लखनऊ। मेरठ में हुई बीजेपी की यूपी प्रदेश की कार्यकारिणी की बैठक में अगले लोकसभा चुनाव को लेकर माथापच्ची खूब हुई. गृह मंत्री राजनाथ सिंह शुरुआती सत्र में शामिल हुए, जबकि, बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने रविवार को समापन सत्र को संबोधित किया. दो दिनों के मंथन के लिए पश्चिमी यूपी के मेरठ में लगा बीजेपी नेताओं का जमावड़ा अपने-आप में यूपी की राजनीति में पश्चिमी यूपी की सियासी भूमिका को बयां कर रहा है.
बीजेपी को पता है कि दिल्ली की सत्ता तक फिर पहुंचना है, तो उसके लिए यूपी में फिर से 2014 के प्रदर्शन को दोहराना होगा. पिछले लोकसभा चुनाव और फिर 2017 के विधानसभा चुनाव के वक्त बीजेपी का प्रदर्शन पूरे यूपी में बेहतर रहा था, लेकिन, पश्चिमी यूपी की भूमिका से इनकार नहीं किया जा सकता.
अभी हाल ही में हुए कैराना के लोकसभा के उपचुनाव में बीजेपी को हार का सामना करना पड़ा था. कैराना में एसपी-बीएसपी-आरएलडी-कांग्रेस का गठजोड़ हुआ था. इस गठजोड़ ने बीजेपी के लिए कैराना की हार की स्क्रिप्ट लिख दी थी. विपक्षी एकता यहां काम कर गई और बीजेपी के हाथ से यह सीट फिसल गई. हुकुम सिंह के निधन के बाद बीजेपी ने वहां से उनकी बेटी को मैदान में उतारा था, लेकिन, पिता की सीट को वो बचा नहीं पाईं.
बीजेपी के लिए 2014 और 2017 के प्रदर्शन को 2019 में दोहरा पाना सबसे बड़ी चुनौती बन गया है. क्योंकि इस बार विपक्ष एकजुट होने की तैयारी कर रहा है. इसकी एक झलक कैराना से पहले गोरखपुर और फूलपुर में भी दिख गया है. बीजेपी के लिए यही सबसे बड़ी परेशानी है. बीजेपी इस बात को समझ रही है कि इस बार सभी विपक्षी दल साथ लड़े तो फिर उसके लिए चुनौती बड़ी होगी.
सूत्रों के मुताबिक, बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने मेरठ की कार्यकारिणी की बैठक में पार्टी नेताओं और कार्यकर्ताओं को वोट शेयर बढ़ाने पर जोर देते दिखे. बीजेपी अध्यक्ष का लक्ष्य यूपी में वोट शेयर 51 फीसदी तक लाना है. अमित शाह की रणनीति वोट शेयर को लेकर है. उनको लगता है कि अगर आधे से ज्यादा वोट बीजेपी को मिल जाएं तो फिर सभी विपक्षी दल मिलकर भी यूपी में पार्टी को नहीं हरा सकते हैं.
कैराना में सभी विपक्षी दल एक हो गए थे, फिर भी बीजेपी का वोट शेयर 5 फीसदी ही कम रहा था. ऐसे में पार्टी यह मान कर चल रही है कि जब 2019 में मोदी फॉर पीएम अगेन का कैंपेन चलेगा और मोदी फिर से प्रधानमंत्री पद के दावेदार होंगे, तो इस फासले को आसानी से खत्म किया जा सकता है. बीजेपी इसीलिए वोट शेयर पर ज्यादा जोर दे रही है.
बीजेपी ने फिर से एक बार 2017 के हालात को दोहराने की बात की है. बीजेपी का तर्क है जब 2017 के विधानसभा चुनाव में एसपी और कांग्रेस एक हुए थे तो उस वक्त भी कई तरह के दावे किए जा रहे थे. यूपी के दो लड़कों यानी अखिलेश और राहुल के एक होने का नारा दिया गया था, लेकिन, उन सबके बावजूद बीजेपी को बड़ी जीत मिली थी. अब जबकि मायावती और चौधरी अजीत सिंह भी साथ आने जा रहे हैं तो बीजेपी पुराने प्रदर्शन को ही दोहराने की बात कर रही है.
बीजेपी को लगता है कि भले ही ऊपरी स्तर पर सभी दलों में समझौता हो जाएगा, लेकिन, जमीनी स्तर पर यह समीकरण प्रभावी नहीं हो पाएगा. क्योंकि कई इलाकों में एसपी और बीएसपी के कार्यकर्ताओं और समर्थकों के बीच परंपरागत टकराव दिखता रहा है. बीजेपी को लगता है कि खास जाति का प्रतिनिधित्व करने वाली दोनों ही पार्टियों के वोट एक-दूसरे को ट्रांसफर नहीं हो पाएंगे, जिसका सीधा फायदा उसे ही होगा.
पिछले लोकसभा और विधानसभा चुनाव के वक्त बीजेपी ने गैर यादव ओबीसी और गैर जाटव दलित वोटरों को अपने पाले में काफी हद तक लाने में सफलता हासिल की थी. दूसरी तरफ, राजभर समुदाय को साधने के लिए ओमप्रकाश राजभर और अपना दल की अनुप्रिया पटेल को फिर से साथ लेने की पूरी तैयारी पहले से ही है. ऐसे में बीजेपी की रणनीति के केंद्र में फिर से वही पुराना समीकरण है. लेकिन, इस बार उसे पहले से कहीं बेहतर समीकरण बनाना होगा, वरना 51 फीसदी वोट शेयर हासिल करना मुश्किल होगा.
पिछले लोकसभा चुनाव में अपने सहयोगी अपना दल के साथ 73 सीटें हासिल करने वाली बीजेपी ने इससे भी ज्यादा सीटों का लक्ष्य रखा है. क्योंकि उसे भी पता है कि इस लक्ष्य को हासिल किए बगैर 2019 की राह मुश्किल हो जाएगी. पिछली बार यूपी में अपनी रणनीति से सबको अचंभित करने वाला बीजेपी के चाणक्य अमित शाह को यूपी की अहमियत का अंदाजा है, लिहाजा वो यूपी पर खास नजर रखे हुए हैं.