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भारत के स्वतंत्रता संग्राम में क्या था RSS का योगदान?

लखनऊ। देश में आज ही कई लोग 72वें स्वतंत्रता दिवस के जश्न में डूबे हैं. इस मौके पर अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह करने वाले गरम दल के क्रांतिकारियों और असहयोग आंदोलन करने वाले नरम दल के नेताओं के योगदान को हमेशा ही याद किया जाता रहा है. हालांकि समय-समय पर यह भी सवाल उठता है कि इस स्वतंत्रता संग्राम में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) का क्या योगदान रहा? हमने इस सवाल का जवाब संघ के प्रचारक रह चुके पत्रकार और लेखक नरेंद्र सहगल से तलाशने की कोशिश की.

संघ लंबे समय से इन आरोपों से जूझ रहा है कि स्वतंत्रता आंदोलन में उसकी कोई भूमिका नहीं थी. हालांकि सहगल ने दावा किया कि कांग्रेस की तरह ही आरएसएस का भी स्वतंत्रता संग्राम में योगदान रहा है. लेकिन दुर्भाग्य से इससे जुड़ा इतिहास एक परिवार को ध्यान में रखते हुए एकतरफा लिखा गया. इसलिए संघ के योगदान की जानकारी लोगों तक नहीं पहुंची. सहगल ने ‘भारतवर्ष की सर्वांग स्वतंत्रता’ नामक किताब लिखी है.

पंजाब में संघ के विभाग प्रचारक रह चुके सहगल ने बताया, ‘स्वतंत्रता संग्राम में कांग्रेस की तरह संघ की भी भूमिका है. मैंने अपनी किताब में सबूतों के साथ बताया है कि संघ का योगदान रहा है.’

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पूरे सत्याग्रह के अंदर संघ के 16 हजार स्वयंसेवक  जेल में थे. 1942 के मूवमेंट में हमारा सबसे ज्यादा हिस्सा था, लेकिन संघ के नाम से नहीं था. संघ तो आज भी अपने नाम से कुछ नहीं करता. वो तो आज भी विश्व हिंदू परिषद, मजदूर संघ, भारतीय जनता पार्टी और वनवासी कल्याण आश्रम के नाम से काम करता है.’

वर्ष 1968 से 1982 तक संघ के प्रचारक रहे सहगल अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद में हरियाणा प्रांत के संगठन मंत्री भी रह चुके हैं. सहगल कहते हैं, ‘डॉ. हेडगेवार शुरुआत में कांग्रेस से जुड़े और गांधी की अगुवाई के चल रहे 1921 के असहयोग आंदोलन में भाग लिया और जेल चले गए. 12 जुलाई 1922 को वे जेल से रिहा हुए. 1925 में दशहरे के दिन उन्होंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना की.

सहगल दावा करते हैं, ‘संघ के स्वयंसेवक कांग्रेस के आंदोलन में शामिल होते रहे हैं. सैकड़ों संस्थाएं थीं जो स्वतंत्रता संग्राम में काम कर रही थीं. उसमें अभिनव भारत है, हिंदू  महासभा है, आर्य समाज है… कांग्रेस के सत्ताधारियों ने उन सबको दरकिनार करके केवल एक नेता और एक दल को श्रेय दे दिया. हम कहते हैं कि कांग्रेस का  योगदान था, लेकिन बाकी सबका भी था. उसमें संघ का भी था.’ उन्होंने कहा, ‘महात्मा गांधी जी का बहुत बड़ा योगदान था. उन्हीं के नेतृत्व में सारा काम किया है.’

पत्रकार सहगल कहते हैं, ‘भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का इतिहास एकतरफा लिखा गया है. हालांकि, एक-दो इतिहासकारों ने बहुत बातें ठीक लिखी हैं. इतिहास को ठीक करने के लिए सरकार से हम कोई उम्मीद नहीं रखते. संघ सरकार पर निर्भर नहीं है. लेकिन हम अपनी तरफ से सबूतों के साथ सारे तथ्य रखेंगे.’

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सहगल ने कहा, ‘मैंने ये किताब एक लेखक तौर पर लिखी है. संघ का मैं अधिकृत प्रवक्ता नहीं हूं.’ सहगल ने अपनी किताब में ये भी दावा किया है कि क्रांतिकारी राजगुरु भी संघ के ‘स्वयंसेवक’ थे. महात्मा गांधी 1934 में संघ के एक कार्यक्रम में वर्धा आए थे. संघ के कार्यक्रमों में मदन मोहन  मालवीय आए थे, सुभाष चंद्र बोस ने 1938 या 1939 में नागपुर में पथ संचलन देखा था.’

आजादी के बाद योगदान
आरएसएस में दिल्ली प्रांत के प्रचार प्रमुख राजीव तुली के मुताबिक, ‘आरएसएस हमेशा देश के लिए काम करता रहा है. चाहे वो आजादी से पहले या बाद में हो. 1962 और 1965 के युद्ध में इसने बड़ी भूमिका निभाई थी. इसीलिए पंडित जवाहरलाल नेहरू को 1963 में 26 जनवरी की परेड में संघ को शामिल होने का निमंत्रण देना पड़ा. मात्र दो दिन पहले मिले निमंत्रण पर 3500 स्वयंसेवक गणवेश में उपस्थित हो गए.”

तुली के मुताबिक, “1965 में सेना की मदद के लिए देश भर से संघ के स्वयंसेवक आगे आए थे. स्वयंसेवकों ने सरकारी कार्यों में और विशेष रूप से जवानों की मदद में पूरी ताकत लगाई. 1965 में पाकिस्तान से युद्ध के समय लालबहादुर शास्त्री ने भी संघ को याद किया.”

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आरएसएस की वेबसाइट पर दावा किया गया है कि स्वयंसेवकों ने युद्ध के 22 दिनों तक दिल्ली में यातायात नियंत्रण का काम किया. घायल जवानों के लिए रक्तदान करने वाले भी संघ के स्वयंसेवक थे. दावा ये भी किया गया है कि 2 अगस्त 1954 को दादरा नगर हवेली को पुर्तगालियों के कब्जे से मुक्त करवाकर स्वयंसेवकों ने भारत सरकार को सौंप दिया. गोवा मुक्ति आंदोलन और आपातकाल हटाने के लिए हुए आंदोलनों में भी संघ की बड़ी भूमिका का दावा किया गया है.

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