सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में भी इस प्रथा को खत्म करने की वकालत की, जिसके बाद संवैधानिक पीठ के फैसले में एक साथ तीन तलाक को अवैध ठहराया गया. इसके बाद मुस्लिम महिलाओं का खफ्ज (खतना) खत्म कराने के लिए भी पीएम मोदी से मांग की गई, लेकिन यह मसला कभी बीजेपी या पीएम मोदी के भाषणों का हिस्सा नहीं बना. हालांकि, यह मामला भी फिलहाल सुप्रीम कोर्ट में है.
कई मुल्कों में खत्म हुआ खतना
दिलचस्प बात ये है कि शुक्रवार को पीएम नरेंद्र मोदी इंदौर में जिस दाऊदी बोहरा मुस्लिम समुदाय के बीच पहुंचे, उसी समाज में महिलाओं का खफ्ज करने की प्रथा है. हालांकि, संख्या के लिहाज से ये काफी कम है, लेकिन इसे एक बड़ी कुरीति के रूप में देखा जाता है. ऐसा इसलिए भी क्योंकि तीन तलाक की तरह ही दुनिया के कई मुल्क महिलाओं के खफ्ज वाली प्रथा को खत्म कर चुके हैं. वहीं, सुप्रीम कोर्ट भी खतना को गलत बता चुका है.
यह मामले चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की बेंच में सुप्रीम कोर्ट में लंबित है. सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट कह चुका है कि महिलाओं का खतना संविधान के अनुच्छेद 21 और 15 का उल्लंघन है, जो हर नागरिक को जीवनरक्षा और निजी आजादी के साथ-साथ धर्म, जाति और लिंग के आधार पर भेदभाव न करने की इजाजत देता है.
मोदी सरकार ने कोर्ट में क्या कहा
कोर्ट में केंद्र सरकार का पक्ष रखते हुए अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल कहा चुके हैं कि महिलाओं का खतना मौजूदा कानून के तहत अपराध है. अटॉर्नी जनरल ने बताया था कि खतना के लिए मौजूदा कानून में सात साल की सजा का प्रावधान है. साथ ही वो भी बता चुके हैं कि 42 देश इस प्रथा पर बैन लगा चुके हैं, जिनमें से 27 अफ्रीकी देश हैं. यहां तक कि विश्व स्वास्थ्य संगठन पर भी इस पर बैन का आह्वान कर चुका है.
मुस्लिम महिलाओं के साथ जिस प्रथा को सुप्रीम कोर्ट संविधान के खिलाफ बता चुका है, उसे भारतीय जनता पार्टी या मोदी सरकार ने मुद्दा क्यों नहीं बनाया, इस पर ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सीनियर सदस्य कमाल फारूकी ने आजतक से बातचीत में बताया कि बीजेपी या मोदी सरकार ने तीन तलाक को देशव्यापी मुद्दा बनाया, क्योंकि वह मुसलमानों को बदनाम करना चाहती थी.
फारूकी ने कहा, ‘बोहरा मुस्लिमों की संख्या देश में काफी कम है, इसलिए भारतीय जनता पार्टी ने इस मसले पर मुस्लिम महिलाओं के अधिकार का बीड़ा नहीं उठाया. तीन तलाक क्योंकि मुस्लिम बहुसंख्यक समाज से जुड़ा है, इसलिए मुसलमानों को बदनाम करने के लिए इसे बड़ा मुद्दा बनाया गया.’
वहीं, इस मसले पर बोहरा समुदाय से ताल्लुक रखने वाले मशहूर कारोबारी जफर सरेशवाला ने आजतक से बातचीत में बताया कि देश और दुनिया में बोहरा समुदाय की संख्या काफी कम है और खफ्ज का चलन चुनिंदा लोगों के बीच है. वहीं, उन्होंने ये भी कहा कि नरेंद्र मोदी का बोहरा समुदाय से बहुत पुराना नाता है और उनका मस्जिद जाना बीजेपी के लिए सबक है.
वहीं, दूसरी तरफ पीएम मोदी की मस्जिद जाने की ताजा तस्वीरों को राजनीतिक तौर पर भी काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा है. इसी साल मध्य प्रदेश में चुनाव होने हैं और राज्य में बोहरा मुसलमानों की आबादी ढाई लाख के करीब है.
बता दें कि देश में 15 लाख से ज्यादा बोहरा समुदाय के लोग हैं. इनमें शिया और सुन्नी दोनों समाज के बोहरा मुस्लिम हैं. दाऊदी बोहरा शिया मुस्लिम होते हैं, जो सूफियों और मज़ारों पर खास विश्वास रखते हैं और 21 इमामों को मानते हैं. जबकि सुन्नी बोहरा हनफी इस्लामिक कानून को मानते हैं.
दाऊदी बोहरा का मुख्यालय मुंबई में है और समुदाय के 53वें धर्मगुरु सैयदना मुफद्दल सैफुद्दीन मुंबई में रहते हैं. शुक्रवार को पीएम मोदी ने इंदौर में आयोजित सैयदना सैफुद्दीन के वाअज (प्रवचन) में हिस्सा लिया और उनसे मुलाकात की. पीएम मोदी ने उनके संदेशों को देश को जोड़ने वाला बताया.
साथ ही पीएम मोदी ने ये भी कहा कि बोहरा समाज के साथ उनका रिश्ता बहुत ही पुराना है. उन्होंने कहा कि मेरा सौभाग्य है इनका स्नेह मुझ पर हमेशा रहा, मैं जब मुख्यमंत्री था तब कदम-कदम पर बोहरा समाज ने मेरा साथ दिया. लेकिन बड़ा सवाल ये है कि मुसलमानों के जिस तबसे से पीएम मोदी के व्यक्तिगत तौर पर इतने नजदीकी रिश्ते हैं, वहां महिलाओं के साथ होने वाले ऐसे कृत्य पर उन्होंने प्रखरता से कभी अपनी राय का इजहार नहीं किया, जिसे सुप्रीम कोर्ट भी संविधान का उल्लंघन मानता है.