नई दिल्ली। नब्बे के दशक के अंत में गुजरात बीजेपी में केशुभाई पटेल, शंकर सिंह वाघेला जैसे नेताओं के बीच सत्ता के लिए घमासान मचा हुआ था, उन सब का नतीजा यह हुआ कि सूबे में पार्टी संगठन के सबसे कद्दावर चेहरे नरेंद्र मोदी को दिल्ली भेज दिया गया. दिल्ली के पार्टी ऑफिस में ही नरेंद्र मोदी का ज्यादा वक्त गुजरता था. लालकृष्ण आडवाणी के करीबी वह पहले से ही थे, इसी दौरान वह अटल बिहारी वाजपेयी के भी करीबी बने. हालांकि परस्पर परिचय वर्षों पुराना था. इस दौरान ही बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व ने नरेंद्र मोदी की क्षमता और प्रतिभा को पहचाना.
इस बीच 2001 में गुजरात के भुज में भूकंप आने के बाद केशुभाई पटेल के नेतृत्व में बीजेपी सरकार को विपक्ष के इस आरोप का सामना करना पड़ा कि वह स्थितियों को ठीक ढंग से संभाल नहीं पाई. नतीजा यह हुआ कि उसके बाद हुए उपचुनावों में पार्टी को नुकसान हुआ. पार्टी ने चुनावों के लिहाज से खतरे को भांपते हुए गुजरात में मुख्यमंत्री बदलने की मुहिम शुरू कर दी. इस कड़ी में अटल बिहारी वाजपेयी ने 2001 में एक दिन नरेंद्र मोदी को फोन किया. उन्होंने पूछा कि आप कहां हैं और क्या मुझसे मिलने आ सकते हैं?
नरेंद्र मोदी ने कहा कि इस वक्त मैं शमशान में हूं. चिंतित वाजपेयी ने परिवार के संबंध में जब कुशलक्षेम पूछी तो मोदी ने कहा कि दरअसल मैं एक पत्रकार गोपाल के अंतिम संस्कार में आया हूं. माधव राव सिंधिया के साथ प्लेन क्रैश में उनकी भी मृत्यु हो गई है. हर कोई सिंधिया की अंतिम यात्रा में गया है और दो-तीन मित्रों को छोड़कर कोई भी गोपाल की अंतिम यात्रा में नहीं आया है. लिहाजा उनके प्रति संवेदना प्रकट करने के लिए मैं आ गया हूं.
उसके बाद जब नरेंद्र मोदी, अटल बिहारी वाजपेयी से मिलने पहुंचे तो उनको गुजरात की गद्दी संभालने के लिए कहा गया. इस तरह सात अक्टूबर, 2001 को नरेंद्र मोदी पहली बार गुजरात के मुख्यमंत्री बने. उसके बाद उनका सियासी कद लगातार बढ़ता गया और अटल बिहारी वाजपेयी के बाद बीजेपी की तरफ से प्रधानमंत्री के पद तक पहुंचने वाले दूसरे नेता बने.