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जैन मुनि तरुण सागर की हालत नाजुक, डॉक्टरों ने खड़े किए हाथ तो शुरू किया संथारा

नई दिल्ली। प्रसिद्ध जैन मुनि तरुण सागर महाराज की हालत गंभीर बनी हुई है. मैक्स अस्पताल की ओर से कहा गया है कि उनकी सेहत में कोई सुधार नहीं हो रहा है. डॉक्टरों के हवाले से कहा जा रहा है कि 20 दिन पहले पीलिया की शिकायत मिलने के बाद तरुण सागर महाराज को मैक्स अस्पताल में लाया गया था, लेकिन ई्लाज के बाद भी उनकी सेहत में कोई सुधार नहीं हो रहा था. बुधवार को उन्होंने आगे इलाज कराने से मना कर दिया और अपने अनुयायियों के साथ गुरुवार शाम कृष्णा नगर (दिल्ली) स्थित राधापुरी जैन मंदिर चातुर्मास स्थल आ गए. दिल्ली जैन समाज के अध्यक्ष चक्रेश जैन की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि तरुण सागर अपने गुरु पुष्पदंत सागर महाराज की स्वीकृति के बाद संथारा ले रहे हैं.

मालूम हो कि तरूण सागर महाराज के प्रवचनों का टीवी पर प्रसारण होता है. वे अपने प्रवचनों में कही बातों को लेकर विवादों में रहे हैं. हाल ही में उन्होंने सरकार से दो बच्चों का नियम लागू करने का आग्रह किया था. उन्होंने मीडिया से कहा कि दो से ज्यादा बच्चों वाले हर व्यक्ति के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जानी चाहिए. उन्होंने कहा कि यह नीति सभी जातियों और धर्मों के लोगों पर लागू होनी चाहिए.

हरियाणा विधानसभा में उनके प्रवचन पर काफी विवाद हुआ था, जिसके बाद संगीतकार विशाल ददलानी की टिप्पणी पर बवाल हुआ था. तब विशाल को माफी मांगनी पड़ी थी. मध्‍यप्रदेश सरकार ने 6 फरवरी 2002 को उन्हें राजकीय अतिथि का दर्जा दिया था.

उल्लेखनीय है कि तरुण सागर का असली नाम पवन कुमार जैन है. उनका जन्‍म 26 जून, 1967 को मध्यप्रदेश के दामोह जिले के गुहजी गांव में हुआ था. उनकी मां का नाम शांतिबाई और पिता का नाम प्रताप चंद्र था. बताया जाता है कि उन्होंने 8 मार्च, 1981 को घर-परिवार को त्यागकर संन्यास धारण कर लिया था.

संथारा क्या होता है
जैन धर्म में संथारा की प्रक्रिया होती है. यह प्रक्रिया बुजुर्ग लोग अपनाते हैं. इसमें जब इंसान को आभास होता है कि उसकी मौत नजदीक है तो वह खाना-पीना छोड़ देता है. जैन धर्म शास्त्रों के मुताबिक उपवास के जरिए मौत प्राप्त करने की प्रकिया है. जैन धर्म में इसे मोक्ष प्राप्त करने की प्रक्रिया माना जाता है. हालांकि कोर्ट इसे बैन कर चुका है. राजस्थान हाईकोर्ट ने साल 2015 में इसे आत्महत्या जैसे अपराध की श्रेणी में रखा है. इसे अपनाने वाले के खिलाफ भारतीय दंड संहिता 306 और 309 के तहत कार्रवाई की प्रक्रिया है. फिलहाल यह मामला सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है.

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