लखनऊ। पिछले पंद्रह साल में समाजवादी पार्टी मध्यप्रदेश में अपना कोई जनाधार नहीं बना पाई है. हर चुनाव में पार्टी का जनाधार लगातार कमजोर हुआ है. अखिलेश यादव उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री रहते हुए भी पड़ोसी राज्य मध्यप्रदेश में अपनी पार्टी की स्थिति पर ध्यान नहीं दिया. उत्तरप्रदेश के विधानसभा चुनाव में मिली करारी शिकस्त के बाद अखिलेश यादव अब मध्यप्रदेश में सक्रिय हैं.
भोपाल के बाद अब वे इंदौर में जाति के वोटों को एकजुट करने की कोशिश करेंगे. जाति के लोगों को जोड़ने के लिए उन्होंने जन्माष्टमी का दिन चुना है. अखिलेश यादव जन्माष्टमी पर इंदौर में रहेंगे. भगवान श्री कृष्ण के सहारे वे चुनावी महाभारत में तीसरी ताकत बनना चाहते हैं?
इंदौर में हैं एक लाख से अधिक यादव वोटर
इंदौर जिले की कुल नौ विधानसभा सीटों मे से दो विधानसभा सीटों पर यादव वोटर निर्णायक भूमिका अदा करते हैं. ये दोनों सीटें इंदौर शहर की हैं. सीट क्रमांक एक और सीट क्रमांक तीन. सीट क्रमांक एक पर चालीस हजार से अधिक यादव वोटर हैं. इस सीट पर भारतीय जनता पार्टी लगातार चुनाव जीतती रही है.
वर्ष 2013 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने यादव उम्मीदवार उतारा था. लगभग 38 हजार वोट के साथ कांग्रेस उम्मीदवार तीसरे नबंर पर रहा था. समाजवादी पार्टी ने यादव बाहुल्य इस विधानसभा सीट पर मुस्लिम को टिकट दिया था. वो केवल 636 वोट ही ला पाया था. यादव को टिकट देने के बाद भी कांग्रेस तीसरे नबंर पर रही थी. भाजपा को टक्कर निर्दलीय उम्मीदवार से मिली थी.
इंदौर की तीन नंबर विधानसभा सीट पर भी समाजवादी पार्टी ने मुस्लिम को टिकट दिया. यहां भी उसका उम्मीदवार हजार वोट भी नहीं जुगाड़ पाया. इस सीट पर यादव वोटरों ने भाजपा की ऊषा ठाकुर का साथ दिया. कांग्रेस दूसरे नंबर पर रही थी. इन दोनों सीटों के अलावा महू में भी काफी संख्या में यादव वोटर हैं. अखिलेश यादव, जन्माष्टमी के बहाने इंदौर के यादव वोटरों का मूड समझना चाहते हैं.
इंदौर में सपा के सारथी के तौर पर अखिलेश यादव ने मूलचंद यादव (बंते) को चुना है. बंते हाल ही में कांग्रेस छोड़कर सपा में शामिल हुए हैं. अखिलेश यादव ने उन्हें चुनाव प्रचार अभियान समिति का अध्यक्ष बनाया है.
मुलायम सिंह के अध्यक्ष रहते ही घटने लगा था जनाधार
मध्यप्रदेश में समाजवादी पार्टी के पास सिर्फ यादव जाति के ही वोटर हैं. पार्टी इन्हीं वोटरों के सहारे विधानसभा अथवा लोकसभा चुनाव में अपने उम्मीदवार उतारती रहती है. पिछड़े वर्ग की अन्य जातियों के साथ भी कोई तालमेल समाजवादी पार्टी नहीं बैठा पाती है. मुस्लिम वोटर जरूर उसकी प्राथमिकता में रहते हैं. समाजवादी पार्टी का कोई मजबूत संगठन भी राज्य में नहीं है.
आमतौर पर चुनाव के वक्त पार्टी कांग्रेस अथवा भारतीय जनता पार्टी के बागी नेताओं को अपना टिकट देकर मैदान में उतार देती है. बाद में यह नेता अन्य दलों में शामिल हो जाते हैं. वर्ष 2003 के विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी ने पहली बार सात सीटें जीतीं थीं. इस चुनाव में माहौल कांग्रेस विरोधी था. समाजवादी पार्टी ने कांग्रेस के कई बागी नेताओं को टिकट दिया था.
वर्ष 2003 के विधानसभा चुनाव में सपा ने कुल 161 सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े किए थे. इनमें 146 की जमानत जब्त हो गई थी. पार्टी को 5.26 प्रतिशत वोट मिले थे. वर्ष 2008 के विधानसभा चुनाव में उसका वोट शेयर घटकर 2.46 प्रतिशत रह गया. मात्र एक सीट ही पार्टी जीत सकी. 183 उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई. पिछले विधानसभा चुनाव में पार्टी कोई सीट नहीं जीत पाई थी. उसके 164 में से कुल तीन उम्मीदवार अपनी जमानत बचा पाए थे. उसका वोट शेयर 1.70 प्रतिशत बचा.
कांग्रेस से गठबंधन की चर्चा से पहले तौल रहे हैं अपनी ताकत
कांग्रेस स्पष्ट तौर पर कह चुकी है कि वह भारतीय जनता पार्टी को सरकार से हटाने के लिए सपा-बसपा दोनों से ही समझौता करने के लिए तैयार है. सपा उत्तर प्रदेश में कांग्रेस से समझौता कर चुनाव लड़ चुकी है. बसपा-सपा और कांग्रेस का संयुक्त गठबंधन अब तक चुनाव में देखने को नहीं मिला है.
मध्यप्रदेश के कई विधानसभा क्षेत्र की सीमाएं उत्तरप्रदेश से लगी हुई हैं. सपा और बसपा का ज्यादा असर इन क्षेत्रों में ही है. सपा और बसपा दोनों समझौते में अपना-अपना दावा इन सीटों पर कर रहे हैं. समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव उत्तरप्रदेश की सीमावर्ती सीटों के साथ-साथ अन्य सीटों पर भी अपनी दावेदारी कर रहे हैं.
निमाड़ क्षेत्रों की सीटों पर भी वे संभावनाएं तलाश कर रहे हैं. अखिलेश यादव पिछले महीने भोपाल आए थे. भोपाल की इस यात्रा में उनकी मेल-मुलाकात कांग्रेसियों से ज्यादा सुर्खियों में रही. मध्यप्रदेश कांग्रेस कमेटी के पूर्व अध्यक्ष अरूण यादव और पूर्व राज्यपाल अजीज कुर्रेशी से भी वे मिले थे. समाजवादी पार्टी, मध्यप्रदेश में कांग्रेस से गठबंधन की बात को खुले तौर पर स्वीकार नहीं कर रही है.
मूलचंद यादव दावा कर रहे हैं कि पार्टी राज्य की सभी 230 विधानसभा सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारेगी. दरअसल सपा को लग रहा है कि यदि अभी समझौते की घोषणा कर दी तो अन्य दलों के बागियों के पार्टी में शामिल करने का रास्ता बंद हो जाएगा.
बलराम के जरिए यादवों को साधना चाहते हैं शिवराज सिंह चौहान
कई मौकों पर यह देखा गया कि किरार और यादव समाज के लोग एक मंच पर नहीं आते हैं. कोलारस और मुंगावली के विधानसभा उप चुनाव में भी यह बात सामने आई थी. मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान किरार जाति के हैं. इस कारण यादव भाजपा के निकट नहीं आ पा रहे हैं. अप्रैल माह में भोपाल में हुए किरार एवं धाकड़ समाज के परिचय सम्मेलन में यादवों को जोड़ने के लिए ही मंच पर भगवान श्री कृष्ण के बड़े भाई बलराम का चित्र लगाया गया था. किरार समाज की राष्ट्रीय अध्यक्ष मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की पत्नी साधना सिंह हैं.
उत्तरप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री एवं सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव को लग रहा है कि समय रहते यदि यादव समाज को नहीं जोड़ा गया तो वह ओबीसी के नाते भाजपा के साथ जा सकता है. अपनी इंदौर की यात्रा में अखिलेश यादव जाति पर अपनी पकड़ को भी दिखाना चाहते हैं.