लखनऊ\मेरठ। 2019 के लोकसभा चुनाव की रणनीति के लिए मेरठ में दो दिनों तक बीजेपी कार्यकारिणी की बैठक चली. इसमें राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह और सीएम योगी आदित्यनाथ सहित प्रदेश के सारे दिग्गज नेताओं ने दस्तक की. लेकिन बीजेपी के तीन बड़े चेहरे इस बैठक में शामिल नहीं हुए, जिन्हें लेकर सवाल उठने लगे हैं.
केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री मेनका गांधी, सुल्तानपुर से सांसद वरुण गांधी और बहराइच से सांसद सावित्री बाई फूले के नदारद रहने पर सियासी गलियारों में सुगबुगाहट तेज हो गई. इन नेताओं के शामिल न होने के राजनीतिक मायने निकाले जाने लगे हैं.
मेरठ में बीजेपी प्रदेश कार्यकारिणी की मैराथन बैठक में प्रदेश के सभी विधायकों और सांसदों ने भाग लिया. पीलीभीत से सांसद और मोदी सरकार में मंत्री मेनका गांधी और उनके बेटे वरुण गांधी का शामिल न होना कई राजनीतिक कयासों को जन्म दे रहा है. जबकि बहराइच की दलित सांसद सावित्री बाई फूले ने लगभग अपने बगावती रुख को साफ कर दिया है.
माना जा रहा है कि वरुण गांधी नाराज चल रहे हैं. इसी के चलते बीजेपी की पिछली कई मीटिंग में वो शामिल नहीं हुए हैं. रायबरेली और सुल्तानपुर के अमित शाह के कार्यक्रम में भी वरुण गांधी शामिल नहीं हुए. बीजेपी की बैठकों से लगातार वे खुद को दूर रख रहे हैं. वहीं, मेनका गांधी का मेरठ के राज्य कार्यकारिणी में हिस्सा नहीं लेना नई सियासत की ओर इशारा कर रही है.
मेरठ में हुई राज्य कार्यकारिणी के आखिरी दिन बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने यूपी के सभी विधायक और सांसदों की बैठक रविवार को बुलाई थी. इसमें प्रदेश के मौजूदा सभी सांसद और विधायक आए लेकिन मेनका और वरुण इस मीटिंग का हिस्सा नहीं बने.
गौरतलब है कि एक तरफ वरुण गांधी लगातार पार्टी के शीर्ष नेतृत्व से नाराज चल रहे हैं. यूपी के 2017 विधानसभा चुनाव से पहले मेनका गांधी ने वरुण गांधी को मुख्यमंत्री पद का दावेदार बताकर राजनीतिक हलचल पैदा कर दी थी.
इसी के बाद पार्टी के केंद्रीय संगठन के विस्तार के दौरान वरुण गांधी को महासचिव पद से हटा दिया गया था. इसी के बाद वरुण नाराज चल रहे हैं. जबकि दूसरी ओर पार्टी भी वरुण गांधी से नाराज हैं. हालांकि नाराजगी के बावजूद दोनों ओर से किसी भी तरह की बयानबाजी से परहेज होता रहा है.
विधानसभा चुनाव में भी वरुण ने खुद को पार्टी के प्रचार से अलग रखा था. बीजेपी ने भी उन्हें ज्यादा तवज्जो नहीं दी थी. इसके बाद से ही वरुण गांधी यूपी में बीजेपी के किसी मंच पर दिखाई नहीं दिए.
वरुण गांधी के साथ-साथ क्या उनकी मां मेनका गांधी भी पार्टी से नाराज है? ऐसे में मेनका गांधी मेरठ की प्रदेश कार्यकारिणी में शामिल न होने से कई सवाल खड़े हो रहे हैं. वरुण को पार्टी में साइडलाइन किए जाने के चलते उनके अंदर भी नाराजगी है या फिर कोई और वजह?
बहराइच से बीजेपी सांसद सावित्री बाई फूले भी पार्टी के भीतर दलित मुद्दे को लेकर बगावती रुख अख्तियार किए हुए हैं. ऐसे में मेरठ की बैठक में शामिल न होने से सवाल खड़े हो रहे हैं. हालांकि बीएसपी की ओर वे पींगे बढ़ा भी रही हैं. इन तीनों नेताओं की नाराजगी 2019 के लोकसभा चुनाव में अलग रास्ता अख्तियार करने के लिए तो नहीं है.
बता दें कि बीजेपी ने शुरू से गांधी परिवार को घेरकर अपनी सियासत को आगे बढ़ाया है. 1980 में संजय गांधी की मौत के बाद मेनका गांधी की इंदिरा गांधी से अनबन हो गई. ऐसे में मेनका ने कांग्रेस से अलग अपनी राह पकड़ी. राजीव गांधी के खिलाफ अमेठी से चुनाव लड़ीं लेकिन जीत नहीं सकीं.
मेनका 1988 में वो वीपी सिंह के जनता दल में शामिल हो गईं. 1989 में जनता दल के टिकट पर पीलीभीत से चुनाव लड़ा और जीतकर लोकसभा पहुंचीं. 1999 में बतौर निर्दलीय उम्मीदवार पीलीभीत से सांसद बनीं.
मेनका गांधी ने उस वक्त अटल बिहारी वाजपेयी का केंद्र में समर्थन किया और उन्हें केंद्र में मंत्री भी बनाया गया. बीजेपी नजाकत को देखते हुए पार्टी ने सटीक दांव चला. 2004 में आधिकारिक तौर पर मेनका गांधी बीजेपी में शामिल हो गईं. मेनका 2004, 2009 और 2014 में बीजेपी के टिकट पर सांसद पहुंची और मंत्री बनी.
मेनका की तर्ज पर वरुण गांधी ने भी बीजेपी का दामन थामा. 2009 के लोकसभा चुनाव में अपनी मां की संसदीय सीट पीलीभीत से मैदान में उतरे और जीत हासिल करके सांसद बने. इसके बाद 2014 में वरुण ने पीलीभीत को छोड़कर सुल्तानपुर सीट को चुना और दूसरी बार रिकॉर्ड मतों से जीतकर सांसद बने. हालांकि वरुण पिछले चार सालों में अपने अंदाज में कई मौकों पर मोदी सरकार पर निशाना साधकर पार्टी को असहज करते रहे हैं.