नई दिल्ली। 2019 लोकसभा चुनावों के मद्देनजर बिहार में सीटों के बंटवारे को लेकर सत्तारूढ़ एनडीए में मची खींचतान और नीतीश कुमार की जेडीयू के दांवपेंच के बीच पहली बार बीजेपी ने अपनी रहस्यमयी चुप्पी तोड़ी है. सूत्रों से खबर आ रही है कि बीजेपी ने यहां की 40 लोकसभा सीटों को लेकर 20-20 फॉर्मूला अपनाने का फैसला किया है. इसके तहत 20 सीटों पर बीजेपी लड़ेगी और बाकी 20 जेडीयू के लिए छोड़ देगी. सूत्रों के मुताबिक जेडीयू के कोटे से ही पांच सीटें रामविलास पासवान की लोजपा, दो सीटें उपेंद्र कुशवाहा की रालोसपा और बची एक सीट से रालोसपा के निलंबित सांसद अरुण कुमार को मैदान में उतारा जाएगा.
‘जिसकी जितनी भागीदारी, उसकी उतनी हिस्सेदारी’
बीजेपी ने दरअसल यह फॉर्मूला 2014 लोकसभा चुनावों को ध्यान में रखते हुए बनाया है. इसके तहत जिसकी जितनी भागीदारी, उसकी उतनी हिस्सेदारी का फॉर्मूला बीजेपी अपनाने पर जोर दे रही है. 2014 के लोकसभा चुनाव में नीतीश कुमार, बीजेपी के साथ नहीं थे. बीजेपी के साथ लोजपा और रालोसपा थे. उसमें बीजेपी ने 22 सीटें, लोजपा ने छह सीटें, रालोसपा ने 3 सीटें जीती थीं. इस तरह कुल मिलाकर एनडीए को 31 सीटें मिली थीं. नीतीश कुमार की जेडीयू अकेले दम पर चुनाव में उतरी थी और उसको महज दो सीटों से संतोष करना पड़ा था.
दांवपेंच
अब असली मुश्किल यहीं से शुरू होती है. ऐसा इसलिए क्योंकि जेडीयू पहले ही यह ऐलान कर चुकी है कि बिहार में एनडीए के नेता नीतीश कुमार हैं. इसलिए बिहार में दोनों दलों के गठबंधन में जेडीयू विधानसभा सीटों और नीतीश कुमार की छवि के कारण बड़े भाई की भूमिका में है. इसी आधार पर तीन जून को जदयू प्रवक्ता अजय आलोक ने ऐलान करते हुए कहा था कि बिहार में उनकी पार्टी सबसे बड़ी पार्टी है. इसलिए जेडीयू 25 सीटों पर चुनाव लड़ेगी और बीजेपी 15 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारेगी. जेडीयू ने 2014 के चुनावी अंकगणित को इस आधार पर भी खारिज कर दिया था क्योंकि उसमें जदयू शामिल नहीं थी.
जेडीयू इस संबंध में 2009 के चुनावी फॉर्मूले को अपनाने पर जोर दे रही है क्योंकि उस दौरान दोनों दल साथ थे. अब यदि बीजेपी का यह फॉर्मूला तय हो जाता है तो इन परिस्थितियों में बीजेपी से कम सीटों पर चुनावी मैदान में उतरने से जेडीयू की बड़े भाई की भूमिका को नुकसान पहुंचेगा. नीतीश कुमार की छवि को नुकसान पहुंच सकता है. ऐसे में बड़ा सवाल उठता है कि 25 सीटों पर चुनाव लड़ने वाली जेडीयू क्या 12 सीटों पर संतोष करेगी?
सहयोगियों का संकट
दूसरी बात यह है कि बीजेपी को इस फॉर्मूले में कोई नुकसान नहीं है. ऐसा इसलिए क्योंकि पिछली बार जीती गई 22 में से दो सीटों का त्याग करने पर उसे कोई आपत्ति नहीं है. दरअसल इनमें से एक सीट पटना साहिब से शत्रुघ्न सिन्हा जीते थे और दूसरी भागलपुर सीट से कीर्ति आजाद जीते थे. हालिया वर्षों में ये दोनों ही नेता बीजेपी से नाराज चल रहे हैं. इसलिए बीजेपी अबकी बार इन सीटों के लिए अपनी दावेदारी छोड़ सकती है क्योंकि यह लगभग तय माना जा रहा है कि वह यहां से इन नेताओं को टिकट नहीं देगी.
हालांकि बाकी सहयोगियों को पिछली बार जीती गई सीटें देने की बात चल रही है लेकिन यह सर्वविदित है कि रालोसपा नेता उपेंद्र कुशवाहा, बीजेपी की नीतीश कुमार से दोस्ती की वजह से सहज नहीं हैं. उनके ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़ने का मौका मिलने की स्थिति में राजद के नेतृत्व वाले महागठबंधन में जाने की अटकलें भी लगाई जा रही हैं. इन बदलती सियासी परिस्थितियों में यह कहा जा सकता है कि बिहार में अभी चुनावी गोटियां पूरी तरह फिट नहीं बैठी हैं क्योंकि ताश के पत्ते अभी फेंटे जाने बाकी हैं.