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राजस्‍थान: जीत दिलाने में कितनी कामयाब होंगी कांग्रेस और भाजपा की रैलियां, जानिए क्‍या कहता है गणित

नई दिल्‍ली। विधानसभा चुनाव 2018 के करीब आते ही राजस्‍थान में रैलियों का दौर शुरू हो गया है. कांग्रेस ने चित्‍तौडगढ़ के सांवलियाजी से संकल्‍प रैली के जरिए चुनाव प्रचार का आगाज कर दिया है. वहीं राजस्‍थान की मुख्‍यमंत्री वसुंधरा राजे ने जैसलमेर से गौरव यात्रा के दूसरे चरण की शुरुआत कर दी है. दोनों ही राजनैतिक दलों के बीच आगामी चुनावों तक रैलियों का द्वंद जारी रहने वाला है. दोनों राजनैतिक दलों का मकसद इन रैलियों के जरिए मतदाताओं को अपने पक्ष में खड़ा करना है. इन बीच यह सवाल खड़ा होता है कि क्‍या केवल रैलियों की यह सियासत दोनों दलों को जीत के कितने करीब तक पहुंचाने में कामयाब रहती है.

लंबे समय से राजस्‍थान की सियासत को करीब से देख रहे वरिष्‍ठ पत्रकार श्रवण‍ सिंह राठौर के अनुसार, जैसे-जैसे दोनों दल मतदान की तारीख के करीब पहुंचते जाएंगे, वैसे वैसे दोनों दलों के बीच छिड़े रैलियों के मायने भी बदलते जाएंगे. फिलहाल, कांग्रेस की सांवलियाजी से शुरू हुई संकल्‍प रैली और भाजपा की जैसलमेर से शुरू हुई गौरव यात्रा का उद्देश्‍य जन संवाद से ज्‍यादा कार्यकार्ताओं से संवाद स्‍थापित करना है. दरअसल, दोनों ही राजनैतिक पार्टियों के कार्यकर्ता उन्‍हीं मुद्दों से वाकिफ है, जिन्‍हें वह खबरों के माध्‍यम से जानते आए हैं. ऐसे में चुनाव से पहले कार्यकर्ताओं को यह समझाना बेहद आवश्‍यक है कि उन्‍हें किन मुद्दों को लेकर मतदाताओं के पास जाना है.

इन रैलियों में पता चलेगा किस मुद्दे पर हो किस भाषा का इस्‍तेमाल
उन्‍होंने बताया कि इन रैलियों के जरिए कार्यकर्ताओं को स्‍पष्‍ट लाइन प्रदान की जा सकेगी कि प्रतिद्वंदी दलों की खामियों और अपनी खूबियों को किस तरह जनता के बीच रखना है. वहीं, रैलियों में होने वाले भाषण के जरिए कार्यकर्ताओं को बता दिया जाएगा कि मतदाताओं के बीच किस मुद्दे पर किस भाषा और किन शब्‍दों का इस्‍तेमाल करना है.

संभाग स्‍तर पर आयोजित हो रही इन रैलियों में भाग लेने वाले कार्यकर्ता अपनी विधानसभा में वापस जाने के बाद अपने नेताओं द्वारा दी गई भाषा और लाइन पर प्रचार शुरू करेंगे. जहां तक सफलता का सवाल है तो यह वरिष्‍ठ नेताओं के सम्‍मोहन शक्ति पर निर्भर करता है. दोनों ही दलों के नेता विभिन्‍न मुद्दों पर अपनी तर्क शक्ति के जरिए अपने कार्यकर्ताओं को जितना सम्‍मोहित करने में कामयाब होंगे, उसी अनुपात में संवाद का यह सम्‍मोहन मतदाताओं को अपने करीब खींचने में कायमाब होगा.

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चुनाव प्रचार के लिए इन्‍हीं रैलियों से मिलेंगे कार्यकर्ताओं को आंकड़े
राजस्‍थान की सियासत को बेहद करीब से देखने वाले राजनीतिक विश्‍लेषक के अनुसार, कांग्रेस की संकल्‍प रैली और बीजेपी की गौरव यात्रा से पहले तक दोनों पार्टियों के कार्यकर्ताओं को मुद्दे तो पता थे, लेकिन उन्‍हें यह नहीं पता था, मुद्दों को प्रभावी कैसे बनाना है. मसलन, कांग्रेस इस चुनाव में बीजेपी को घेरने के लिए मुख्‍य तौर पर पांच मुद्दों को भुनाने की कोशिश कर रही है.

जिसमें बेरोजगारी, किसानों की समस्‍या, शिक्षा, महंगाई और भ्रष्‍टाचार शामिल हैं. ये पांचों मुद्दे राजस्‍थान हीं नहीं पूरे देश के मुद्दे हैं. ऐसे में इन रैलियों के जरिए कांग्रेस के नेता अपने कार्यकर्ताओं को राजस्‍थान से जुड़े वे आंकड़े बताएंगे, जिनके जरिए कांग्रेस के कार्यकर्ता प्रभावी तरीके से अपनी बात को मतदाताओं के बीच रख सकेंगे. कुछ इसी तरह, बीजेपी अपने कार्यकताओं को वह आंकड़े बताएगी, जिनके जरिए विपक्ष के आरोपों को खारिज किया जा सके.

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ये रैलियां खड़ा करेंगी चुनाव का असली माहौल 
जानकारों की मानें तो चुनाव के प्रारंभिक चरण में होने वाली ये रैलियां एक तरह से कार्यकताओं के लिए चुनावी मुद्दों के क्रैश कोर्स की तरह है. इस क्रैश कोर्स के दौरान जो कार्यकर्ता, जितनी बेहतर तरीके से अपने कार्यकर्ताओं की बात समझ सकेगा, उसी क्षमता के साथ वह मतदाताओं को अपनी तरफ खींचने में सफल होगा.  इसी तरह धीरे धीरे राजस्‍थान सहित दूसरे राज्‍यों में भी चुनाव का सही माहौल तैयार कर पाएगा. आने वाले समय में यही माहौल तय करेगा कि राजस्‍थान के सियासत की गद्दी का अगला हकदार कौन होगा.

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