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नहीं जनाब, वो इवेंट नहीं था, वो तो सच्ची श्रद्धांजलि थी…

प्रद्युम्न तिवारी

पीएम मोदी का विरोध करने के फेर में कुछ लोगों का दिमाग ही फिर गया है… राजदीप सरदेसाई टीवी डिस्कशन के दौरान इशारों ही इशारों में अटल जी की शवयात्रा को भी मोदी सरकार का इवेंट साबित करने की कोशिश कर रहे थे, राजदीप अकेले नहीं हैं अपने आप को सेक्युलर कहने वाली पूरी गैंग ने अटल जी के लिए उमड़े देश के प्यार को मोदी सरकार का इवेंट साबित करने की कोशिश की…

दरअसल इन लोगों का अध्यन कम है, इसीलिए इन्हे इतिहास की किताबों के पन्ने याद दिलाना ज़रूरी हो जाता है… इंदिरा गांधी की हत्या 31 अक्टूबर 1984 को सुबह 9.20 बजे हुई, लेकिन उनका अंतिम संस्कार तीन दिन बाद 3 नवंबर 1984 की शाम किया गया… तीन दिन तक उनका शव तीन मूर्ति भवन में रखा रहा, दूरदर्शन लाइव दिखाता रहा… ये सब तब हो रहा था जब इंदिरा के शव की तस्वीरें देख कर देश में नफरत की आग भड़क रही थी… इन तस्वीरों का असर था कि हज़ारों-हज़ार सिखों को कत्ल कर दिया गया… लेकिन नहीं जनाब, वो इवेंट नहीं था, वो तो देश के प्रधानमंत्री को सच्ची श्रद्धांजलि थी…

इसके बाद क्या हुआ हमने ये भी देखा, इंदिरा जी की शहादत को भुनाने के लिए समय से पहले चुनाव करवा लिए गए… और कांग्रेस को एतिहासिक जीत मिली… थोड़ा और आगे बढ़ते हैं… 21 मई 1991 को राजीव गांधी की चुनाव के दौरान जघन्य हत्या हो गई… लेकिन अंतिम संस्कार तीन दिन बाद 24 मई 1991 की शाम को हुआ… पूरे तीन दिन तक जनता को राजीव के शव के दर्शन करने दिए गए, चंद्रशेखर की कार्यवाहक सरकार होते हुए भी दूरदर्शन ने सब लाइव दिखाया… लेकिन तब और ना ही आज किसी बुद्धिजीवी ने ये कहने की हिम्मत जुटाई कि ये सब चुनाव के एकदम बीचोंबीच कांग्रेस को फायदा पहुंचाने के लिए हो रहा था…

अब इसका नतीजा क्या हुआ ये भी जान लीजिए… 1991 के चुनावों में राजीव की हत्या से एक दिन पहले 20 मई को पहले दौर का मतदान हुआ था, हत्या के बाद चुनाव टाल दिए गए और बाकी दो दौर की वोटिंग 12 और 15 जून को हुई… जब नतीजे आए तो… राजीव की मौत के पहले जहां मतदान हुआ था उन सीटों पर कांग्रेस का प्रदर्शन अच्छा नहीं था लेकिन राजीव की मौत के बाद जिन सीटों पर चुनाव हुए उसमें कांग्रेस ने बाजी मार ली और कुल मिलाकर 244 सीटें जीत कर सत्ता हासिल कर ली… लेकिन नहीं जनाब… वो इवेंट नहीं था… इवेंट तो ये है…

कितने नासमझी की बात है कि जो नेता दुनिया के पटल से पिछले 10 साल से अदृश्य था, जिसकी मौत कोई अनायस नहीं थी (इंदिरा और राजीव की तरह) क्या उसकी मौत को इवेंट बनाया जा सकता है? अरे बुद्धिजीवियों… दरअसल आप लोगों को ये हजम नहीं हो रहा है कि किसी गैर कांग्रेसी नेता को भी देश बिना किसी इवेंट के इतना प्यार दे सकता है… मोदी का विरोध करो, लेकिन किसी महान सपूत की चिता पर मोदी विरोध की रोटियां मत सेकों…

लेखक लखनऊ के वरिष्ठ पत्रकार हैं.

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