नई दिल्ली/लखनऊ/मेरठ। अखिल भारत हिंदू महासभा ने मेरठ में पहली हिंदू अदालत के गठन की घोषणा करके सबको चौंका दिया था. संगठन ने डॉ पूजा शकुन पांडे को इस कथित अदालत की पहली जज भी बताया था. आपको बता दें कि इस घोषणा के बाद इलाहाबाद कोर्ट ने यूपीसरकार और मेरठ के जिलाधिकारी को नोटिस जारी किया है. मामले की अगली सुनवाई 11 सितंबर को होगी.
कथित हिंदू अदालत की पहली स्वंभू जज डॉ पूजा शकुन पांडे खुद को सामाजिक कार्यकर्ता, गणित की प्रोफेसर और जूना अखाड़े का महंत बताती हैं लेकिन अलीगढ़ से संबंध रखने वाली पूजा शकुन पांडे को वहां के लोग गली-मोहल्ले का एक आम नेता बतलाते हैं. हमने डॉ पूजा शकुन पांडे से फोन पर लंबी बातचीत की है. पेश है पूरी बातचीत.
आप देश के पहले कथित हिंदू कोर्ट की पहली जज हैं सो पहले अपने बारे में थोड़ा बताइए?
मैं महंत डॉ. पूजा पूजा पांडे, जूना अखाड़ा की महंत हूं. गाज़ियाबाद के एक कॉलेज में मैथमेटिक्स की प्रोफेसर रही हूं. दस साल तक पढ़ाने के बाद मैं सोशल वर्क से जुड़ी हूं. राजनीति से जुड़ी और फिलहाल आध्यात्म से जुड़ी हुई हूं. काम करते हुए मैंने बहुत सी ऐसी चीजें देखी जो मुझे अच्छी नहीं लगीं. सत्य को कभी हारते हुए देखा, हारा तो नहीं लेकिन बहुत संघर्ष करते देखा. टैलेंट को मरते हुए देखा. मैंने जमीन पर काम करना शुरू किया. मेरे काम काम को देखकर राजनीतिक पार्टी अखिल भारत हिंदू महासभा ने संपर्क किया. अगर हमारे युवा, हमारे एथिकल और मोरल वैल्यूज को अपने अंदर उतार लेंगे तो अपराध बहुत कम हो जाएगा.
आप अलीगढ़ की रहने वाली हैं ?
नहीं. अलीगढ़ से मैंने अपने राजनैतिक जीवन की शुरूआत की थी. मेरा जन्म हिसार, हरियाणा में हुआ था. मेरे पिता जी एनसीसी में कैप्टन रहे हैं. तो जहां-जहां उनकी पोस्टिंग हुई मैं वहां-वहां गई.
आप जज का काम कैसे करेंगी? आपकी अदालत कैसे काम करेगी?
जज और अदालत बहुत बड़े शब्द हैं. हम बड़े सिंपल लोग हैं. हम अपने सनातन न्याय पद्धति को फिर से जिंदा कर रहे हैं जो दब गई थी. जैसे मर्यादा पुरूषोत्तम राम न्याय किया करते थे. जैसे हमारी नारद संहिता में न्यायाधीश को होना चाहिए. जैसे मनुस्मृति में न्याय के तरीके हैं उन्हीं पद्धति को अपनाते हुए यह काम करेंगे. पारिवारिक मुद्दे जो हैं, आपसी लड़ाई के मुद्दे हैं. दहेज के मुद्दे हैं और पैसों को लेकर आपसी विवाद के मुद्दे हैं इन्हें हम जैसे पंचायती राज में होता था उस आधार पर सुलझाने की कोशिश करेंगे.
आपके हिसाब से सनातन न्याय पद्धति है क्या?
अंग्रेजों ने जब हमपर राज किया तो उन्होंने एक बुक जिसका नाम मैं अभी याद नहीं कर पा रही हूं को माना. ये किताब संस्कृत में है और इसी के आधार पर हमारे नियम-कानून और संविधान थे. लेकिन थोड़े समय बाद जब उन्हें लगा कि इस किताब की वजह से तो देश में यूनिटी बढ़ रही है तो वो फिर अपना सिस्टम लेकर आए. लेकिन हमारा जो पौराणिक तरीका है वो इतना अच्छा है कि अगर हम उसे लेकर आए तो अपराधी को आध्यात्म के जरिए सुधार पाएंगे. हमें निर्णय लेने में भी आसानी होगी.
अगर आप मनुस्मृति के आधार पर न्याय करेंगी तो दलितों-महिलाओं के साथ कैसे न्याय करेंगी?
यही तो एक बहुत बड़ा गैप है जिसे भरने के लिए हमने हिंदू न्यायपीठ का गठन किया है. राजनीतिक लोग हमें धर्म के आधार पर बांटते हैं. फिर जाति के आधार पर बांटते हैं. क्या न्याय भी जाति के आधार पर दिया जाएगा? बताइए आप? न्याय देने के लिए हम उसकी जाति पूछेंगे, धर्म पूछेंगे?
भारतीय कानून और संविधान में इस बात की व्यवस्था है कि दलितों पर हुई हिंसा के मामले को अलग तरह से देखा जाए तो आपकी अदालत में यह कैसे होगा?
वहां होगी अलग-अलग व्यवस्था. हमारे यहां सब एक समान हैं. हिंदू मतलब हिंदू. हमारे यहां यह व्यवस्था नहीं है. एक न्यायाधीश के लिए सबलोग समान हैं. राजा के लिए पूरी प्रजा समान है. इस देश को धर्मनिरपेक्ष कहा जाता है. लेकिन यहां का सिस्टम ही भेदभाव करता है. आप समझिए कि हम कोर्ट का काम भी आसान करना चाहते हैं. हम वो भूमिका निभाना चाहते हैं जो परिवार के बड़े बुजुर्ग निभाते रहे हैं. एक बात बताइए, हमारी न्याय प्रणाली में एक खूनी भी वकील लाता है और वो वकील उसे बचाने की कोशिश भी करता है.
…आप के यहां क्या व्यवस्था होगी?
हम तो हृदय परिवर्तन करेंगे. उससे कबूल करवाएंगे कि उसने खून किया है. हमारे सनातन में ये सजा थी कि आप जाइए और छ महीने तक गाय की सेवा कीजिए.
अच्छा, अगर आपके सामने ऐसा मामला आता है तो आम खूनी को कहेंगी कि वो छ महीने तक गाय की सेवा करे?
मेरे कहने का मतलब कि हमारी सनातन न्याय व्यवस्था में कोई दंड नहीं था. हम उस व्यक्ति से कहेंगे कि वो स्वीकार करे कि उसने ऐसा किया है और पीड़ित परिवार की देख-रेख करे. अगर कोई हमारे न्याय से संतुष्ट नहीं है तो वो भारतीय दंड सहिता के अंतर्गत काम करने वाली अदालतों में जा सकता है. हम तो किसी को रोक नहीं रहे हैं.
जब भारतीय दंड सहिता है, देश में कोर्ट हैं. अदालतें हैं. वो अपना काम कर रही हैं तो इस अदालत की जरूरत क्या है?
देखिए, हम तो पारस्परिक सहयोग से मामलों का निपटारा करेंगे. हम वो केस अपने हाथ में लेंगे ही नहीं जो हमारे दायरे से बाहर होगा.
क्या दायरा तय किया है आपलोगों ने?
2 अक्टूबर तक आपके सामने सारे नियम-कायदे आ जाएंगे.
नाथू राम गोडसे को इस देश की अदालत ने महात्मा गांधी का हत्यारा माना था और उसे फांसी हुई थी. उस हत्यारे की फोटो अखिल भारत हिंदू महासभा की वेबसाइट पर सबसे ऊपर लगी हुई है. अब बताइए इस संस्था के द्वारा बनाई जा रही कथित अदालत से कैसा न्याय होगा?
(बीच में काटते हुए) मैं आपको करेक्ट करना चाहूंगी, नाथू राम गोडसे जी हत्यारे नहीं थे. उनको इस देश के संविधान लागू होने से पहले फांसी दे दी गई थी. अगर उनका जजमेंट आप पढ़ेंगे जो जज ने लिखा था कि मेरे हिसाब से नाथू राम गोडसे हत्यारे नहीं हैं. वो एक देशभक्त है. वो जजमेंट निकालिए. फांसी बहुत जल्दी दे दी गई थी. मैं इस बात को गर्व से कहती हूं कि अगर नाथू राम गोडसे जी से पहले मैं पदा हो गई होती तो गांधी जी को गोली मैं मारती. जो हमारी मतृभूमि के टुकड़े करवा दे वो राजनेता नहीं, पापी है. हम उन्हें बापू कहते हैं. क्या एक बाप अपनी मां के टुकड़े कर देता है? बच्चों को अलग कर देता है? भाइयों में बंटवारा करा देता है? मैं यह गर्व से कहती हूं कि हां, हम नाथू राम गोडसे को पूजते हैं. एक और बात मैं कहना चाहती हूं. अगर कोई गांधी फिर पैदा होगा जो हमारे देश को बांटने की कोशिश करेगा तो नाथू राम गोडसे भी इसी पुण्यभूमि पर पैदा होंगे.