जिले के डीआरजी (डिस्ट्रिक्ट रिजर्व गार्ड) ने चलाया.
छत्तीसगढ़ में एंटी-नक्सल ऑपरेशन्स के स्पेशल डायरेक्टर जेनरल डीएम अवस्थी ने अपने एक साक्षात्कार में फ़र्स्टपोस्ट से कहा था कि माओवादियों को सुकमा जिले के दक्षिणी हिस्से के अंदरुनी इलाकों में धकेल दिया गया है. सुकमा जिले का तकरीबन 50 फीसद हिस्सा तेलंगाना की सीमाओं से सटा हुआ है. सुकमा जिले में माओवादियों का दबदबा है और यह माओवादियों का मजबूत गढ़ है. यहां माओवादी अपनी समानान्तर सरकार चलाते हैं जिसे ये लोग जनताना सरकार कहते हैं.
छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमण सिंह ने कई मौकों पर माओवादियों से अपील की है कि वे हथियार डाल दें तथा मुख्यधारा में शामिल हो जायें अन्यथा उनके खिलाफ कार्रवाई की जायेगी. सूबे की सरकार ने छत्तीसगढ़ में नक्सलियों के उत्पात से निबटने के लिए 2016 से आक्रामक तेवर अपनाए हैं.
ऑपरेशन मॉनसून
डिस्ट्रिक्ट रिजर्व गार्ड के 80 जवानों ने 4 अगस्त से एक हथियारबंद अभियान छेड़ा है. अभियान को ऑपरेशन मॉनसून का नाम दिया गया है. स्थानीय खुफिया स्रोतों से जानकारी मिली थी कि सुकमा जिले के कोंटा और गोलापल्ली गांव में जन मिलिशिया प्लाटून के लोग आने वाले हैं. इस जानकारी के बाद ऑपरेशन मॉनसून शुरू किया गया.
मुठभेड़ कोंटा गांव से 20 किलोमीटर दूर उत्तर-पश्चिम में सुबह 6.15 बजे शुरु हुई. दोनों पक्ष के बीच लगभग दो घंटे तक गोलीबारी हुई और इस मुठभेड़ में डीआरजी ने 15 माओवादियों का सफाया कर दिया. पुलिस का कहना है कि प्लाटून में 45 से 50 अतिवादी थे.
छत्तीसगढ़ पुलिस ने इसे डीआरजी की बड़ी कामयाबी माना है. डीआजी का गठन सूबे की पुलिस ने अपने दायरे के भीतर किया है. इसमें स्थानीय आदिवासी नवयुवकों को बतौर जवान बहाल किया गया है.
बस्तर रेंज के इंस्पेक्टर जेनरल ऑफ पुलिस विवेकानंद ने फ़र्स्टपोस्ट को बताया कि ‘ऑपरेशन खास तौर पर डीआरजी के जवानों ने अंजाम दिया. चूंकि डीआरजी के जवान स्थानीय नवयुवक हैं सो उन्हें बस्तर के पहाड़ी और जंगली इलाकों की अच्छी जानकारी है. मॉनसून के दिनों में यह इलाका सुरक्षाबलों के बहुत दुर्गम हो जाता है क्योंकि नदी, नहर और नालों में पानी भर चुका होता है ऑर ऐसे में ऑपरेशन रोक देना पड़ता है. लेकिन अभी के वाकये में हमें चार दिनों की मोहलत मिल गई थी क्योंकि बारिश रुकी हुई थी और खुफिया जानकारी के आधार पर ऑपरेशन को अंजाम दिया गया.’
कोंटा और गोलापल्ली के बीच के इलाके को जंगल और पहाड़ों के कारण दुर्गम माना जाता है.
सेंट्रल रिजर्व पुलिस फोर्स (सीआरपीएफ) के आधिकारिक सूत्रों के मुताबिक 217 वीं बटालियन के एक दस्ते को मुठभेड़ की जगह पर हिफाजती कवर तथा इलाके की घेराबंदी करने के लिए रवाना किया गया था.
बरामद असलहे
सुकमा जिले के पुलिस अधीक्षक अभिषेक मीणा ने मुठभेड़ में 15 माओवादियों के मारे जाने और 16 स्वदेशी हथियारों की बरामदगी की पुष्टी की.
पुलिस सूत्रों के मुताबिक माओवादी कारकूनों के जन मिलिशिया प्लाटून के लड़ाके 12 बोर की राइफल तथा स्वदेशी बंदूकों का इस्तेमाल करते हैं.
पुलिस सूत्रों का कहना है कि ‘जन मिलिशिया दस्ते के पास पीपुल्स लिबरेशन गुरिल्ला आर्मी और सीपीआई (माओवादी) के लड़ाकों की तरह अत्याधुनिक हथियार नहीं होते.’
जन मिलिशिया
गावों में माओवादियों के मददगार और हमदर्द मौजूद होते हैं और उनकी पहचान नहीं हो पाती. जन मिलिशिया के सदस्य माओवादी कारकूनों के लिए ‘आंख और कान’ का काम करते हैं. इन सदस्यों का काम खुफिया जानकारी जुटाना, सुरक्षाबलों की आवाजाही पर नजर रखना, अतिवादी वामपंथ की विचारधारा का प्रसार करना, ग्रामीण आदिवासी नवयुवकों को अपनी विचारधारा में दीक्षित करना और वक्त जरुरत धावा बोलना होता है. जन मिलिशिया को सीपीआई (माओवादी) का मुख्य सहारा माना जाता है.
इंस्पेक्टर जेनरल ने बताया कि ‘जन मिलिशिया के दस्ते माओवादियों के लिए रीढ़ की हड्डी की तरह हैं. माओवादी कारकून बड़े छापामार हमले और धावे जन मिलिशिया के मदद से बोलते हैं. इस मुठभेड़ में डीआरजी ने जन मिलिशिया की एक महिला सदस्य को पकड़ा है, उसके पैर में गोली लगी है और उसे उपचार के लिए भेजा गया है.’
माओवादियों का भर्ती अभियान
सरकार ने तेजी से विकास करने और आक्रामक तेवर के साथ कार्रवाई करने की दोधारी रणनीति अपनाई है. इसकी वजह से वामपंथी अतिवादियों को अपने कदम पीछे खींचने पर मजबूर होना पड़ा है. फंड की कमी के कारण माओवादियों की चिन्ता बढ़ी है. पुलिस के मुताबिक माओवादियों की सदस्य संख्या में कमी आ रही है और यह बात वामपंथियों अतिवादियों के लिए चिन्ता का सबब है.
नक्सली कारकूनों ने माओवादियों के दबदबे वाले कांकेर जिले के गांवों में बैनर-पोस्टर लगाये थे और अपील की थी कि ग्रामीण युवक नक्सलियों के दस्ते में जुड़ें.
हर साल सीपीआई (माओवादी) 28 जुलाई से 3 अगस्त के बीच शहादत सप्ताह मनाती है. इस दौरान माओवादी सरकारी संपत्ति की तोड़फोड़ करते हैं, सड़क पर आवागमन बाधित करते और अपना भर्ती अभियान चलाते हैं. पीपुल्स लिबरेशन गुरिल्ला आर्मी भी 2 से 8 दिसंबर के बीच एक खास सप्ताह का आयोजन करती है. इस दौरान भर्ती अभियान चलाया जाता है.
कांकेर जिले के पुलिस अधीक्षक केएल ध्रुव ने फ़र्स्टपोस्ट को बताया कि ‘हर साल शहादत सप्ताह के दौरान माओवादी भर्ती अभियान चलाते हैं. इस बार भी उन लोगों ने कांकेर जिले के गांवों में बैनर-पोस्टर लगाए थे जिसमें पखानजुर का इलाका भी शामिल है.’ डीएम अवस्थी के मुताबिक सुरक्षा बलों ने 2016 के अगस्त से 2018 की जुलाई तक 500 मुठभेड़ों में मारे गए 208 माओवादियों के शव बरामद किए हैं.