जाने-माने साहित्यकार और साहित्य अकादमी के पूर्व अध्यक्ष विश्वनाथ प्रसाद तिवारी ने कहा है कि वर्ष 2015 में चलाया गया अवॉर्ड वापसी अभियान राजनीतिक रूप से प्रेरित था और यह अपने आप नहीं हुआ था. जिस समय अवॉर्ड वापसी अभियान चल रहा था उस समय तिवारी खुद साहित्य अकादमी के अध्यक्ष थे. उन्होंने अपनी पत्रिका ‘दस्तावेज’ के संपादकीय में इस अभियान को लेकर कई अहम खुलासे किए हैं.
विश्वनाथ प्रसाद तिवारी ने अपने लेख में लिखा है, ‘जब से मैं भारतीय इतिहास का साक्षी रहा हूं. असहिष्णुता को लेकर इतनी लंबी बहस कभी नहीं हुई थी.’ अवॉर्ड वापसी अभियान भी देश में बढ़ती कथित असहिष्णुता को लेकर ही शुरू हुआ था.
उन्होंने अपने लेख में लिखा है, ‘2014 में आम चुनाव से पहले यह स्पष्ट होने लगा था कि मोदी के नाम पर बीजेपी सत्ता में आ रही है तो कन्नड़ लेखक यूआर अनंतमूर्ति ने यह बयान दिया था-‘यदि नरेंद्र मोदी देश के प्रधानमंत्री होंगे तो मैं देश छोड़ कर चला जाऊंगा.’ यह बयान जो भारत के किसी विपक्षी नेता, यहां तक कि लालू प्रसाद यादव ने भी नहीं दिया, एक लेखक द्वारा दिया गया.’
विश्वनाथ प्रसाद तिवारी का कहना है कि अब तो कुछ लोगों के उस कथन पर भी विश्वास किया जा सकता है कि पुरस्कार वापसी का नाटक चुनाव में जेडीयू के पक्ष में बीजेपी के विरुद्ध वातावरण बनाने के लिए था.
उनके इस लेख पर देश भर में तमाम चर्चाएं हो रही हैं. सोशल मीडिया पर भी लेखक और तमाम लोग अपनी प्रतिक्रियाएं दे रहे हैं. इसी दौरान एएनआई से इस मुद्दे पर बातचीत करते हुए विश्वनाथ प्रसाद तिवारी ने कहा है कि अवॉर्ड वापसी अभियान राजनीतिक रूप से प्रेरित था. उन्होंने कहा कि हालांकि ऐसा कोई कारण नहीं था, सिवाय इसके कि कुछ लोग प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ वातावरण बनाना चाहते थे.
विश्वनाथ तिवारी ने अवॉर्ड वापस करने वालों से पूछे हैं सवाल
इस लेख के माध्यम से उन्होंने अवॉर्ड वापसी करने वाले लोगों से 8 सवाल भी पूछे हैं. जिसमें आपातकाल, कश्मीरी पंडितों को घाटी से भगाना और निर्भया कांड का जिक्र है. उन्होंने पूछा है कि जब देश में इस तरह के हालात थे तब अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता कहा थी और साहित्यकारों ने उस समय अवॉर्ड क्यों नहीं लौटाए.
अपने लेख में विश्वनाथ प्रसाद तिवारी ने साहित्यकार और अवॉर्ड वापसी अभियान में बढ़चढ़ कर हिस्सा लेने वाले अशोक वाजपेयी का भी जिक्र किया है. उन्होंने लिखा है कि वाजपेयी को साहित्य अकादमी पुरस्कार उस वक्त मिला था जब अनंतमूर्ति अकादमी के अध्यक्ष थे. वाजपेयी ने एक अखबार में लेक लिख कर बीजेपी को वोट नहीं देने की अपील भी की थी.
तिवारी ने अपने लेख में लिखा है कि पुरस्कार लौटाने वाले लेखकों में से सबसे अधिक सवाल अशोक वाजपेयी से किए गए. वास्तव में वे ही इस आंदोलन के सूत्र संचालक भी थे. उन्होंने कहा है कि वाजपेयी से उनके पूर्व के कार्य-कलापों के बारे में पूछा गया तो उन्होंने उत्तर भी नहीं दिया.
अशोक वाजपेयी ने मामले पर दी है सफाई
इन तमाम आरोपों पर अपना पक्ष रखते हुए अशोक वाजपेयी ने सत्याग्रह वेबसाइट में एक लिखा है. इस लेख में उन्होंने कहा है कि विश्वनाथ तिवारी का यह कहना गलत है कि पुरस्कार वापसी अपने आप से नहीं हुई थी.
उन्होंने अपना पक्ष रखते हुए लिखा है, ‘यह विचित्र और खेदजनक है कि एक लेखक, जो कि संयोगवश उस समय अकादमी का अध्यक्ष भी था, मानने को तैयार नहीं है कि दूसरे लेखक बंधुओं ने स्वतःस्फूर्त ढंग से अपने पुरस्कार लौटाए. वे गलत, सिरफिरे हो सकते हैं पर उनकी नीयत पर संदेह करने का कोई आधार नहीं है. उसे राजनेताओं की तरह वह भी अभियान या सुनियोजित षड्यंत्र मानता है. न कोई सूत्र था, न संचालन की जरूरत थी, न वह किया गया.
वाजपेयी ने इस लेख में 18 बिंदुओं के माध्यम से अपना पक्ष रखने की कोशिश की है और लिखा है कि सांप्रदायिक, धार्मिक, वैचारिक कट्टरात का मैं क से कम 50 वर्षों से घोर विरोधी रहा हूं. पर वफादारी की भी कट्टरता होती है यह भी मानता हूं. मेरा किसी राजनैतिक दल से न कोई संबंध कभी था, न है, न कोई संपर्क ही.