नई दिल्ली। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता रहे के एन गोविंदाचाय पर पिछले दो दशक से आरोप लगता रहा है कि उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को भाजपा का मुखौटा कहा था. लेकिन वाजपेयी जी के निधन से पहले जी न्यूज डिजिटल के साथ लंबी बातचीत में गोविंदाचार्य ने दावा किया कि वह वाजपेयी का बहुत सम्मान करते हैं और उन्होंने वाजपेयी को कभी मुखौटा नहीं कहा. कहा जाता है कि इसी आरोप के बाद गोविंदाचार्य की संघ और भाजपा से छुट्टी हो गई थी, हालांकि गोविंदाचार्य इस बात को भी गलत बताते हैं.
इस घटना को दो दशक से अधिक समय होने के बाद भी गोविंदाचार्य उस घटना को इतनी सटीकता से सुनाते हैं कि लगता है वह बात उनके दिल में बहुत गहरे उतरी हुई है.
गोविंदाचार्य ने पूरा किस्सा बयान करते हुए कहा, ‘‘16 सितंबर 1997 को पार्टी कार्यालय में ब्रिटिश हाई कमीशन के दो-तीन पदाधिकारियों के साथ वार्ता हो रही थी. यह बातचीत 1998 के चुनाव के संबंध में थी. इस बातचीत में हमने धारा 370, कोका कोला को भारत आने का निमंत्रण और राम जन्मभूमि जैसे मुद्दों पर स्पष्ट रूप से अपनी राय रखी.’’
गोविंदाचार्य बताते हैं कि इसी दौरान डेलिगेशन ने उनसे पूछा कि चुनाव के दौरान पार्टी अध्यक्ष कौन होगा. इसके जवाब में गोविंदाचार्य ने कहा कि हमारे लिए यह बड़ा मुद्दा नहीं है. हमारे पास ऐसे 10 नेता हैं, जिनमें से कोई भी अध्यक्ष बनाया जा सकता है. इस पर डेलिगेशन ने सवाल किया कि अटल जी क्यों नहीं. ‘‘तो मैंने कहा था कि वह तो प्रधानमंत्री पद के प्रत्याशी होंगे. वह पार्टी का सबसे ज्यादा स्वीकार्य चेहरा हैं. उन्हें प्रधानमंत्री के तौर पर पेश करके हम वे अतिरिक्त वोट भी अपनी तरह खींच सकते हैं, जिससे हमें पूर्ण बहुमत मिल जाए.’’
गोविंदाचार्य दावा करते हैं, ‘‘उन्होंने वाजपेयी को चेहरा यानी फेस कहा, उसे डेलिगेशन ने फेस के बजाय मास्क समझ लिया. और भानु प्रताप शुक्ल ने एक आर्टिकल में यही बात लिख दी. उसके बाद 10 अक्टूबर को टाइम्स ऑफ इंडिया ने भी खबर चलाई कि गोविंदाचार्य ने अटल को मुखौटा कहा.’’
वह बताते हैं कि यह बात अटल जी तक पहुंची और उन्होंने गोविंदाचार्य से अपना पक्ष रखने को कहा. 23 अक्टूबर को गोविंदाचार्य ने अपना पूरा पक्ष अटलजी के सामने रखा. गोविंदाचार्य बताते हैं, ‘‘मैंने उन्हें पूरा घटनाक्रम बताया. उनसे कहा कि आप हाईकमीशन से जानकारी मंगा लें. मेरा पक्ष ले लें और फिर कोई राय बनाएं. वाजपेयी जी ने पूछा कि आपने ऐसा कहा था या नहीं. मैंने कहा: नहीं, तो वाजपेयी जी बोले कोई बात नहीं जाइये, अपना काम कीजिए.’’
गोविंदाचार्य कहते हैं कि इस घटना के बाद 1998 में जब कुशाभाऊ ठाकरे अध्यक्ष बने तो वह फिर से संगठन मंत्री बने. गोविंदाचार्य पूछते हैं, ‘‘अगर वाजपेयी जी मुझसे नाराज होते तो मैं दोबारा संगठन मंत्री कैसे बन पाता.’’
आज जब वाजपेयी जी इस दुनिया से विदा हो चुके हैं, तो गोविंदाचार्य उन्हें देश के ऐसे नेता के तौर पर याद करते हैं जिससे अच्छी हिंदुत्व की व्याख्या कोई नहीं कर सकता था.